मोहम्मद कैफ: जिसने लॉर्ड्स में परचम लहराया, लेकिन मां-बाप फिल्म देखने के चक्कर में मिस कर गए बैटिंग

आज 1 दिसंबर है, मोहम्मद कैफ का जन्मदिन. मोहम्मद कैफ भारतीय क्रिकेट के बदले युग के पहले पोस्टर ब्वॉय थे. कैफ ने अपनी फील्डिंग के दम पर पूरे विश्व में अपनी छाप छोड़ी.

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Mohammad Kaif (Getty) Mohammad Kaif (Getty)

सौरभ आनंद

  • नई दिल्ली,
  • 01 दिसंबर 2021,
  • अपडेटेड 4:04 PM IST
  • आज है मोहम्मद कैफ का जन्मदिन
  • लॉर्ड्स में नेटवेस्ट ट्रॉफी जी के हीरो
  • क्या है मोहम्मद कैफ की कहानी

13 जुलाई 2002... यह तारीख शायद ही किसी भारतीय क्रिकेट फैन के जहन से कभी निकल पाए. क्रिकेट का मक्का कहे जाने वाले लॉर्ड्स के मैदान में नेटवेस्ट ट्रॉफी का फाइनल चल रहा था. इस मुकाबले को भारतीय फैंस दो वजहों से याद रखते हैं और नासिर हुसैन सिर्फ एक. बात भारतीय फैंस की करते हैं, सौरव गांगुली को जिस दादागिरी के लिए जाना जाता है नेटवेस्ट ट्रॉफी के फाइनल में उसकी एक बानगी दिखी थी. दादा का लॉर्ड्स की बालकनी में जीत के बाद टी-शर्ट लहराना 'दादागिरी के साथ एक नए भारतीय क्रिकेट के युग की भी शुरुआत थी. संदेश पूरी दुनिया को था कि हम इस खेल में भी सबसे आगे होने के लिए तैयार हैं. इसी मुकाबले में दो युवा खिलाड़ियों ने भी दादा के इस संदेश पर मुहर लगा दी था. वो थे युवराज सिंह और मोहम्मद कैफ. 1 दिसंबर इन्हीं में से एक मोहम्मद कैफ का जन्मदिन है. 

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भारत में सबसे ज्यादा क्रिकेट की वजह से प्यार पाने वाले सचिन तेंदुलकर हैं, उनके अलावा शायद ही कोई भारतीय क्रिकेट फैंस को अपना दीवाना बना पाया है. 2002 नेटवेस्ट फाइनल भी उसी दौर की बात है जब लोग सिर्फ एक ही बात करते थे कि सचिन क्रीज पर है मैच जीतने की उम्मीद है. कई लोग सचिन के विकेट के बाद हताश होकर मैच देखना ही बंद कर देते थे. कुछ ऐसा ही 2002 नेटवेस्ट के फाइनल में भी हुआ. अधिकतर लोगों ने सचिन का विकेट गिरते ही मैच देखना बंद कर दिया, इनमें से मोहम्मद कैफ का परिवार खुद था. मतलब मोहम्मद कैफ जिस मैच के हीरो बने थे उस मुकाबले को खुद कैफ के माता-पिता पूरा नहीं देख पाए थे. सचिन के आउट होते ही उन्होंने कैफ की बैटिंग की जगह शाहरुख खान को देखना चुना. 

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वहां लॉर्ड्स में कैफ चौके-छक्के लगाकर भारतीय क्रिकेट के नए युवा युग की शुरुआत कर रहे थे इधर घर (इलाहाबाद) में कैफ के माता-पिता घर के पास वाले सिनेमा घर में शाहरुख खान को देवदास अंदाज में देख रहे थे. जब भारत चैम्पियन बना तब कैफ के परिवार को उनके मोहल्ले वालों ने ही उस सिनेमा घर जाकर मुबारकबाद दी थी. 


सातवें नंबर पर भारत के लिए जब कैफ बल्लेबाजी करने आए थे तब शायद ही किसी को लगा हो कि इलाहाबाद का यह लड़का भारत के लिए कमाल कर पाएगा. भारत त्रिकोणीय सीरीज के फाइनल में अपनी एक और हार की तरफ बढ़ रहा था लेकिन कानपुर में क्रिकेट का ABCD सीखने वाले कैफ ने सभी को गलत साबित करते हुए बता दिया कि भारत को अंडर-19 जिताने वाला यह कप्तान भारत की सीनियर टीम को भी आगे आने वाले वक्त में खुशी मनाने के कई बेहतरीन मौके देगा. कैफ की उस 87 रनों की नाबाद पारी ने दुनिया को बता दिया था कि भारत में क्रिकेट सिर्फ मुंबई, बैंगलोर तक सीमित नहीं रहेगा. 


1 दिसंबर 1980 को मोहम्मद कैफ का जन्म इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था. कैफ के पिता मोहम्मद तारिफ भी उत्तर प्रदेश और रेलवे के लिए 60 प्रथम श्रेणी मैच खेल चुके हैं, ऐसे में कैफ खुद बताते हैं कि उन्हें क्रिकेट से पहचान उनके बचपन में ही हो गई थी और बड़े होते - होते वो जान पहचान एक प्यार का रूप ले चुकी थी. भारत के लिए 138 इंटरनेशनल मैच (125 वनडे और 13 टेस्ट) खेलने वाले कैफ अपनी जेनरेशन के लिए सिर्फ एक बल्लेबाज ही नहीं बल्कि हर गली मोहल्ले के उभरते खिलाड़ी के लिए पोस्टर ब्वॉय की भूमिका निभा रहे थे.

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उनके आस-पास के दायरे में गेंद उनसे हाथ जरूर मिलाती थी. गेंद की इतनी मजाल नहीं थी कि वो कैफ को चकमा देकर उनसे छिटक जाए. भारतीय खिलाड़ियों को हमेशा से औसत दर्जे के फील्डरों के रूप में ही देखा जाता था. लेकिन कैफ और युवराज के आने के बाद सभी खिलाड़ी इन दोनों की देखा-देखी पर उतर आए थे. पहले दिन गेंदों को चोट के डर से डाइव मारकर न रोकने की कोशिश होती थी लेकिन कैफ के आने के बाद सभी मैदान पर बॉल रोकने के लिए खुद को पूरी तरह झोंकने लगे. 


मैदान पर चिड़िया की तरह उड़कर बॉल तक पहुंचने वाला बदलाव भारतीय टीम में कैफ ही लेकर आए थे. विश्व क्रिकेट में जॉन्टी रोड्स के साथ कैफ की गिनती शानदार फील्डर में होती है. इसी उड़ते, डाइव मारते, हवाई कैच पकड़ते कैफ के पोस्टर को गली मोहल्ले में खेलने वाले लोग अपने कमरों में शान से लगाने लगे. 2002 की पारी और कैफ की शानदार फील्डिंग ने कैफ भारतीय क्रिेकेट के पोस्टर ब्वॉय के रूप में स्थापित कर दिया था. 


इसके बाद 2004 में लॉर्ड्स में ही इंग्लैंड के खिलाफ वनडे में शॉर्ट लेग में फील्डिंग करते हुए पॉल कोलिंगवुड को रनआउट करना शायद ही किसी भारतीय क्रिकेट फैंस की याद्दाश्त से मिटा होगा. कॉलिंगवुड के सिर्फ एक कदम ही क्रीज से आगे बढ़ाने पर कैफ ने रनआउट का शानदार बनाया था और उनका यही प्रेजेंस ऑफ माइंड उन्हें फील्ड में बाकी खिलाड़ियों से अलग दिखाता था.

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2004 में कराची में पाकिस्तान को भारत के खिलाफ लंबे समय बाद खेली जा रही द्विपक्षीय सीरीज के पहले मुकाबले को जीतने के लिए 8 गेंदों में 10 रन चाहिए थे, तब क्रीज पर शोएब मलिक मौजूद थे. शोएब ने एक हवाई शॉट खेला जो काफी ऊंचे गई थी, ऊंचाई पर गई बॉल को कैच करना काफी मुश्किल होता है और ऐसे कैच को कैफ ने लॉंग ऑफ से दौड़कर  आकर मिड ऑन के नजदीक पकड़ा था. ये मौके ही कैफ के रूप में एक नई भारतीय टीम का संदेश दे रहे थे.

निक नाइट को 2003 विश्व कप में जॉंटी रोड्स की तरह (1992 विश्व कप पाकिस्तान) रन आउट करना हो या 2002 की नेटवेस्ट ट्रॉफी में ही निक नाइट का फाइन लेग में चीते की तरह कूदकर कैच करना हो ये सारी बातें कैफ को उस जेनरेशन के लिए बिल्कुल अलग खिलाड़ी और बतौर स्टार स्थापित करते जा रहे थे. 


कैफ ने अपना इंटरनेशनल डेब्यू 2000 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ किया था. कैफ उस वक्त भारत की अंडर-19 टीम को विश्व विजेता का खिताब जिताकर आए थे और अपनी घरेलू टीम उत्तर प्रदेश के लिए शानदार प्रदर्शन कर रहे थे जिसके चलते उन्हें 19 साल की उम्र में ही भारतीय टेस्ट कैप पहनने का मौका मिला था. लेकिन शायद वो इसके लिए उस वक्त तैयार नहीं थे. अपने पहले मैच में ही नैंटी हेवर्ड, शॉन पोलाक, एलन डोनाल्ड को झेला.

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कैफ ने 2002 में अपना वनडे डेब्यू इंग्लैंड के खिलाफ कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में किया था. उस वक्त तक कैफ ने सिर्फ 4 टेस्ट ही खेले थे और वो लगातार घरेलू क्रिकेट में अपने को तपा रहे थे और उसी का नतीजा था कि कैफ ने ग्रीन पार्क में मिले इस मौके के बाद भारत के लिए लगातार 4-5 साल क्रिकेट खेला. ये वही सीरीज थी जिसमें फ्लिंटॉफ ने वानखेड़े में 6 वनडे की सीरीज में 3-3 से बराबरी करने के बाद अपनी टी-शर्ट उतार कर जश्न मनाया थाऔर इसके कुछ महीने बाद लॉर्ड्स में दुनिया ने दादागिरी भी देखी थी. 


2003 विश्व कप से पहले कैफ का बल्ला थोड़ा खामोशी में था लेकिन वो अपनी फील्डिंग से टीम को मैच में 15 से 20 रनों का फायदा दे देते थे. ऐसे में कई लोगों ने उनकी टीम में जगह को लेकर सवाल भी खड़े किए थे लेकिन वो कप्तान सौरव गांगुली ही थी जिन्होंने कैफ की अहमियत को पहचानते हुए उन्हें कुछ मौकों में फेल होने के बाद भी विश्व कप के लिए दक्षिण अफ्रीका लेकर गए और वहां कैफ ने कई मौकों पर भारत के लिए बेहतरीन पारियां खेली.

लॉर्ड्स के फाइनल के बाद भी कैफ के बल्ले से कई यादगार पारियां निकली जिसे उनके परिवार वालों ने भी देखा बिना टीवी बंद किए. जिसमें से मेरी पसंदीदा 2004 लाहौर में खेली गई 71 रनों की नाबाद पारी है. 294 रनों का पीछा कर रही भारतीय टीम के 5 विकेट 162 रनों पर गिर गए थे जिसके बाद भारत को 25 ओवरों में 132 रन की दरकार थी. कैफ ने द्रविड़ के साथ मिलकर 5 ओवर पहले ही मैच जिता दिया. 

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कैफ ने बतौर कप्तान उत्तर प्रदेश के लिए पहली रणजी ट्रॉफी भी जीती थी. 2005-06 के सीजन में उत्तर प्रदेश कैफ की कप्तानी में ही बंगाल को हराकर पहली बार रणजी ट्रॉफी विजेता बनी थी. यह कैफ का ही जादू था कि उत्तर प्रदेश से उनके डेब्यू के बाद कई खिलाड़ियों ने भारत के लिए क्रिकेट खेला. सुरेश रैना, आरपी सिंह, पीयूष चावला, प्रवीण कुमार लंबे अरसे तक भारतीय टीम के सदस्य रहे. कैफ का इलाहाबाद से होकर कानपुर में क्रिकेट में सीखना और फिर भारतीय क्रिकेट में अपनी एक अलग पहचान बनाना ही इन सभी छोटे शहरों से आए खिलाड़ियों के लिए एक प्रेरणा बनी थी. 


क्रिकेटर मोहम्मद कैफ की इन सारी बातों के बावजूद एक बात जरूर अखरती होगी कि कैफ का जितना बड़ा स्टारडम था उनका भारतीय टीम के क्रिकेट करियर उतना ही छोटा. 2002 में वनडे डेबयू करने वाले कैफ ने अपना आखिरी वनडे नवंबर 2006 में खेला और वहीं 2000 में टेस्ट डेब्यू करने के बाद 2006 तक कैफ सिर्फ 13 टेस्ट ही खेल पाए. टेस्ट क्रिकेट में कैफ को स्लेजिंग कर मोहम्म्द यूसुफ का विकेट निकालने के अलावा अपनी सेंट लूसिया में खेली गई 148 रनों की पारी के लिए न याद किए जाने का मलाल जरूर होता होगा.

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क्रिकेट के अलावा कैफ ने 2014 में राजनीति में भी अपने हाथ अजमाए थे, 2014 के लोकसभा चुनावों में वो फूलपुर लोकसभा से कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी बने थे और उन्हें सिर्फ 58127 वोट ही मिले थे. 2017 में उन्होंने राजनीति को अलविदा कह दिया था. भारतीय टीम के इस बदले स्वरूप का श्रेय कैफ, युवराज, हरभजन, जहीर जैसे खिलाड़ियों के नाम ही जाता है और इनको इनके नाम के बराबर बड़ा बनाने का श्रेय सौरव गांगुली को. 

 

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