क्रिकेट साउथ अफ्रीका (CSA) ने मंगलवार को वेस्टइंडीज के खिलाफ टी20 वर्ल्ड कप के मैच से पहले ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ (BLM- अश्वेत जीवन भी मायने रखता है) अभियान के समर्थन में खिलाड़ियों को घुटने के बल बैठने का निर्देश दिया था. लेकिन क्विंटन डिकॉक ने इस निर्देश को मानने से इनकार कर दिया. इतना ही नहीं, डिकॉक ने दुबई में टी20 वर्ल्ड कप में वेस्टइंडीज के खिलाफ मैच से खुद को चयन के लिए अनुपलब्ध करार दिया था. सीएसए ने विकेटकीपर बल्लेबाज डिकॉक के ‘व्यक्तिगत कारणों’ से मैच से हटने के फैसले को संज्ञान में लिया है.
सीएसए बोर्ड के निर्देश के अनुसार सभी खिलाड़ियों के लिए नस्लवाद के खिलाफ एकजुटता दिखाते हुए लगातार ( टी20 वर्ल्ड कप में हर मैच से पहले) ‘घुटने के बल बैठने’ की जरूरत है. बोर्ड का कहना है कि यह नस्लवाद के खिलाफ वैश्विक मुहिम भी है, जिसे खेल संहिता के तहत खिलाड़ियों द्वारा अपनाया गया है, क्योंकि वे लोगों को एक साथ लाने के लिए खेल की शक्ति को पहचानते हैं.’
डिकॉक के इस फैसले के बाद टीम में तनाव
डिकॉक के इस फैसले के बाद टीम में तनाव की खबरें आ रही हैं, दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेटर इस मुद्दे पर बंटे हुए नजर आ रहे हैं और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टी20 विश्व कप के शुरुआती मैच से पहले कुछ खिलाड़ी ‘घुटने के बल बैठने’ की जगह मुट्ठी उठाकर खड़े थे, तो वही कुछ ने अपने हाथ पीछे की ओर पीठ पर रखे थे.
क्रिकेट बिरादरी ने भी अपनी टीम के लिए महत्वपूर्ण मैच से हटने के डिकॉक के अचानक लिए गए फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त की. भारतीय क्रिकेटर दिनेश कार्तिक ने एक तस्वीर के साथ ट्वीट किया, ‘क्विंटन डिकॉक बीएलएम आंदोलन पर अपने रुख के कारण नहीं खेल रहे हैं.’
इंग्लैंड के पूर्व कप्तान माइकल वॉन ने डिकॉक का समर्थन करते हुए ट्वीट किया, ‘निश्चित रूप से यह तय करने का अधिकार व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह किसी भी आंदोलन में शामिल होना चाहता है या नहीं. एक क्रिकेट बोर्ड को खिलाड़ियों से ऐसा करने का अनुरोध करना चाहिए, लेकिन अगर खिलाड़ी ऐसा नहीं करना चाहता है तो उसे क्रिकेट खेलना नहीं रोकना चाहिए.’
अफ्रीकी क्रिकेट: 21 साल का वो अंधकार युग
... यानी अफ्रीका टीम में नस्लीय भेदभाव का जिन्न एक बार फिर जाग उठा है. इतिहास गवाह है रंगभेद नीति के कारण दक्षिण अफ्रीका पर प्रतिबंध की वजह से वहां के क्रिकेटरों का बड़ा नुकसान हुआ. उनका भविष्य अंधकार में चला गया. अफ्रीका में क्रिकेट की वापसी हुई, लेकिन 21 साल बाद... तब तक कई क्रिकेटरों की प्रतिभा लंबे इंतजार में दम तोड़ गई.
यह कहानी 1970 से शुरू होती है, जब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) ने दक्षिण अफ्रीका सरकार की रंगभेद नीति के कारण दक्षिण अफ्रीकी टीम को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से निलंबित करने के लिए वोट किया. दक्षिण अफ्रीका सरकार की रंगभेद नीति में कुछ ऐसे नियम बनाए गए थे, जिसके बाद आईसीसी एक्शन में आई. सरकार के नियमों के मुताबिक उनकी देश की टीम को श्वेत देशों (इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड) के खिलाफ ही खेलने की इजाजत थी. साथ ही यह शर्त थी कि विपक्षी टीम में श्वेत खिलाड़ी ही खेलेंगे. आखिरकार पूरे 21 साल के बाद दक्षिण अफ्रीका में बदलाव आया और रंगभेद की नीति को खत्म किया गया.
निलंबन हटने के बाद 1991 में साउथ अफ्रीका ने दोबारा क्रिकेट में वापसी की. अगले कुछ सालों में टीम में अश्वेत खिलाड़ियों के लिए आरक्षण को लागू किया गया. इस कानून के मुताबिक दक्षिण अफ्रीका टीम में चार अश्वेत खिलाड़ियों का रहना जरूरी था. दक्षिण अफ्रीका टीम के पहले अश्वेत कप्तान के रूप में एश्वेल प्रिंस को 2006 को चुना गया. हालांकि इस आरक्षण को 2007 में हटा लिया गया. टीम के मौजूदा कप्तान तेम्बा बावुमा अश्वेत हैं.
BLM- छलका था मखाया एंटनी का दर्द
अमेरिका में अफ्रीकी मूल के जॉर्ज फ्लॉयड की एक श्वेत पुलिसकर्मी के हाथों मौत के बाद ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ आंदोलन के तहत पूर्व अफ्रीकी तेज गेंदबाज मखाया एंटनी पिछले साल अपने अनुभवों को साझा कर चुके हैं. एंटनी ने दक्षिण अफ्रीकी टीम के साथ अपने समय को याद करते हुए कहा था कि वह नस्लवाद का शिकार रहे और हमेशा खुद को ‘अकेला महसूस’ करते थे. उन्होंने टीम के तत्कालीन खिलाड़ियों पर आरोप लगाया कि वे उन्हें अलग रखते थे.
उन्होंने कहा, ‘उस समय मैं हमेशा अकेले था. खाना खाने के लिए जाते समय कोई भी मुझे साथ नहीं ले जाता था. टीम के साथी खिलाड़ी मेरे सामने योजना बनाते थे, लेकिन उस में मुझे शामिल नहीं करते थे. नाश्ते के कमरे कोई भी मेरे साथ नहीं बैठता था.’ उन्होंने कहा, ‘हम एक जैसी जर्सी पहनते हैं और एक ही राष्ट्रगान गाते हैं, लेकिन मुझे इन सब (अलगाव) से निपटना पड़ा.’
अधूरा रह गया क्लाइव राइस का करियर
दक्षिण अफ्रीका पर प्रतिबंध की वजह से वहां के क्रिकेटर आगे नहीं बढ़ पाए एक नाम क्लाइव राइस का है, अगर उन्हें अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने का मौका मिला होता, तो आज दुनिया के महान ऑलराउंरों में उनका शुमार होता. क्लाइल राइस का नाम इमरान खान, इयान बॉथम, कपिल देव और रिचर्ड हैडली के साथ 1980 के दशक के पांचवें महान ऑलराउंडर के तौर पर जुड़ सकता था, लेकिन उनका टेस्ट क्रिकेट खेलने का सपना अधूरा रह गया.
उन्हें 25 साल (1969-94) लंबे फर्स्ट क्लास करियर से संतोष करना पड़ा. रंगभेद के बाद के युग में वह दक्षिण अफ्रीका के पहले वनडे कप्तान बने. लेकिन तब तक वह 42 साल के हो चुके थे, इस वजह से 1992 के वर्ल्ड कप के लिए उन्हें नहीं चुना गया.
आईसीसी से दोबारा जुड़ने के 4 महीने के अंदर दक्षिण अफ्रीका की टीम भारत दौरे पर आई थी. वापसी के बाद उसने अपना पहला अंतरराष्ट्रीय मैच कोलकाता के ईडन गार्डन्स में खेला था. हालांकि वह मुकाबला भारत ने 3 विकेट से जीता था. तीन वनडे मैचों की वह सीरीज भारत ने 2-1 से जीती थी.
aajtak.in