खतरनाक साबित हो रहा क्लाइमेट चेंज, ज्यादा तापमान से इन जीवों का हो रहा सेक्स-चेंज

Climate Change को लेकर पहली बार वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि इससे रेप्टाइल्स की कई प्रजातियां पूरी तरह खत्म हो जाएंगी. ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि बढ़ते तापमान के कारण नर रेप्टाइल भी मादा रेप्टाइल में बदल रहे हैं. सांप, छिपकली, गिरगिट की श्रेणी में दिख रहा सेक्स-चेंज साइंटिस्ट तक को चौंका रहा है.

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तापमान के कारण सेक्स चेंज को टेंपरेचर-डिपेंडेंट-सेक्स-डिटरमिनेशन कहा जाता है. प्रतीकात्मक फोटो (Pixabay) तापमान के कारण सेक्स चेंज को टेंपरेचर-डिपेंडेंट-सेक्स-डिटरमिनेशन कहा जाता है. प्रतीकात्मक फोटो (Pixabay)

मृदुलिका झा

  • नई दिल्ली,
  • 24 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 10:50 PM IST

सबसे पहले ये समझते हैं कि रेप्टाइल्स क्या हैं. हिंदी में इन्हें सरीसृप कहते हैं यानी वो प्राणी जो जमीन पर सरकते हुए चलते हैं. इस श्रेणी में सांप, मगरमच्छ, छिपकली और घड़ियाल जैसे एनिमल आते हैं. इसमें भी कई श्रेणियां हैं, जो उनके रहने की जगह और तरीके पर निर्भर करती हैं. 

कुछ समय पहले रेप्टाइल्स में एक बड़ा बदलाव दिखा. ऑस्ट्रेलियन बेयर्डेड ड्रैगन की कॉलोनी में मेल ड्रैगन्स की संख्या तेजी से कम होने लगी, जबकि फीमेल ड्रैगन बढ़ने लगीं. ध्यान देने पर पता चला कि इनमें क्रोमोजोम के अलावा टेंपरेचर से भी जेंडर तय होता है, लेकिन ऐसा एंब्रियो के विकास के शुरुआत फेज में ही होता है.

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ऑस्ट्रेलियन ड्रैगन की इस प्रजाति में नर तेजी से घट रहे हैं. प्रतीकात्मक फोटो (Pixabay)

इस कंसेप्ट को टेंपरेचर-डिपेंडेंट-सेक्स-डिटरमिनेशन (TSD) कहते हैं. इसमें एक तयशुदा तापमान से ज्यादा हो जाना भ्रूण के लिंग को तय करता है. सबसे पहले साल 1966 में फ्रेंच जूलॉजिस्ट मेडलिन सिमोन ने ये बात कही. तब इसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया गया, लेकिन साल 2015 से इसपर लगातार कई स्टडीज हुईं, जिन्होंने पक्का कर दिया कि टेंपरेचर भी कुछ जीवों के लिंग निर्धारण में अहम भूमिका निभाता है. हालांकि तापमान केवल एक निश्चित समय तक ही अहम रहता है. एंब्रियो के विकसित होने के शुरुआती चरण के बाद इसका रोल नहीं रहता. 

ऑस्ट्रेलियन ड्रैगन मादा होंगे या नर, ये सिर्फ उनके क्रोमोजोम पर तय नहीं करता, बल्कि अधिक तापमान होने पर इन्क्यूबेशन पीरियड के दौरान ये बदल भी सकता है. इससे नर हो सकने वाला ड्रैगन मादा के रूप में जन्म लेता है. ये इसलिए भी है कि मादा ड्रैगन में पर्यावरण के कारण हो रहे बदलावों को सहना ज्यादा आसान है. तो एक तरह से ये इस प्रजाति में सर्वाइवल टैक्ट भी है. 

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इनक्यूबेशन पीरियड यानी सेने की प्रक्रिया के दौरान ये बदलाव हो रहा है. प्रतीकात्मक फोटो (Pixabay)

हालांकि सुनने में ये जितना दिलचस्प लग रहा है, असल में इसके कई खतरे हैं. अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक वक्त पर इस ड्रैगन की पूरी प्रजाति खत्म हो जाएगी. ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ कैनबेरा ने इसपर स्टडी की, जिसमें लगभग 130 ड्रैगन की जीनोम सिक्वेंसिंग हुई.

मादा में ZW सेक्स क्रोमोजोम होते हैं, वहीं नर में ZZ. अंडों को निश्चित तापमान से ज्यादा गर्मी मिली तो क्रोमोजोम भले ही नर ड्रैगन के रहे हों, लेकिन इनक्यूबेशन के समय वे बदल जाएंगे, और मादा ड्रैगन का जन्म होगा. 

रेत की गर्मी बढ़ने से कई जगहों पर समुद्री कछुओं में नर कम हो रहे हैं. प्रतीकात्मक फोटो (Pixabay)

समुद्री कछुए भी कुछ इसी तरह के ट्रांजिशन से गुजर रहे हैं. जैसे इंसानों समेत बाकी सभी में एग और स्पर्म मिलने की प्रक्रिया के दौरान ही ये तय हो जाता है कि आने वाली संतान नर होगी या मादा, वैसा समुद्री कछुए में नहीं होता. इनमें क्रोमोजोम के अलावा, लिंग निर्धारण तापमान पर भी तय करता है. 

जैसे अगर समुद्री कछुए का एग 27.7 डिग्री सेल्सियस के नीचे इनक्यूबेट होता है, तो वो नर होगा. वहीं अगर तापमान बढ़कर 31 डिग्री सेल्सियस हो जाए तो क्रोमोजोम चाहे जो हों, मादा कछुआ ही जन्म लेगी. ये भी पाया गया कि जहां समुद्र किनारे की रेत ज्यादा गर्म हो, उस जगह फीमेल कछुओं की आबादी ज्यादा होती है. 

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