वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने 5 साल तक 647 डेनिश बच्चों के मल (Poo) को स्टडी किया. और इस स्टडी में उन्हें बेहद हैरान करने वाले नतीजे मिले. बच्चों की नैपी के सैंपल में वायरस की 10,000 प्रजातियां पाई गईं. ये उन्हीं बच्चों में मौजूद बैक्टीरिया की प्रजातियों की संख्या से दस गुना थे. इनमें से ज़्यादातर वायरस को पहले कभी देखा भी नहीं गया था.
आप में से बहुतों को ये बात परेशान कर सकती है, क्योंकि पिछले कुछ सालों में वायरस ने वाकई हमें काफी डराया है. लेकिन बहुत से लोगों को यह नहीं पता है कि ज़्यादातर वायरस लोगों को बीमार नहीं करते हैं. साथ ही मनुष्यों या जानवरों को संक्रमित भी नहीं करते.
इन वायरसों को बैक्टीरियोफेज (Bacteriophages) कहा जाता है. ये खासतौर पर बैक्टीरिया को संक्रमित करते हैं और मानव माइक्रोबायोम (Microbiome) का एक बड़ा हिस्सा बनाते हैं.यही वे बैक्टीरियोफेज हैं जो शोधकर्ताओं को बच्चों की पॉटी में इतनी ज़्यादा मात्रा में मिले थे. दरअसल, डेनिश बच्चों की नैपी में मिले करीब 90 प्रतिशत वायरस ये बैक्टीरिया को खत्म करने वाले वायरस थे.
इंसान का गट माइक्रोबायोम सूक्ष्मजीवों का एक जटिल संग्रह है, जिसमें बैक्टीरिया, आर्किया, माइक्रोबियल यूकेरियोट्स और वायरस शामिल होते हैं. गट माइक्रोबायोम या वायरोम का कंपोनेंट मुख्य रूप से बैक्टीरियोफेज से बना होता है, जो एक स्वस्थ और डाइवर्स माइक्रोबायोम को बनाए रखने में मदद करता है.
शोधकर्ताओं ने वायरस का एटलस बनाया
डेनमार्क, कनाडा और फ्रांस के शोधकर्ताओं की इस टीम ने देखा कि इन 10,000 वायरसों में से कितने नए थे और इस सभी नई वायरसों के बारे में ठीक से किस तरह बताया जाए.
उन्होंने बच्चों के गट में पाए गए वायरस को एक एटलस बनाया, जहां उन्होंने वायरस को नई वायरस फैमली में बांटा और जीनोम एक दूसरे के कितने समान हैं, इस आधार पर उनका क्रम तय किया. उन्हें 248 फैमली का पता चला, जिनमें से सिर्फ 16 के बारे में पहले से पता था.
शोधकर्ताओं ने 232 नए पहचाने गए वायरस फैमली का नाम शोध में हिस्सा लेने वाले बच्चों के नाम पर रख दिया. जैसे कि सिल्वेस्टरविरिडे, रिगमोरविरिडे और ट्रिस्टनविरिडे.
अनोखा वायरोम्स
बैक्टीरियोफेज और पेट में पाए जाने वाले अन्य वायरस के बारे में दिलचस्प बात यह है कि हर व्यक्ति के पास इनका अपना अनोखा सेट होता है, जिसमें दो अलग-अलग लोगों के बीच लगभग कोई ओवरलैप नहीं होता.
हर पेट का वायरोम अलग होते है, यह वयस्कों में भी समय के साथ स्थिर होता है, जिसका मतलब है कि उम्र बढ़ने पर भी आपके पास वायरस का एक ही सेट होते है. लेकिन बच्चे के जन्म के ठीक बाद, यह वायरोम वयस्क से बहुत अलग होता है और यह कुछ सालों बाद ही स्थिर होता है.
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