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साइंस न्यूज़

एक दिन में खत्म नहीं हुआ ये नेपाली गांव... 13 हजार फीट पर बदली जलवायु, सूख गई नदी - देखें PHOTOS

आजतक साइंस डेस्क
  • 09 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 8:45 AM IST
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नेपाल के ऊपरी मस्तांग क्षेत्र में समुद्र तल से 13,000 फीट की ऊंचाई पर बसा समजंग गांव कभी जीवन से भरा हुआ था. लेकिन धीरे-धीरे जलवायु परिवर्तन ने इस गांव को उजाड़ दिया. पानी के स्रोत सूख गए, बर्फबारी कम हो गई, और जब बारिश हुई तो वह बाढ़ बनकर सब कुछ बहा ले गई. बेरंग से हो चुके समजंग गांव की दिशा दिखाती लकड़ी की पट्टी, ये गांव कभी बुद्ध के श्रद्धालुओं, याकों और भेड़ों का बसेरो हुआ करता था. (AP)

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आखिरकार, समजंग के लोग एक-एक करके गांव छोड़ गए. अब वहां केवल टूटी-फूटी मिट्टी की दीवारें, सूखे खेत, और खाली मंदिर बचे हैं. यह बौद्ध गांव हवा से तराशी गई घाटी में बसा था, जहां लोग याक और भेड़ें चराते थे. जौ की खेती करते थे. स्काई केव्स (2,000 साल पुरानी गुफाएं) के नीचे रहते थे. हिमालय के बंजर हो चुके पहाड़ों के बीच से गुजरती ये कच्ची सड़क, काठमांडू से 462 किलोमीटर दूर पश्चिम में, मुस्तांग इलाके के उपेक्षित समजंग गांव की ओर ले जाती है. (AP)

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हिंदू कुश और हिमालय क्षेत्र, जो अफगानिस्तान से म्यांमार तक फैला है, आर्कटिक और अंटार्कटिक के बाद दुनिया का सबसे बड़ा बर्फ का भंडार है. यहां के ग्लेशियर उन नदियों को पानी देते हैं, जो पहाड़ों में रहने वाले 24 करोड़ लोगों और नीचे के मैदानी इलाकों में रहने वाले 165 करोड़ लोगों की ज़रूरतें पूरी करते हैं. (AP)

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काठमांडू स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICMOD) के अनुसार ये ऊंचे क्षेत्र निचले इलाकों की तुलना में तेज़ी से गर्म हो रहे हैं. ग्लेशियर पीछे हट रहे हैं. बर्फबारी अनियमित हो गई है. कुंगा गुरुंग, 54 साल के एक स्थानीय निवासी ने बताया कि हम गांव छोड़कर आए क्योंकि वहां पानी नहीं था. समजंग गांव की लगभग सूख चुकी नदी से महिला अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए पानी भरती हुई. (AP)

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कुंगा गुरुंग ने बताया कि पीने और खेती के लिए पानी चाहिए, लेकिन तीनों नदियां सूख गईं. जलवायु परिवर्तन ने समजंग जैसे गांवों में पानी की कमी को गंभीर बना दिया है. ICMOD की माइग्रेशन विशेषज्ञ अमिना महर्जन के अनुसार समजंग अकेला गांव नहीं है जिसे जलवायु परिवर्तन ने उजाड़ा है. मस्तांग क्षेत्र के समजंग गांव में एक सूखी नदी का तल दिखाई देता है. यहां बर्फबारी का नामोनिशान खत्म हो चुका है. झरने, नहरें गायब हो चुकी हैं और पानी के सब स्रोत लगभग सूख गए हैं. (AP)

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हिमालय के कई गांव पानी की कमी के कारण खाली हो रहे हैं. 2023 के एक अध्ययन के अनुसार अगर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं रोका गया तो हिंदू कुश और हिमालय के 80% ग्लेशियर इस सदी के अंत तक गायब हो सकते हैं.  41 वर्षीय आशी आंगमो समजंग गांव की नई स्थानांतरित बस्ती में दैनिक उपयोग के लिए पानी इकट्ठा करने से पहले अपनी सुबह की प्रार्थना पानी से करती हुई. (AP)

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ऊपरी मस्तांग में पिछले तीन साल से बर्फबारी नहीं हुई है, जो यहां के किसानों और पशुपालकों के लिए बहुत जरूरी है. बर्फबारी से फसलों (जौ, गेहूं, आलू) का समय तय होता है. पशुओं के लिए चारा उपलब्ध होता है. लेकिन अब अनियमित मॉनसून और अचानक बाढ़ ने खेतों और मिट्टी के घरों को नष्ट कर दिया. (AP)

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एक्सेटर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर नील एडगर कहते हैं  कि जलवायु परिवर्तन चुपके-चुपके लोगों के रहने और काम करने की जगहों को बदल रहा है. मौसम के बदलते पैटर्न खेती और पानी की उपलब्धता को प्रभावित कर रहे हैं. नेपाल के वीरान समजंग गांव के एक खेत में घिसे-पिटे जूते बिखरे पड़े हैं जो यहां से पलायन कर चुके परिवारों को गवाह हैं. (AP)

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समजंग जैसे छोटे गांव, जहां 100 से भी कम लोग रहते थे को दूसरी जगह बसाना आसान नहीं था. गांव वालों को ऐसी जगह चाहिए थी जहां पानी उपलब्ध हो. आसपास के समुदायों से मदद मिल सके. सड़कों के पास हो ताकि फसल बेचने और पर्यटन से फायदा हो सके. मस्तांग क्षेत्र के समजंग गांव से पलायित हो चुके परिवार के घर के दरवाजे पर प्रार्थना झंडा और ताला लगा हुआ है. (AP)

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मस्तांग के पूर्व राजा ने आखिरकार नया गांव बसाने के लिए उपयुक्त ज़मीन दी. नया समजंग गांव काली गंडकी नदी के किनारे बसा है, जो पुराने गांव से 15 किलोमीटर दूर है. यहाँ लोग मिट्टी के नए घर बनाकर रह रहे हैं, जिनके ऊपर चमकदार टिन की छतें हैं. उन्होंने पशुओं के लिए बाड़े और पानी के लिए नहरें बनाई हैं. भेड़ों का एक झुंड एक गली से गुजरता है, जब उन्हें मस्तंग क्षेत्र के समजंग गांव की नई स्थानांतरित बस्ती में पहाड़ियों के पास चरने के लिए ले जाया जाता है. (AP)

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पेम्बा गुरुंग (18) और उनकी बहन तोशी लामा गुरुंग (22) को पुराना गांव छोड़ने का दुख है, लेकिन उन्हें खुशी है कि अब पानी लाने में घंटों नहीं लगते. तोशी कहती हैं कि वह हमारी जन्मभूमि थी. हम वहां वापस जाना चाहते हैं, लेकिन यह संभव नहीं लगता. मस्तांग क्षेत्र के समजंग गांव की नई स्थानांतरित बस्ती में सेब के पेड़ लगाने के लिए ग्रामीण खेत की तरफ जाते हुए. (AP)

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नया समजंग लो मन्थांग के करीब है, जो एक मध्ययुगीन दीवारों वाला शहर है. 1992 तक यह दुनिया से कटा हुआ था, लेकिन अब यहां पर्यटक और तीर्थयात्री आते हैं. कुछ गांव वाले अब पर्यटन में काम करते हैं. कुछ अब भी याक और भेड़ें चराते हैं. नए गांव में लोग सेब के पेड़ लगा रहे हैं. खेती कर रहे हैं. लेकिन पुराने गांव की यादें उनके दिल में बसी हैं. मस्तांग क्षेत्र के समजंग गांव की स्थानांतरित बस्ती में एक दुखी बुजुर्ग महिला को देखा जा सकता है. (AP)

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