नवरात्र (Navratri 2018) में सप्तमी तिथि से कन्या पूजन शुरू हो जाता है और इस दौरान कन्याओं को घर बुलाकर उनकी आवभगत की जाती है. दुर्गाष्टमी और नवमी के दिन इन कन्याओं को नौ देवी का रूप मानकर इनका स्वागत किया जाता है. वहीं आपने अक्सर देखा होगा कि कन्या पूजन में नौ कन्याओं के साथ एक लड़के को बैठाया जाता है. आइए जानते हैं ऐसा क्यों है और इसके पीछे क्या वजह है?
नवरात्र पर्व के दौरान कन्या पूजन का बड़ा महत्व है. कन्याओं के साथ जो एक लड़का बैठता है उसे 'लंगूर', 'लांगुरिया' कहा जाता है. जिस तरह कन्याओं को पूजा जाता है, ठीक उसी तरह लड़के यानी 'लंगूर' की पूजा की जाती है.
जानें- 'लंगूर' को क्यों बैठाया जाता है.
बता दें, 'लंगूर' को हनुमान का रूप माना जाता है. लोगों का मानना है जिस तरह वैष्णों देवी के दर्शन के बाद भैरो के दर्शन करने से ही दर्शन पूरे माने जाते हैं, ठीक उसकी तरह कन्या पूजन के दौरान के लंगूर को कन्याओं के साथ बैठाने पर ये पूजा सफल मानी जाती है.
कन्या पूजन की विधि
- कन्या भोज और पूजन के लिए कन्याओं को एक दिन पहले ही आमंत्रित कर दिया जाता है.
- मुख्य कन्या पूजन के दिन इधर-उधर से कन्याओं को पकड़ के लाना सही नहीं होता है.
- गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ पुष्प वर्षा से स्वागत करें और नव दुर्गा के सभी नौ नामों के जयकारे लगाएं.
- अब इन कन्याओं को आरामदायक और स्वच्छ जगह बिठाकर सभी के पैरों को दूध से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथों से उनके पैर धोने चाहिए और पैर छूकर आशीष लेना चाहिए.
- उसके बाद माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम लगाना चाहिए.
- फिर मां भगवती का ध्यान करके इन देवी रूपी कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराएं.
- भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और उनके पुनः पैर छूकर आशीष लें.
कन्या पूजन में कितनी हो कन्याओं की उम्र?
कन्याओं की आयु दो वर्ष से ऊपर तथा 10 वर्ष तक होनी चाहिए और इनकी संख्या कम से कम 9 तो होनी ही चाहिए और एक बालक भी होना चाहिए जिसे हनुमानजी का रूप माना जाता है. जिस प्रकार मां की पूजा भैरव के बिना पूर्ण नहीं होती, उसी तरह कन्या-पूजन के समय एक बालक को भी भोजन कराना बहुत जरूरी होता है. यदि 9 से ज्यादा कन्या भोज पर आ रही है तो कोई आपत्ति नहीं है.
प्रियंका शर्मा