आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में जीवन के मूल्यों को लेकर कई सारी बातें बताई हैं. वहीं, जीवन के रहस्यों को सुलझाने के लिए भी कई तरह की नीतियों का जिक्र किया है. आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में एक श्लोक के जरिए बताया है कि किनके बीच दखलअंदाजी करने से नुकसान उठाना पड़ सकता है. श्लोक में चाणक्य कहते हैं-
विप्रयोर्विप्रवह्नेश्च दम्पत्यो: स्वामिभृत्ययो:।
अन्तरेण न गन्तव्यं हलस्य वृषभस्य च।।
आचार्य चाणक्य इस श्लोक में कहते हैं कि जब दो बुद्धिमान व्यक्ति आपस में बात कर रहे हों तो उनके बीच में नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि उनके बीच में बाधा डालने पर आप उनके ज्ञान से वंचित रह जाएंगे और गुस्से का शिकार भी हो सकते हैं.
आचार्य चाणक्य ने ये भी बताया है कि अग्नि के पास बैठे ब्राहम्णों के बीच में नहीं आना चाहिए, क्योंकि इससे अनुष्ठान की मर्यादा भंग होती है. चाणक्य कहते हैं कि इससे अनुष्ठान पर बैठे पंडित गुस्से में आ सकते हैं और इससे देवी-देवताओं का अपमान भी होता है जिससे धर्म, धन के साथ-साथ मान-सम्मान की भी हानि होती है.
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मालिक और कर्मचारी जब बात कर रहे हों तो उनके बीच भी नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि इससे भी आप किसी के भी गुस्से का शिकार बन सकते हैं.
वहीं, चाणक्य पति-पत्नी के बीच बातचीत में भी दखलअंदाजी को सही नहीं मानते हैं. चाणक्य कहते हैं कि पत्नी-पत्नी के बीच हो रही बातचीत को बीच में बाधा डालना गलत है.
आचार्य चाणक्य ने यहां तक बताया है कि अगर किसान खेतों की जुताई कर रहा हो तो वहां मौजूद शख्स को किसान के हल-बैल के बीच से नहीं गुजरना चाहिए. इससे शख्स चोट का शिकार भी हो सकता है.
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