Sharad Purnima 2025: श्रीकृष्ण का महारास, शिव का गोपी रूप और मां लक्ष्मी का आगमन, जानें शरद पूर्णिमा का महत्व

Sharad Purnima 2025: शरद पूर्णिमा जिसे कोजागरी पूर्णिमा और रास पूर्णिमा भी कहा जाता है. माना जाता है कि इस रात को मां लक्ष्मी धरती पर आती हैं, और भगवान श्रीकृष्ण ने इसी रात को गोपियों संग रासलीला रची थी. ये भी माना जाता है कि श्रीकृष्ण की रासलीला देखने के लिए चंद्रमा भी ठहर गया था.

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जानिए शरद पूर्णिमा का महत्व जानिए शरद पूर्णिमा का महत्व

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 06 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 8:08 AM IST

Sharad Purnima 2025: आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है. इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होकर धरती पर अपनी किरणों से अमृत वर्षा करता है. कहा जाता है कि इस रात चंद्रमा की किरणों में औषधीय और स्वास्थ्यवर्धक गुण होते हैं. इसलिए परंपरा है कि इस रात खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखकर सुबह उसका सेवन किया जाए. यह स्वास्थ्य, सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना गया है. जानते हैं शरद पूर्णिमा से जुड़े महत्वपूर्ण और कुछ दिलचस्प धार्मिक कथाएं. 

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धरती पर आती हैं मां लक्ष्मी

शरद पूर्णिमा की रात को मां लक्ष्मी का विशेष दिन कहा गया है. मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी धरती पर भ्रमण करती हैं और अपने भक्तों को धन-धान्य और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं. इसलिए इस रात जाग कर मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करना अत्यंत शुभ माना जाता है. खासतौर से व्यापारी वर्ग इस दिन को लक्ष्मी की कृपा पाने कि लिए उत्तम अवसर मानता है. 

चंद्रमा की रोशनी होती है अमृत समान

शरद पूर्णिमा की रात को चांद की किरणें अमृत जितनी पवित्र हो जाती हैं. माना जाता है कि इस चांदनी रात की रोशनी में खीर रखना बेहद शुभ होता है. सुबह इस खीर का सेवन करना शरीर और मन को शीतलता, शांति और संतुलन देता है. 

भगवान श्रीकृष्ण ने किया था महारास

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आज से करीब 5200 वर्ष पूर्व भगवान कृष्ण ने शरद पूर्णिमा पर 16108 गोपियों के साथ वृंदावन में यमुना नदी के किनारे स्थित बंसी वट पर महारास किया था. इस महारस को रासलीला भी कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि इस महारस को देखने के लिए चंद्रमा भी ठहर गया था. 

भगवान शिव भी बन गए थे गोपी

पुराणों में इस बात का जिक्र है भगवान भोलेनाथ इस अद्भुत महारास के दर्शन की लालसा लिए ब्रज भूमि आ गए. लेकिन महारस में किसी पुरुष का प्रवेश मना था, इसलिए यमुना महारानी ने भगवान शिव को महारास देखने अंदर नहीं आने दिया. लेकिन भगवान शिव को महारस देखने की इतनी लालसा थी कि उन्होंने श्रृंगार किया और गोपी बन गए. भगवान शिव का यही रूप गोपेश्वर कहलाया. 

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