भक्ति और प्रेम का साकार स्वरूप हैं देवी राधा... पुराणों से लेकर लोककथाओं में शिवजी से क्या है कनेक्शन

राधा का नाम लेते ही श्रीकृष्ण का ध्यान आता है, लेकिन राधा की कथा सिर्फ इतनी भर नहीं है. उनके साथ शिवजी का भी एक जुड़ाव है और लोककथाओं में माना जाता है कि राधा, शिवजी की ही आराधना शक्ति का स्त्री रूप हैं. श्रीकृष्ण में शिवजी की भक्ति का साकार स्वरूप ही राधा हैं.

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शिवजी की भक्ति का साकार स्वरूप में देवीराधा, इसलिए लोककथाओं से होते हुए वह भी परब्रह्म की पदवी तक पहुंच जाती हैं. शिवजी की भक्ति का साकार स्वरूप में देवीराधा, इसलिए लोककथाओं से होते हुए वह भी परब्रह्म की पदवी तक पहुंच जाती हैं.

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 02 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 9:41 PM IST

भारतीय लोककथाओं और पुराणों की परंपरा न सिर्फ बेहद समृद्ध रही है, बल्कि वह कई विविधताओं से भी भरी-पूरी रही है. इन कहानियों में अलग-अलग तरह के अर्थ मिलते हैं जो लोककथाओं और उनसे जुड़े नायक-नायिकाओं की मान्यताओं को और भी व्यापक बना देते हैं.

राधा की लोककथाओं में है व्यापक मान्यता
इन्हीं कथाओं में से एक अद्भुत प्रसंग है शिव और राधा का संबंध. आम तौर पर राधा को केवल श्रीकृष्ण की प्रिया ही बताकर इतिश्री कर ली जाती है, बल्कि कई विद्वान तो ऐसा भी मानते हैं राधा का चरित्र पौराणिक ही नहीं है. फिर भी इस बात को गहराई से देखने पर सामने आता है कि राधा की मान्यताएं लोककथाओं में काफी व्यापक हैं और उनकी कथाएं सिर्फ श्रीकृष्ण से ही नहीं, बल्कि महादेव से भी जुड़ी हुई हैं. कई लोककथाओं में राधा को महादेव से भी जोड़ा गया है. इस कथा की जड़ें ब्रह्मवैवर्त पुराण में दिखाई देती हैं, जिसे बाद की लोककथा ने और भी विस्तार दिया.

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ब्रह्मवैवर्त पुराण में ऐसा जिक्र आता है कि जब श्रीकृष्ण ने सृष्टि की संरचना के क्रम में त्रिदेवों को उनकी सहचरी शक्तियां दी, तब उन्होंने ब्रह्मा को पत्नी के रूप में शारदा और नारायण को लक्ष्मी प्रदान की. इसके बाद उनकी ही इच्छा से योगमाया के जरिये से प्रकृति और दुर्गा का प्राकट्य कराया. वह उन्हें शिवजी को सौंपते इससे पहले ही शिवजी ने बोल पड़े कि, मैं बिना पत्नी या सहचरी के ही रहना चाहता हूं. मैं केवल आपका ध्यान, आपका भजन और योग की शक्ति ही चाहता हूं. इस तरह शिवजी ने समाधि का वरदान मांगा. 

शिवजी को मिला श्रीकृष्ण से वरदान
शिवजी के इस निस्वार्थ भाव से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें आदियोगी का पद दिया, साथ ही यह भी कहा कि, आने वाले युगों में उन्हें दुर्गा के ही रूप में सती और पार्वती संगिनी के रूप में प्राप्त होंगी. इसके लिए उन्हें आपका कठोर व्रत करना होगा और संसार के लिए यह संबंध आदर्श की स्थापना करेगा. 

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लोककथाओं में यह कहा जाता है कि जब शिव ने श्रीकृष्ण से केवल प्रेम और भक्ति मांगी, तब कृष्ण की ही इच्छा से उनके अंश से राधा का प्राकट्य हुआ. अर्थात राधा वास्तव में शिव की ही भक्ति की पराकाष्ठा हैं. यही कारण है कि कई लोकपरंपराओं में राधा को शिव का ही प्रेममय स्वरूप कहा गया है. इस नजरिए से राधा और कृष्ण का प्रेम केवल एक लौकिक संबंध नहीं, बल्कि दिव्य भक्ति और आध्यात्मिक मिलन का प्रतीक है. ब्रह्नमवैवर्त पुराण में यह भी जिक्र आता है कि राधा और शिव दोनों का ही प्राकट्य परब्रह्म श्रीकृष्ण के बाएं ओर से हुआ है. इसलिए दोनों ही एक-दूसरे के स्वरूप मान लिए जाते हैं.

प्रेम का निस्वार्थ स्वरूप हैं देवी राधा
इस कथा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि राधा प्रेम का वह रूप हैं, जिसमें स्वार्थ का कोई स्थान नहीं. प्रेम जो केवल पाने के लिए नहीं, बल्कि अपने आराध्य के सुख-दुख में स्वयं को मिटा देने का नाम है. शिव ने जब भक्ति और ध्यान की मांग की, तो राधा उसी भक्ति की मूर्त अभिव्यक्ति के रूप में सामने आईं. सनातन परंपरा में शक्ति और शिव का संबंध एक-दूसरे के जुड़ाव के साथ माना गया है, यानी कि उन्हें अलग-अलग नहीं कहा जा सकता है. यहां भी यही निष्कर्ष सामने आता है कि, राधा शक्ति का स्वरूप हैं और शिव उस शक्ति के आराधक. इसीलिए जब हम राधा-कृष्ण की लीला का वर्णन करते हैं तो उसके भीतर हमें शिव और शक्ति का शाश्वत मिलन भी दिखाई देता है.

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परमभक्ति का चरम हैं राधारानी का प्रेम
मथुरा-वृंदावन में यह कथा आज भी कही जाती है कि राधा वास्तव में शिव के प्रेम और भक्ति का स्वरूप हैं. वहां के भजन और लोकगीतों में इस बात का जिक्र मिलता है कि शिव ने भक्ति मांगी थी और कृष्ण ने राधा के रूप में वही प्रेम उन्हें प्रदान किया. यही कारण है कि राधा को सिर्फ ब्रज की नायिका या कृष्ण की प्रिय नहीं, बल्कि भक्ति और त्याग की मूर्ति कहा जाता है. यहां एक बात और स्पष्ट होती है कि राधा का अस्तित्व केवल कृष्ण से जुड़ा हुआ नहीं है. वह खुद में एक स्वतंत्र सत्ता हैं, जो शिव के भाव से भी जुड़ती हैं. इसीलिए राधा का प्रेम केवल रोमांटिक या सांसारिक प्रेम नहीं माना जाता, बल्कि इसे परमभक्ति का चरम कहा गया है.

 इस कथा को गहराई से देखें तो समझ आता है कि शिव और राधा का संबंध वास्तव में भक्ति और शक्ति का संबंध है. शिव ने जब संसार के बंधनों से ऊपर उठकर केवल समाधि की इच्छा जताई तो राधा उसी प्रेम और भक्ति का रूप लेकर प्रकट हुईं. यही कारण है कि राधा का नाम आते ही केवल कृष्ण नहीं ध्यान आते, बल्कि त्याग, निस्वार्थ और शक्ति की एक प्रतिमा भी ध्यान में आती है. मथुरा-वृंदावन की गलियों में गूंजते भजनों से लेकर लोककथाओं में कही जाने वाली कथाओं तक, राधा और शिव का यह अद्भुत संबंध आज भी जीवंत है.

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