इस साल पितृपक्ष 7 सितंबर से शुरू होकर 21 सितंबर तक रहेगा. सनातन धर्म में इन 15 दिनों को विशेष महत्व बताया गया है. कहते हैं कि पितृपक्ष के दौरान हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और हमें आशीर्वाद देते हैं. इसलिए इन पवित्र दिनों में पितरों का श्राद्ध और पिंडदान भी किया जाता है. ताकि हमारे पितरों की आत्मा को शांति मिल सके और उनकी कृपा सदैव हम पर बनी रहे.
लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि मुस्लिम धर्म में भी एक रात ऐसी है जब लोग अपने मरहूम पूर्वजों को याद करते हैं. और उनके लिए दुआएं करते हैं. इस रात को शब-ए-बारात कहते हैं. शबे बारात दो शब्दों शब और बारात से मिलकर बना है. शब मतलब रात और बारात मतलब माफी. इसलिए इस रात को मगफिरत यानी माफी की रात भी कहा जाता है.
कई जगहों पर इसे शब-ए-बराअत भी कहा जाता है. शब मतलब रात और बराअत मतलब बरी किया जाना. इसका मतलब जहन्नुम से बरी किए जानए या छुटकारा पाने के लिए दुआ करने से है. यही कारण है कि शबे-बारात पर रात के समय मुस्लिम अपने पूर्वजों की मजार पर जा कर फातिहा पढ़ते हैं. शब-ए-बारात इस्लामिक कैलेंडर की सबसे पवित्र रातों में से एक होती है. इसे शाबान महीने की 15वीं रात को मनाया जाता है. शाबान इस्लामी कैलेंडर का आठवां महीना होता है.
क्या है शब-ए-बारात का इतिहास?
ऐसा माना जाता है कि इस पवित्र रात को पैगंबर हजरत मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) मक्का शरीफ में दाखिल हुए थे. एक ओर मान्यता यह भी है कि उनकी पत्नी हजरत आयशा सिद्दीका (रजि.अ.) ने एक बार उनकी गैर मौजूदगी महसूस की और उन्हें खोजने निकल पड़ीं. बाद में उन्होंने पैगंबर साहब को मदीना के कब्रिस्तान (जन्नतुल बकी) में पाया. जहां वे अपने उम्मत और गुजर चुके लोगों के लिए दुआ और मगफिरत की इबादत में मशगूल थे.
शब-ए-बारात का महत्व
शब-ए-बारात को तौबा और माफी की रात माना जाता है. ऐसा विश्वास है कि इस रात जो लोग सच्चे दिल से दुआ और इबादत करते हैं, अल्लाह उनके गुनाह माफ कर देते हैं. ये रात पूरे साल के लिए रहमत और बरकत लेकर आती है. मुसलमानों का यह भी मानना है कि इस खास रात में अल्लाह अपने बंदों के गुजरे हुए दिनों के कर्मों का हिसाब देखते हैं. इसी रात को आने वाले साल की तकदीर भी तय होती है.
हदीस में भी है शब-ए-बारात का जिक्र
कुरआन शरीफ में शब-ए-बारात का सीधा जिक्र नहीं मिलता है. लेकिन कई हदीसें (पैगंबर हजंरत मोहम्मद की बातें) इस रात की अहमियत को बताती हैं. एक मशहूर हदीस में हजरत आयशा (रजि.अ.) से रिवायत है कि पैगंबर मोहम्मद शाबान की 15वीं रात इबादत और नमाज में गुजारते थे. पैगंबर मोहम्मद ने एक हदीस में फरमाया है कि शाबान की 15वीं रात, अल्लाह अपनी मखलूक (सारी कायनात) की तरफ रहमत की नजर से देखते हैं. इस रात अल्लाह सबको माफ कर देता है. सिवाय उन लोगों के जो अल्लाह के साथ किसी को शरीक ठहराते हैं या जिनके दिलों में दूसरों के लिए दुश्मनी होती है.
एक और हदीस इब्न माजा के मुताबिक, पैगंबर मोहम्मद ने फरमाया है: “जब शाबान की 15वीं रात आती है, अल्लाह तमाम मखलूक को माफ कर देते हैं, सिवाय दो लोगों के. एक वह जो दिल में नफरत रखता हो और दूसरा वह जो नाहक (बेवजह) कत्ल करता हो.
शब-ए-बारात पर क्या करें?
शब-ए-बारात की रात मुसलमानों को इबादत और नेक कामों में वक्त बिताने की सलाह दी जाती है. इस रात को अल्लाह से करीब होने और गुनाहों की माफी मांगने का बेहतरीन मौका माना जाता है.
शबे बारत की रात की इबादत
1- नफ्ल नमाज (अतिरिक्त नमाजें पढ़ना)
2. कुरान की तिलावत
3. दुआ करना
4. तौबा और इस्तिगफार
5. खैरात और नेक काम
शब-ए-बारात की आम नमाजेंं
इस रात के लिए कोई खास फर्ज नमाज मुकर्रर नहीं है, लेकिन कई नफ्ल नमाजें और इबादतें की जाती हैं.
1. सलात-उत-तस्बीह- यह एक खास नमाज है जिसमें हर रकअत में तयशुदा तस्बीह (सुभान अल्लाह, अल्हम्दुलिल्लाह, अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाह) पढ़ी जाती है. इसे शब-ए-बारात पर पढ़ना बहुत अच्छा माना जाता है.
2. नफ्ल नमाजें- लोग अलग-अलग रकअत की नफ्ल नमाज अदा करते हैं. इसकी संख्या तय नहीं होती है. जितना दिल चाहे उतनी अदा की जा सकती हैं.
3. तहज्जुद की नमाज- यह रात की आखिरी हिस्से (आखिरी तिहाई) में अदा की जाने वाली नमाज है. शब-ए-बारात पर तहज्जुद की नमाज पढ़ना बहुत सवाब वाला माना जाता है और इससे अल्लाह की रहमत और हिदायत नसीब होती है.
नाज़िया नाज़