पुराणों में जिक्र, लोककथाओं में मशहूर... मनसा देवी, बिहुला-विषहरी का क्या है शिवजी और श्रीकृष्ण से कनेक्शन

पश्चिम बंगाल से चलकर, आसाम और बिहार व इसके साथ ओडिशा में भी बिहुला-विषहरी की गाथा, थोड़ी बहुत रद्दोबदल के साथ बहुत मशहूर है और नागपंचमी मनाए जाने का कारण भी है. भागवत पुराण में सती बिहुला का जिक्र आता है, जहां वह अपने पूर्व जन्म बाणासुर की पुत्री ऊषा के तौर पर दिखाई देती है. ऊषा का विवाह श्रीकृष्ण के पोते अनिरुद्ध के साथ हुआ था.

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माता मनसा की एक प्रतिमा, जिसमें वह बाल आस्तीक को गोद लिए हुए हैं. माता मनसा की एक प्रतिमा, जिसमें वह बाल आस्तीक को गोद लिए हुए हैं.

विकास पोरवाल

  • नई दिल्ली,
  • 29 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 5:05 PM IST

भारत की उत्सवधर्मी परंपरा इतनी विविधता से भरी हुई है और इसमें लोक मान्यताओं का ऐसा रस घुला हुआ है कि एक बिंदु पर जाकर यह आश्चर्य से भरपूर और अबूझ लगने लगती है. हालांकि इन परंपराओं में 'जियो और जीने दो' का असाधारण ध्येय वाक्य तो नजर आता है, लेकिन आज की पीढ़ी को ऐसी मान्यताओं पर एक बारगी विश्वास नहीं होता है. इसकी एक वजह यह भी है कि लोककथाएं लोक की भाषा में रची-बसी थीं. लेखन लिपि के बजाय उसे सीधे-सरल लोगों के द्वारा उनकी अपनी ही शैली में सिर्फ बोला गया. इन्हें लिखने और लिख कर संकलित करने की जरूरत बहुत बाद में पड़ीं, लिहाजा ये तार्किक कम चमत्कारिक ज्यादा बन गईं, लेकिन समय के साथ इनकी मान्यताओं में कमी नहीं आई है. नागपंचमी का त्योहार ऐसा ही लोक उत्सव है.

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शिवशंकर की जटा से जन्मी नागिन
इसमें नागों को देवता मानना, उनमें दैवीय शक्ति का कल्पना करना और उन्हें रक्षक शक्ति के तौर पर देखने की दिलचस्प और बेजोड़ अवधारणा मिलती है. नागपंचमी से जुड़ी मान्यताओं में सबसे चर्चित प्रसंग बिहुला और विषहरी का आता है. बिहुला एक सती नारी थी. विषहरी शंकर जी की जटा से जन्मी एक नागिन थी, जिसकी चार नागिन बहनें और भी थीं और इनमें ही एक मनसा भी थी. जिसे मनसा विषहरी कहा जाता है और इनका एक और नाम जरत्कारु था. महाभारत में मनसा जरत्कारु का जिक्र एक दयालु, वीर, रक्षिका और अर्धदेवी के तौर पर होता है, जो आस्तीक मुनि की माता थीं. शेषनाग की बहन थीं और विष हरने के कारण पूजनीय हो गई हैं. मनसा देवी की नाग माता के तौर पर कई जगहों पर पूजा की जाती है और उन्हें देवी दुर्गा की ही एक शक्ति के तौर पर देखा जाता है.

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बिहुला-विषहरी की लोक कथा
लेकिन, पश्चिम बंगाल से चलकर, आसाम और बिहार व इसके साथ ओडिशा में भी बिहुला-विषहरी की गाथा, थोड़ी बहुत रद्दोबदल के साथ बहुत मशहूर है और नागपंचमी मनाए जाने का कारण भी है. भागवत पुराण में सती बिहुला का जिक्र आता है, जहां वह अपने पूर्व जन्म बाणासुर की पुत्री ऊषा के तौर पर दिखाई देती है. ऊषा का विवाह श्रीकृष्ण के पोते अनिरुद्ध के साथ हुआ था. ऊषा और अनिरुद्ध दोनों ही तीरंदाजी में निपुण थे. विवाह के उत्सव के दौरान यूं ही अनिरुद्ध और ऊषा की तीरंदाजी की चर्चा चल पड़ी. बात यहां तक आ पहुंची कि दोनों में से किसका निशाना सटीक है? इसके लिए प्रतिस्पर्धा रखी गई. कहा गया कि तीरंदाजी से पहले दोनों ही कोई एक प्रण लो. इस पर अनिरुद्ध ने काल के वश में आकर कह दिया कि अगर मेरा निशाना चूका तो मैं दोबारा जन्म लूंगा. ऊषा ने यह सुना तो उसने भी कहा- मैं उस जन्म में भी आपकी पत्नी बनूंगी.

बिहुला और बाला लखेंद्र के पूर्व जन्म की कथा
अभी यह बातें चल ही रही थीं कि कान तक कमान खींचे अनिरुद्ध के हाथ से गलती से तीर चल गया, उसने निशाना नहीं लगाया था, लेकिन तीर तो धनुष से छूट ही चुका था, वह गलत जगह जाकर लग गया. प्रण के अनुसार अनिरुद्ध को अब अगले जन्म की प्रतीक्षा करनी थी. ऊषा ने भी पति प्रेम में सही निशाना नहीं लगाया और वह भी अगले जन्म की प्रतीक्षा करने लगी. समय बीता, अनिरुद्ध अंग प्रदेश के चंपानगरी में रहने वाले एक व्यापारी चांदौ सौदागर का बेटा बाला लखेंद्र बनके जन्मा और ऊषा का अगला जन्म बिहुला के रूप में हुआ. यहां तक की कथा तो भागवत पुराण का हिस्सा है और इसे शिव पुराण-पद्म पुराण में भी जगह मिली है, लेकिन इसके बाद जो कथा है वह बंगाल की 'जात्रा' जो एक लोक नाट्य परंपरा है, उसमें मिलती है. 

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बंगाली साहित्य मनसा मंगल काव्य में जिक्र
पश्चिम बंगाल के लोक साहित्य 'मनसा मंगल काव्य' में मनसा को विषहरी के रूप में बताने के साथ उसे निगेटिव एनर्जी के तौर पर दिखाया गया है और बिहुला को रक्षिका के तौर पर. पूजा भी बिहुला की होती है, लेकिन बिहुला को इस उच्च पद पर पहुंचाने वाली मनसा विषहरी ही थी, इसलिए वह भी पूजनीय बन गई. इस तरह मनसा माता पहले एक क्रूर और निगेटिव किरदार के तौर पर दिखती हैं और बाद में मन बदलने पर पवित्र आत्मा बन जाती हैं और पूजनीय हो जाती हैं. 

मनसा देवी के जन्म की भी कई कहानियां हैं. लोककथाओं की मानें तो उनका जन्म भगवान शिव की जटा से हुआ था. मनसा मंगल काव्य (बंगाली लोक साहित्य) में आता है कि बाबा शिवजी (महादेव शिव) सोनदह तालाब में स्नान कर रहे थे. उनकी जटा से टूटे पांच बालों से पांच कमल खिल गए और उनमें से ही पांच नगिनियों (नागिन) का जन्म हुआ. इनके नाम थे, मैना, बिहुला, भवानी, विषहर और पद्मा. इसमें विषहर ही आगे चलकर मनसा देवी के नाम से विख्यात हुईं.

उत्तर भारतीय लोक कथाओं में मनसा की मान्यता
इसी तरह मनसा देवी के जन्म को लेकर पौराणिक कथाओं के सहयोग से उत्तर भारत में रची गई लोककथाएं कुछ और कहती हैं. इनमें कहा जाता है कि नाग माता कद्रू ने एक बार एक कन्या की प्रतिमा बनाई थी. एक बार खेल-खेल में देवी पार्वती ने भगवान शिव के नेत्र बंद कर दिए, इससे भगवान की तीसरी आंख खुल गई और उसकी ज्वाला से अंधक का जन्म हुआ. इस ज्वाला की गर्मी से ही महादेव को पसीना आया और मस्तक से टपका उनकी पसीना पाताल लोक में जा गिरा और इसी कन्या की प्रतिमा पर गिर गया. इससे प्रतिमा जीवंत हो गई और 9 वर्ष की बिटिया बन गई. शेषनाग ने उसे अपनी पुत्री की तरह पाल लिया और वह मस्तक से गिरे पसीने के कारण मनसा कहलाई. शिव जी ने उसे अपनी पुत्री के तौर पर मान्यता दी.

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क्या है देवी मनसा की जन्म कथा
कुछ फेरबदल के साथ एक और कहानी लगभग इसी से मिलती-जुलती है. शिवजी के क्रोध के कारण टपका पसीना वासुकि नाग के फन पर गिरा और विष से मिलकर धरती पर गिरा. धरती उस तेज को सहन नहीं कर पाई तो उसने उसे अपनी भीतर समा लिया और पाताल में भेज दिया. पाताल में जाकर उस विष मिले पसीने की बूंद एक नवजात बच्चे में बदल गई और जैसे-जैसे नया जन्मा बच्चा रोता है, वैसे वह कन्या रोने लगी. वासुकि नाग ने कन्या को रूदन सुना तो उनका मन पिघल गया. वह भगवान शिव के पास आकर बोले, प्रभु, नागों की कोई बहन नहीं है. इसका जन्म आपके पसीने से हुआ है और इसमें मेरा विष भी मिल गया है. इस तरह इसमें मेरा भी अंश है. मैं इसे आपकी पुत्री मानकर पालूंगा और अपनी बहन के समान इसकी रक्षा करूंगा. इसका जन्म आपकी ही इच्छा से हुआ है, इसलिए यह मनसा कहलाएगी.

महाभारत में मनसा की कथा
महाभारत की कथा कहती है कि वासुकि नाग ने कन्या को लगातार रोते सुना तो बोले- लगता है यह कन्या रो-रो कर (कारू, संस्कृत में रोने के लिए एक शब्द) खुद को जर (यानी क्षीण) कर देना चाहती है, इसलिए इसका नाम जरत्कारु भी होगा. इस तरह वासुकि नाग की उस बहन का नाम जरत्कारु हो गया. आगे चलकर जब कद्रू ने नागों को आग में भस्म होने का श्राप दिया तब ब्रह्ना जी ने कहा- वासुकि नाग की बहन ही नागों का कल्याण करेगी. वह अपने ही नाम वाले ऋषि से विवाह करेगी और उनका पुत्र आस्तीक नागों को यज्ञ में विध्वंस होने से बचाएगा. इस तरह जो भी आस्तीक, मनसा, जरत्कारु और जनमेजय का नाम लेगा. उन्हें सर्प भय नहीं होगा. नागपंचमी मनाने की एक वजह यह कथा भी है.

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