Guru Nanak Jayanti 2025: गुरु नानक जयंती 5 नवंबर यानी आज मनाई जा रही है. कहते हैं कि गुरु नानक देव ने अपने पूरे जीवन काल में 'इक ओंकार' का संदेश फैलाया था जिसका अर्थ है 'एक ईश्वर'. यही सिख धर्म का मूल सिद्धांत भी है. पूरे जीवन में गुरु नानक देव जहां भी गए, वहां उन्होंने लोगों को कोई न कोई उपदेश या सीख दी है. इन्हीं सीख से संबंधित आज हम गुरु नानक देव से जुड़ी एक कहानी के बारे में बताएंगे जो कुछ न कुछ शिक्षा देकर जाएगी. तो चलिए जानते हैं क्या है पूरी कहानी.
जब गुरु नानक देव ने दी थी धनी व्यक्ति को सुई
गुरु नानक बेहद बहुत ही दयालु व्यक्ति थे. गुरु नानक हमेशा एक गांव से दूसरे गांव की पैदल यात्रा करते रहते थे और लोगों को उपदेश और शिक्षा देते रहते थे. वह अच्छी तरह से जानते थे कि कब सख्त होना है और कब शांत रहना है. तो एक बार गुरु नानक एक धनी व्यक्ति के यहां मेहमान बनकर पहुंचे. कुछ दिन ठहरने के बाद जब नानक चलने लगे तो उन्होंने उस धनी आदमी को एक सुई दी और कहा कि इसे अपने पास रखना. जब कभी मुझसे दोबारा मिलो तो इसे मुझे वापस कर देना.
गुरु नानक देव के जाने के बाद उस धनी आदमी ने यह बात अपनी पत्नी के साथ साझा की. पत्नी ने नाराज होते हुए कहा कि 'तुमने एक गुरु से यह सुई क्यों ली. मान लो वह नहीं रहे तो तुम उन्हें यह सुई कैसे लौटाओगे? उनके जैसे शख्स की सेवा करना ठीक है लेकिन उनसे कुछ भी लेना गलत बात है. अगर उनकी मौत हो गई तो तुम हमेशा के लिए उनके कर्जदार हो जाओगे. इसलिए, गुरु जी को ढूंढकर तुरंत यह सुई उन्हें वापस कर दो.' वह रईस आदमी गुरु की खोज में निकल पड़ा.
गुरु नानक ने दी ये शिक्षा
दो महीने बाद उसने नानक को ढूंढ लिया और कहा - 'गुरु जी, मैं इस सुई को अपने पास नहीं रखना चाहता. अगर आपकी मृत्यु हो गई तो मैं आपका हमेशा के लिए कर्जदार हो जाऊंगा. और न मैं इस सुई को स्वर्ग साथ लेकर जाने वाला हूं. गुरु जी बोले कि तुम जानते हो कि इस सुई को स्वर्ग में अपने साथ नहीं ले जा सकते? आदमी बोला हां. फिर, नानक ने कहा कि अगर तुम एक सुई तक अपने साथ लेकर नहीं जा सकते तो इस धन दौलत का क्या जो तुम एकत्र कर रहे हो, उसे भी तो तुम लेकर नहीं जा पाओगे.' उस धनी आदमी को गुरु नानक से शिक्षा मिल गई और वह उनके चरणों में गिर गया.
घर लौटकर उसने केवल उतना ही पैसा रखा जितने की उसे और उसके परिवार को आवश्यकता थी. इसके बाद उसने खुद को उन कामों के लिए समर्पित कर दिया जिनकी समाज को जरूरत थी. हर व्यक्ति को अपने मन में यह तय करना होगा कि मेरी जरूरतें क्या हैं. अपनी क्षमताओं के हिसाब से ही चीजें एकत्रित करें बाकि दूसरों की भलाई में लगा दें और मदद करें.
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