जब गीता या श्रीमद्भागवत गीता की बात आती है तो हम श्रीकृष्ण के द्वारा कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन के द्वारा सुनाई गई गीता को ही जानते हैं. सामान्य तौर पर बात भी उसी गीता की होती है, लेकिन इस गीता के अलावा एक और गीता है जो भगवान गणेश के द्वारा सुनाई गई थी. हालांकि लिखित कालखंड के आधार पर यह तय नहीं किया जा सकता है कि गणेश गीता का समय किस दौर का है, लेकिन पौराणिक आधार पर माना जाता है कि गणेश गीता की घटना द्वापर युग से पहले की है और श्रीगणेश ने कृष्ण जी से पहले ही एक राजा को गीता का ज्ञान दिया था.
श्री गणेश गीता की कथा का वर्णन गणेश पुराण के क्रीडा खंड में आता है. यह कथा भगवान गणेश द्वारा राजा वरेण्य को दिए गए दैवीय उपदेशों और उनके आध्यात्मिक महत्व के तौर पर सामने आती है. यह कथा राजा वरेण्य और भगवान गणेश के बीच संवाद के रूप में सामने आई है.
कथा के अनुसार धरती पर धर्म के प्रतीक एक राजा हुए वरेण्य. वह एक धर्मनिष्ठ और पुण्यात्मा राजा थे. उनकी पत्नी रानी पुष्पिका भगवान गणेश की परम भक्त थीं. राजा-रानी की भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान गणेश ने उन्हें वरदान दिया कि वे उनके पुत्र के रूप में अवतार लेंगे. इस वरदान के परिणामस्वरूप, गणेश ने गजानन रूप में रानी पुष्पिका के गर्भ से जन्म लिया. लेकिन इस जन्म के समय एक घटना घट गई.
प्रसव की पीड़ा के कारण रानी पुष्पिका मूर्छित हो गईं, और उसी समय एक राक्षसी उनके नवजात पुत्र को उठाकर ले गई. वह गणेशजी को मारना चाहती थी, लेकिन असफल रही. उसी समय भगवान शिव के गणों ने नवजात गजानन को रानी के पास पहुंचाया, लेकिन गजानन का चतुर्भुज, गजमुख स्वरूप देखकर रानी भयभीत हो गईं. राजा वरेण्य को यह सूचना मिली कि उनका पुत्र असामान्य रूप में पैदा हुआ है, जिसे उन्होंने राज्य के लिए अशुभ माना. इस तरह ज्ञान के अभाव में राजा ने गजानन को जंगल में छुड़वा दिया. जंगल में त्यागे गए गजानन को महर्षि पराशर अपनी कुटिया में ले आए और उनके शुभ लक्षणों को पहचानकर उन्हें अपने आश्रम में ले जाकर पालन-पोषण किया. पराशर और उनकी पत्नी वत्सला ने गजानन का लालन-पालन किया और उन्हें आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान की.
श्रीगणेश का गजानन रूप और सिन्दूरा दैत्य का वध
उसी समय, त्रिलोक में सिन्दूरा नाम के एक दैत्य ने आतंक मचा रखा था. देवराज इंद्र सहित सभी देवता उसके अत्याचारों से परेशान हो उठे तो सभी ब्रह्मा जी के पास पहुंचे. ब्रह्माजी ने देवताओं को सलाह दी कि वे श्रीगणेश की शरण में जाने की सलाह दी. देवताओं और ऋषियों की प्रार्थना पर भगवान गणेश ने गजानन रूप में सिन्दूरा से युद्ध किया और उसका का वध किया. इस विजय ने उन्हें गजानन रूप में मान्यता प्रदान की.
इधर राजा को सारे सत्य का पता चला तो वह पश्चाताप करने लगा. यह जानकर की उनका पुत्र ही गणेशजी के आशीर्वाद के रूप में उनका ही अवतार है तो वह दुखी हो उठे और बार-बार क्षमा मांगने लगे. उन्होंने अपनी अज्ञानता के लिए प्रायश्चित करने की इच्छा व्यक्त की. गणेशजी की करुणा और दया को देखकर राजा वरेण्य ने उनसे मुक्ति का मार्ग बताने की प्रार्थना की. वरेण्य ने कहा, "हे गजानन, सर्वशास्त्रों और विद्याओं के ज्ञाता, मेरे अज्ञान को दूर करके मुझे मुक्ति का मार्ग दिखाएं."
उनकी दीनता और भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान गणेश ने उन्हें गणेश गीता का उपदेश दिया, जो गणेश पुराण के क्रीडा खंड में 11 अध्यायों और 412 श्लोकों में वर्णित है. यह ग्रंथ श्रीमद्भगवद्गीता के समान है, लेकिन इसमें गणेशजी के नजरिए से आध्यात्मिक और दार्शनिक शिक्षाएं दी गई हैं.
गणेश गीता के प्रमुख अध्याय और शिक्षाएं
गणेश गीता में 11 अध्याय हैं, जिनमें कई आध्यात्मिक विषयों पर चर्चा की गई है.
सांख्यसारार्थ योग (प्रथम अध्याय): इस अध्याय में गणेश ने राजा वरेण्य को सांख्य योग का उपदेश दिया. उन्होंने बताया कि आत्मा और प्रकृति का ज्ञान ही मोक्ष का आधार है. आत्मा अविनाशी है, जबकि शरीर नश्वर है. सांख्य दर्शन के माध्यम से गणेश ने शांति का मार्ग बताया.
कर्मयोग (द्वितीय अध्याय): इस अध्याय में कर्मयोग का महत्व समझाया गया है. गणेश ने राजा को सिखाया कि निष्काम कर्म ही सच्चा कर्म है. कर्मों को भगवान को समर्पित करके मनुष्य बंधनों से मुक्त हो सकता है.
अवतार रहस्य (तृतीय अध्याय): गणेश ने अपने अवतारों के रहस्य का खुलासा किया. उन्होंने बताया कि वे विभिन्न रूपों में जीवों की रक्षा और मार्गदर्शन के लिए अवतरित होते हैं.
ज्ञानयोग (चतुर्थ अध्याय): ज्ञानयोग के माध्यम से गणेश ने आत्मज्ञान और ईश्वर के स्वरूप को समझाया. उन्होंने कहा कि सच्चा ज्ञान वही है, जो मनुष्य को अहंकार और माया से मुक्त करता है.
ध्यानयोग (पंचम अध्याय): इस अध्याय में ध्यान और योग की महत्ता पर प्रकाश डाला गया. गणेश ने बताया कि ध्यान के माध्यम से मनुष्य अपने मन को नियंत्रित कर सकता है और ईश्वर से एकाकार हो सकता है.
बुद्धियोग (षष्ठम अध्याय): गणेश ने राजा वरेण्य को बताया कि सत्कर्मों के प्रभाव से ही मनुष्य में ईश्वर को जानने की इच्छा जागृत होती है. उन्होंने कहा, "जैसा भाव होता है, वैसी ही इच्छा मैं पूर्ण करता हूं. जो मेरी शरण में आता है, उसका योग-क्षेम मैं स्वयं वहन करता हूं."
उपासनायोग (सप्तम अध्याय): इस अध्याय में भक्तियोग का वर्णन है. गणेश ने भक्ति के महत्व को समझाया और बताया कि सच्ची भक्ति से भक्त ईश्वर से एकाकार हो जाता है.
विश्वरूपदर्शनयोग (अष्टम अध्याय): गणेश ने राजा वरेण्य को अपने विराट रूप का दर्शन कराया. यह दर्शन राजा को ईश्वर की सर्वव्यापकता और महानता का बोध कराने के लिए था.
क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ योग (नवम अध्याय): इस अध्याय में क्षेत्र (शरीर) और क्षेत्रज्ञ (आत्मा) के ज्ञान के साथ-साथ सत्व, रज, और तम गुणों का परिचय दिया गया. गणेश ने बताया कि इन गुणों को समझकर मनुष्य अपने स्वभाव को शुद्ध कर सकता है.
दैवी-आसुरी प्रकृति (दशम अध्याय): गणेश ने दैवी, आसुरी और राक्षसी स्वभाव के लक्षण बताए. उन्होंने कहा कि काम, क्रोध, लोभ और दंभ नरक के द्वार हैं, जिन्हें त्यागकर दैवी प्रकृति को अपनाना चाहिए.
मोक्षयोग (एकादश अध्याय): अंतिम अध्याय में मोक्ष के मार्ग का वर्णन है. गणेश ने बताया कि योग, भक्ति और ज्ञान के संयोजन से मनुष्य मोक्ष प्राप्त कर सकता है.
गणेश गीता और भगवद्गीता में अंतर
श्रीगणेश गीता और श्रीमद्भगवद्गीता में कई समानताएं हैं, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण अंतर भी हैं.भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के मैदान में, मोह और कर्तव्यभूल की स्थिति में उपदेश दिया था, जबकि गणेश गीता में गणेश ने युद्ध के बाद राजा वरेण्य को, जो पहले से ही चेतन और धर्मनिष्ठ थे, उपदेश दिया. भगवद्गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं, जबकि गणेश गीता में 11 अध्याय और 412 श्लोक हैं.
गणेश गीता का उपदेश गजानन रूप में हुआ, जो गणेश का एक शक्तिशाली और दैवीय अवतार है. यह उपदेश राजा वरेण्य की मुक्ति की इच्छा को पूर्ण करने के लिए था, जबकि भगवद्गीता का उद्देश्य अर्जुन को उनके कर्तव्य का बोध कराना था. गीता के उपदेश को सुनने के बाद राजा वरेण्य का मन वैराग्य की ओर अग्रसर हुआ. उन्होंने अपने पुत्र को राज्य सौंपकर वन में तपस्या करने का निर्णय लिया. गणेश पुराण के अनुसार, "यथा जलं जले क्षिप्तं जलमेव हि जायते, तथा तद्ध्यानत: सोऽपि तन्मयत्वमुपाययौ." अर्थात, जिस प्रकार जल जल में मिलकर जल ही हो जाता है, उसी प्रकार गणेश का ध्यान करते हुए राजा वरेण्य भी ब्रह्म में लीन हो गए.
राजा वरेण्य ने योग और ध्यान के माध्यम से मोक्ष प्राप्त किया. उनकी भक्ति, गणेश के प्रति श्रद्धा और गणेश गीता के ज्ञान ने उन्हें संसार के बंधनों से मुक्त कर दिया.गणेश गीता का महत्वगणेश गीता हिंदू दर्शन का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो भक्ति, कर्म, ज्ञान और योग के मार्ग को सरलता से समझाता है. गणेश गीता का प्रत्येक अध्याय जीवन के विभिन्न पहलुओं को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखने की प्रेरणा देता है.
विकास पोरवाल