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धर्म

अमेरिका को ललकार: ईरान ने मस्जिद पर क्यों लहराया लाल झंडा?

aajtak.in
  • 05 जनवरी 2020,
  • अपडेटेड 11:12 AM IST
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अमेरिका और ईरान के बीच कई वर्षों से चली आ रही खींचतान कासिम सुलेमानी की हत्या के साथ ही जंग में बदल चुकी है. अमेरिकी एयर स्ट्राइक में अपने कमांडर को खोने के बाद ईरान तिलमिला गया है और उसने सुलेमानी की मौत के 48 घंटे के अंदर ही अमेरिका से बदला लेना शुरू कर दिया है. इसके साथ ही ईरान ने कोम शहर की एक मस्जिद पर लाल झंडा लहरा दिया है, जिसे जंग का ऐलान माना जा रहा है.

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इस लाल झंडे को जंग का ऐलान इसलिए माना रहा है क्योंकि इस्लामिक इतिहास में इसकी परंपरा रही है. अरब जगत में यह दस्तूर रहा है कि अगर किसी का कत्ल कर दिया गया हो तो उसकी कब्र पर लाल झंडा लगाया जाता है, जिसका मतलब होता है कि मरने वाले का वारिस मौजूद है जो मौत का इंतकाम (बदला) लेगा.

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इस मसले पर aajtak.in ने शिया धर्मगुरु मौलाना कमाल से बातचीत की. मौलाना कमाल ने बताया कि पूरे अरब जगत में इस तरह की परंपरा रही है. अगर दुश्मन किसी शख्स का कत्ल कर देता था तो मरने वाले के करीबी कब्र पर लाल झंडा लगा देते थे. ये झंडा इस बात का प्रतीक होता था कि जिस शख्स को मारा गया है उसके वारिस अभी मौजूद हैं, जो उसकी मौत का बदला लेंगे.

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उसी परंपरा के अनुरूप अमेरिका की एयर स्ट्राइक में ईरानी कमांडर कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद शनिवार (4 दिसंबर) को ईरान के कोम शहर की जामकरन मस्जिद पर लाल झंडा लहराया गया है.

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मौलाना कमाल ने बताया कि परंपरा के मुताबिक, मौत का बदला लेने के लिए लाल झंडा कब्र पर लगाया जाता है, लेकिन अभी तक कासिम सुलेमानी को दफनाया नहीं गया है, ऐसे में मस्जिद से लाल झंडा फहराकर इंतकाम का ऐलान किया गया है.

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इमाम हुसैन के रौज़ा पर लगा है लाल झंडा

इराक के कर्बला शहर में इमाम हुसैन का रौज़ा है, जहां उनकी कब्र है. मौलाना कमाल ने बताया कि इमाम हुसैन की कब्र पर भी यह लाल झंडा लगाया गया है ताकि दुनिया को पता चल सके कि इनके वारिस अभी मौजूद हैं, जो उनकी शहादत का बदला लेंगे.

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बता दें कि इमाम हुसैन को दुश्मनों ने कर्बला शहर में ही शहीद किया था. इस्लामिक इतिहास के मुताबिक, वालिद (पिता) हजरत अली और बड़े भाई इमाम हसन की शहादत के बाद इमाम हुसैन सऊदी से कर्बला चले गए थे, जहां उन्हें दुश्मन यजीद का सामना करना पड़ा.

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इमाम हुसैन का काफिला बहुत छोटा था, जिसमें बच्चे और महिलाएं भी थीं. यजीद चाहता था कि इमाम हुसैन उनकी सत्ता को स्वीकारे, लेकिन इमाम हुसैन ने ऐसा नहीं किया, जिसके चलते यजीद ने उनका कत्ल करा दिया.

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इस्लामिक इतिहास में इमाम हुसैन और उनके काफिले के कत्ल को सबसे बड़ा जुल्म माना जाता है. इमाम हुसैन की शहादत कर्बला में हुई थी, जहां उनकी कब्र है और उस पर लाल झंडा लगा रहता है.

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अब जबकि अमेरिका ने ईरान के दूसरे बड़े शख्स कासिम सुलेमानी को मार गिराया है, तो ईरान पूरे तरीके से इंतकाम की आग में जल रहा है. उसने कोम शहर की मस्जिद से लाल झंडा लहराकर बदले का ऐलान भी कर दिया है.

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