25 दिसंबर आते ही पूरी दुनिया में क्रिसमस की रौनक छा जाती है. ईसा मसीह के जन्मदिन के रूप में मनाया जाने वाला ये दिन आस्था, विश्वास और इतिहास से जुड़े कई सवाल भी अपने साथ लाता है. क्या वाकई ईसा मसीह का जन्म 25 दिसंबर को हुआ था या ये तारीख समय के साथ तय की गई एक धार्मिक परंपरा है? यही सवाल हाल ही में दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में हुई एक खास बहस के केंद्र में रहा.
शनिवार को दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में मशहूर शायर-गीतकार जावेद अख्तर और इस्लामिक स्कॉलर मुफ्ती शमाइल नदवी के बीच ‘ईश्वर के अस्तित्व’ और धार्मिक इतिहास को लेकर एक अकादमिक चर्चा हुई, जिसमें ईसा मसीह के जन्म की तारीख से जुड़ा सवाल भी उठा. खुद को नास्तिक मानने वाले जावेद साहब ने भगवान ना होने के तर्क रखे, तो वहीं मुफ्ती शमाइल नदवी ने भगवान के प्रमाणों को लेकर तर्क दुनिया के सामने रखे. इस बहस में जावेद अख्तर ने 25 दिसंबर को ईसा मसीह के जन्म को लेकर भी तर्क रखे और कहा कि इस तारीख को लेकर ऐतिहासिक प्रमाणों पर सवाल उठते रहे हैं.
जावेद अख्तर ने क्या कहा?
जावेद अख्तर ने इंसानी दुख, दर्द और ईश्वर की अवधारणा पर सवाल उठाए. उन्होंने गाजा युद्ध का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां हजारों मासूम लोग, खासकर बच्चे मारे गए हैं. ऐसे हालात में दयालु और सर्वशक्तिमान ईश्वर की बात उन्हें समझ में नहीं आती.
उनका कहना था कि अगर ईश्वर सर्वशक्तिमान है और हर जगह मौजूद है, तो वह गाजा में भी मौजूद होगा. उसने बच्चों को बमबारी में मरते देखा होगा. फिर भी अगर वो कुछ नहीं करता, तो ऐसे ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास करना मुश्किल हो जाता है.
जावेद अख्तर ने तंज कसते हुए कहा कि 'इससे बेहतर तो हमारे प्रधानमंत्री हैं, कम से कम कुछ तो ख्याल रखते हैं.' उन्होंने ये भी कहा कि हर सवाल आखिर में ईश्वर पर आकर क्यों रुक जाता है. सवाल पूछना क्यों बंद कर दिया जाता है. अगर कोई ईश्वर बच्चों को इस तरह मरने देता है, तो उसके होने या न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता.
धर्म के नाम पर हिंसा पर जावेद अख्तर की बात
जावेद अख्तर ने बार-बार इस बात पर जोर दिया कि धर्म के नाम पर हिंसा सबसे बड़ा सवाल है. उन्होंने पूछा कि ऐसा कौन सा ईश्वर है जो मासूम बच्चों की मौत देखता है और चुप रहता है. उनके मुताबिक, अगर ईश्वर है और फिर भी ऐसा होने देता है, तो उस पर आंख मूंदकर भरोसा करना गलत है.
मुफ्ती शमाइल नदवी ने क्या जवाब दिया?
मुफ्ती शमाइल नदवी ने जावेद अख्तर की बातों से अलग नजरिया रखा. उन्होंने कहा कि इन सबकी जिम्मेदारी ईश्वर पर नहीं, इंसान के कर्मों पर है. उनके मुताबिक, ईश्वर ने इंसान को सोचने और चुनने की आजादी दी है. जब इंसान इस आजादी का गलत इस्तेमाल करता है, तभी हिंसा, युद्ध और अपराध होते हैं. बलात्कार, हत्या या जंग ईश्वर की इच्छा नहीं, बल्कि इंसान के फैसलों का नतीजा हैं.
मुफ्ती नदवी ने कहा कि ईश्वर ने बुराई को पैदा जरूर किया है, लेकिन वह खुद बुरा नहीं है. जो लोग अपनी मर्जी से गलत रास्ता चुनते हैं, वही इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं. चर्चा की शुरुआत में मुफ्ती नदवी ने कहा कि ईश्वर को न तो विज्ञान पूरी तरह समझा सकता है और न ही सिर्फ धर्मग्रंथ.
उनके अनुसार, विज्ञान ये बताता है कि दुनिया कैसे चलती है, लेकिन यह नहीं बताता कि ये दुनिया क्यों बनी. उन्होंने ये भी कहा कि वैज्ञानिक खोजें ईश्वर की जरूरत को खत्म नहीं करतीं, बल्कि वे सिर्फ भौतिक दुनिया को समझने में मदद करती हैं.
बहस के बीच उठा क्रिसमस से जुड़ा सवाल
जावेद अख्तर और मौलवी के बीच हुई तीखी बहस के बाद एक शख्स ने जावेद साहब से एक दिलचस्प सवाल किया. उसने कहा कि जो लोग ईश्वर में विश्वास करते हैं, उनके पास अपने-अपने त्योहार और सोशल गेट-टुगेदर होते हैं. जैसे क्रिसमस, होली, दिवाली और ईद. इन मौकों पर लोग मिलते हैं, खुशियां मनाते हैं और एक-दूसरे के करीब आते हैं.
लेकिन अगर कोई धार्मिक सोच छोड़कर एथिस्ट (नास्तिक) बनना चाहता है, तो उसे वहां क्या मिलेगा? क्या एथिस्ट लोगों के पास भी ऐसे ही त्योहार या सामाजिक समारोह होते हैं? उसने कहा कि वो आस्तिक से नास्तिक बनना चाहता है, लेकिन उसे कोई खास आकर्षण नजर नहीं आता.
जावेद अख्तर ने क्रिसमस का ऐतिहासिक किस्सा सुनाकर दिया जवाब
इस सवाल का जवाब देते हुए जावेद अख्तर ने सीधा तर्क देने के बजाय एक ऐतिहासिक किस्सा सुनाया. उन्होंने कहा कि यहां इतिहासकार भी मौजूद हैं और जरूरत पड़े तो वे पुष्टि भी कर सकते हैं. इसके बाद उन्होंने रोमन राजा कॉन्स्टेंटाइन की कहानी सुनाई.
उन्होंने बताया कि एक रोमन राजा था, जिसका नाम कॉन्स्टेंटाइन था. क्रिश्चियनिटी आए करीब 400 साल हो चुके थे, जब उसने फैसला किया कि वह ईसाई धर्म अपनाएगा. उस जमाने में ऐसा ही होता था कि राजा जिस धर्म को मान लेता था, पूरी जनता भी वही धर्म अपना लेती थी.
जावेद अख्तर ने अनुसार, कॉन्स्टेंटाइन के क्रिश्चियनिटी अपनाने के पीछे असल वजह ये थी कि वो बैंकरप्ट (दिवालिया) हो चुका था. सीधे शब्दों में समझें तो उसकी आर्थिक हालत खराब हो चुकी थी. उसे मेडिटेरियन इलाके के अमीर ईसाई व्यापारियों से पैसे की जरूरत थी. इसी कारण उसने सोचा कि ईसाई बन जाना ही ठीक रहेगा.
राजा ने अपने वजीर से कहा कि अब राज्य ईसाई धर्म अपना लेगा. वजीर ने कहा, 'कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन एक समस्या है.' उसने बताया कि 17 दिसंबर से 25 दिसंबर तक एक बड़ा पेगन फेस्टिवल होता है, जिसे लोग बहुत एंजॉय करते हैं. खासकर बच्चे इसका बेसब्री से इंतजार करते हैं और 25 दिसंबर उसका सबसे बड़ा दिन होता है. वजीर ने कहा कि अगर हम ईसाई बन गए, तो ये त्योहार बंद हो जाएगा और लोगों को, खासकर बच्चों को, बहुत बुरा लगेगा. इस पर राजा ने कहा कि बात तो सही है. फिर उसने पूछा, 'वैसे यीशु मसीह का जन्म कब हुआ था?'
जवाब मिला, 'असल में उनका जन्म अप्रैल में हुआ था.' राजा ने तुरंत कहा, 'नहीं, अब ऐसा नहीं होगा. उनका जन्म 25 दिसंबर को ही माना जाएगा.' जावेद अख्तर ने कहा कि यही हकीकत है.
क्या सच में 25 दिसंबर को हुआ था ईसा मसीह का जन्म?
जावेद अख्तर की इस बात को लेकर अब सवाल उठता है कि क्या वाकई ईसा मसीह का जन्म 25 दिसंबर को हुआ था? Britannica के अनुसार, शुरुआत में ईसाई ईसा मसीह का जन्मदिन नहीं मनाते थे और ये तय नहीं है कि उनका जन्म किस तारीख को हुआ. कई इतिहासकार मानते हैं कि उनका जन्म वसंत ऋतु (मार्च-अप्रैल) के आसपास हुआ होगा.
Britannica में बताया गया है कि 25 दिसंबर की तारीख रोमन साम्राज्य के पुराने त्योहारों से जुड़ी है. उस समय Sol Invictus (सूर्य देवता) और Saturnalia जैसे त्योहार मनाए जाते थे, जिनमें लोग दावत करते थे और उपहार देते थे.
336 ईस्वी में पहली बार मनाया गया क्रिसमस
Britannica के मुताबिक, रोम में पहली बार 336 ईस्वी में, सम्राट कॉन्स्टेंटाइन के शासनकाल के दौरान 25 दिसंबर को आधिकारिक रूप से क्रिसमस मनाया गया. माना जाता है कि ये फैसला पुराने पेगन त्योहारों की जगह ईसाई परंपरा को मजबूत करने के लिए लिया गया. हालांकि, पूर्वी रोमन साम्राज्य में लंबे समय तक 6 जनवरी को ईसा मसीह के जन्म का दिन माना जाता रहा और 9वीं सदी तक क्रिसमस एक बड़ा ईसाई त्योहार नहीं बना था.
बाइबिल में साफ नहीं है ईसा मसीह के जन्म की तारीख
The Biblical Archaeology Society के अनुसार, बाइबिल में कहीं भी यह साफ तौर पर नहीं लिखा है कि ईसा मसीह का जन्म किस तारीख को हुआ था. बाइबिल में इतना जरूर बताया गया है कि उस समय चरवाहे अपने झुंड के साथ खुले मैदान में थे. ये बात इस ओर इशारा करती है कि वह समय वसंत का रहा होगा, क्योंकि उसी मौसम में भेड़ों के बच्चे पैदा होते हैं. इसी वजह से कई विद्वान मानते हैं कि ईसा मसीह का जन्म वास्तव में वसंत ऋतु में हुआ होगा.
अलग-अलग ईसाई समूहों की अलग राय
करीब 200 ईस्वी में ईसाई शिक्षक रहे क्लेमेंट ऑफ अलेक्जेंड्रिया ने लिखा था कि अलग-अलग ईसाई समुदाय ईसा मसीह के जन्म के लिए अलग-अलग तारीखें मानते थे. उस समय ईसा मसीह के जन्म की तारीखों के रूप में 21 मार्च, 20 अप्रैल, 21 अप्रैल और 20 मई को देखा जाता था. इन तारीखों से भी ये साफ होता है कि उस दौर में भी ईसा की जन्मतिथि को लेकर कोई एक तय सहमति नहीं थी.
कब 25 दिसंबर को तय हुआ क्रिसमस?
ईसा मसीह के जन्मदिन के रूप में 25 दिसंबर का सबसे पहला आधिकारिक जिक्र चौथी शताब्दी के एक रोमन कैलेंडर में मिलता है. यानी ईसा मसीह के जन्म के कई सौ साल बाद जाकर ये तारीख तय की गई थी.
मृत्यु से जन्म की तारीख कैसे जोड़ी गई
एक मान्यता के अनुसार, शुरुआती ईसाई विद्वानों ने ईसा के जन्म की तारीख उनकी मृत्यु की तारीख से जोड़कर निकाली. लगभग 200 ईस्वी में टर्टुलियन नाम के विद्वान ने बताया कि ईसा मसीह को रोमन कैलेंडर के अनुसार 25 मार्च को सूली पर चढ़ाया गया था. कुछ स्कॉलर्स का मानना था कि गर्भाधान और उनकी मृत्यु एक ही दिन हुई होगी. इस हिसाब से गर्भाधान अगर 25 मार्च को हुआ, तो नौ महीने बाद उनका जन्म 25 दिसंबर को हुआ माना गया.
पेगन त्योहारों से जुड़ा क्रिसमस
The Biblical Archaeology Society के मुताबिक, एक दूसरी थ्योरी यह भी कहती है कि क्रिसमस की तारीख पेगन त्योहारों से जुड़ी है. रोमन साम्राज्य में 25 दिसंबर को सूर्य देवता ‘सोल इन्विक्टस’ का जन्मोत्सव मनाया जाता था. माना जाता है कि ईसाई धर्म को फैलाने के लिए शुरुआती ईसाई नेताओं ने जानबूझकर इसी तारीख को क्रिसमस के रूप में चुना, ताकि लोग आसानी से नए धर्म को अपना सकें.
तो क्या जावेद अख्तर की बात गलत है?
इतिहास और Britannica के तथ्यों को देखें तो ये साफ है कि 25 दिसंबर को ईसा मसीह के जन्म का कोई पुख्ता ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है. ये तारीख धार्मिक और राजनीतिक कारणों से तय की गई मानी जाती है. ऐसे में जावेद अख्तर की बात पूरी तरह निराधार नहीं कही जा सकती, बल्कि इतिहास के तथ्यों से मेल खाती दिखती है.
पलक शुक्ला