Vastu Shastra: पैतृक संपत्ति में विवाद या कोर्ट-कचहरी बढ़ाने का जिम्मेदार है घर का वास्तु! सुधार लें ये एक गलती

Vastu Shastra: वास्तु शास्त्र के अनुसार पैतृक संपत्ति और कोर्ट-कचहरी संबंधी समस्याओं का सीधा संबंध घर की दक्षिण-पश्चिम दिशा से होता है. यह दिशा स्थिरता और संपत्ति का प्रतीक मानी जाती है. यहां मुख्य द्वार, रसोई, टॉयलेट या काला-नीला रंग आर्थिक नुकसान और कानूनी झंझट बढ़ा सकते हैं.

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विवादों और कोर्ट कचहरी से जुड़े वास्तु टिप्स (Photo: AI Generated) विवादों और कोर्ट कचहरी से जुड़े वास्तु टिप्स (Photo: AI Generated)

अंशु पारीक

  • नई दिल्ली,
  • 19 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 7:44 AM IST

Vastu Shastra: सनातन धर्म में वास्तु शास्त्र का स्थान कुछ अलग ही माना जाता है. हमारे घरों में सकारात्मक ऊर्जा से वास्तुशास्त्र का बहुत गहरा कनेक्शन होता है. वास्तुशास्त्र किसी निर्माण से संबंधित चीजों के शुभ अशुभ फलों को भी बताता है. साथ ही ये भूमि, दिशाओं और ऊर्जा के सिद्धांत पर भी काम करता है. वहीं, वास्तु शास्त्र में पैतृक संपत्ति और कोर्ट कचहरी से जुड़े मामलों नियमों का जिक्र किया है. 

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पैतृक संपत्ति से जुड़े वास्तु टिप्स

वास्तु शास्त्र के अनुसार, यदि आपको पैतृक संपत्ति मिलने में दिक्कत आ रही है या कोर्ट-कचहरी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, तो अपने घर की दक्षिण-पश्चिम दिशा अवश्य जांचें. यह दिशा स्थिरता, संपत्ति और परिवार की सुरक्षा का प्रतीक होती है. इसलिए, यहां किसी भी प्रकार का दोष आर्थिक रुकावट, कानूनी परेशानियां और पारिवारिक तनाव पैदा कर सकता है.

इस दिशा का सबसे बड़ा दोष यहां मुख्य द्वार का होना माना गया है. दक्षिण-पश्चिम में बना प्रवेश द्वार धन हानि, अवसरों में रुकावट और परिवार के सदस्यों के लिए दुर्घटनाओं का जोखिम बढ़ा सकता है. इसके अलावा दक्षिण-पश्चिम में रसोई या टॉयलेट होना भी आर्थिक तंगी और कोर्ट-कचहरी की समस्याओं को बढ़ाता है. इन दोनों के दोषों का समाधान संभव है, लेकिन दक्षिण-पश्चिम दिशा में बना मुख्य द्वार हटाना ही सबसे प्रभावी उपाय माना जाता है. इस दिशा में काला, नीला या हरा रंग भी नकारात्मक ऊर्जा बढ़ाकर आर्थिक संघर्ष और कानूनी मुद्दों को बढ़ा सकता है.

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करें ये उपाय

वास्तु शास्त्र के अनुसार, यदि दक्षिण-पश्चिम दिशा में टॉयलेट हो, तो उसके चारों ओर पीतल की पत्ती लगाएं या पीले रंग की टेप चिपकाएं. इससे दोष काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है.

दक्षिण-पश्चिम में मंदिर न बनवाएं

इस दिशा में मंदिर होने से कई बार अपने ही परिजन आर्थिक नुकसान पहुंचाने लगते हैं. यदि रिश्तेदार आपकी उधारी वर्षों से वापस नहीं कर रहे हों, तो एक बार देखकर अवश्य जांचें कि कहीं दक्षिण-पश्चिम दिशा में मंदिर या कोई अन्य वास्तु दोष तो नहीं है. मंदिर को हमेशा उत्तर-पूर्व (ईशान) या पश्चिम दिशा में रखना शुभ माना जाता है.

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