Som Pradosh Vrat 2022: सोम प्रदोष के दिन जरूर सुनें यह व्रत कथा, शिवजी होंगे प्रसन्न, हर मनोकामना होगी पूरी

Som Pradosh Vrat 2022: हर माह में दो बार शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है. शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत 14 फरवरी दिन सोमवार को है. सोमवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ने से इसे सोम प्रदोष कहा जाता है. सोमवार भगवान शिव का दिन है और इस दिन प्रदोष व्रत हो तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है.

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शिवजी शिवजी

aajtak.in

  • नई दिल्ली ,
  • 14 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 7:53 AM IST
  • 14 फरवरी को है शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत
  • जरूर सुनें सोम प्रदोष की व्रत कथा

Som Pradosh Vrat 2022 : माघ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी ति​थि को सोम प्रदोष व्रत है. यह व्रत कल 14 फरवरी दिन सोमवार को है. सोम प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव (Lord Shiva) की पूजा करने और विधिपूर्वक व्रत रखने से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है.  प्रदोष व्रत के दिन पूजा के समय सोम प्रदोष व्रत की कथा का श्रवण करने से व्यक्ति की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. आइए जानते हैं सोम प्रदोष व्रत की कथा के बारे में.

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प्रदोष व्रत पर बन रहा अद्भुत योग 
प्रदोष व्रत 14 फरवरी दिन सोमवार के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग और आयुष्मान योग का अद्भुत संयोग बना रहा है. इस दिन त्रयोदशी तिथि को सर्वार्थ सिद्धि योग दिन में 11 बजकर 53 मिनट से शुरू हो रहा है, यह अगले दिन 15 फरवरी को सुबह 07 बजे तक रहेगा. वहीं रवि योग भी दिन में 11 बजकर 53 मिनट से शुरू होगा, जो सर्वार्थ सिद्धि योग के समय तक बना रहेगा. इस दिन आयुष्मान योग रात 09 बजकर 29 मिनट तक है. फिर सौभाग्य योग शुरु हो जाएगा.

प्रदोष व्रत कथा
स्कंद पुराण में दी गयी एक कथा के अनुसार प्राचीन समय की बात है. एक विधवा ब्राह्मणी अपने बेटे के साथ रोज़ाना भिक्षा मांगने जाती और संध्या के समय तक लौट आती. हमेशा की तरह एक दिन जब वह भिक्षा लेकर वापस लौट रही थी तो उसने नदी किनारे एक बहुत ही सुन्दर बालक को देखा लेकिन ब्राह्मणी नहीं जानती थी कि वह बालक कौन है और किसका है ? दरअसल उस बालक का नाम धर्मगुप्त था और वह विदर्भ देश का राजकुमार था. उस बालक के पिता को जो कि विदर्भ देश के राजा थे, दुश्मनों ने उन्हें युद्ध में मौत के घाट उतार दिया और राज्य को अपने अधीन कर लिया. पिता के शोक में धर्मगुप्त की माता भी चल बसी और शत्रुओं ने धर्मगुप्त को राज्य से बाहर कर दिया. बालक की हालत देख ब्राह्मणी ने उसे अपना लिया और अपने पुत्र के समान ही उसका भी पालन-पोषण किया.

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कुछ दिनों बाद ब्राह्मणी अपने दोनों बालकों को लेकर देवयोग से देव मंदिर गई, जहां उसकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई. ऋषि शाण्डिल्य एक विख्यात ऋषि थे, जिनकी बुद्धि और विवेक की हर जगह चर्चा थी. ऋषि ने ब्राह्मणी को उस बालक के अतीत यानि कि उसके माता-पिता के मौत के बारे में बताया, जिसे सुन ब्राह्मणी बहुत उदास हुई. ऋषि ने ब्राह्मणी और उसके दोनों बेटों को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी और उससे जुड़े पूरे वधि-विधान के बारे में बताया. ऋषि के बताये गए नियमों के अनुसार ब्राह्मणी और बालकों ने व्रत सम्पन्न किया लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि इस व्रत का फल क्या मिल सकता है.

कुछ दिनों बाद दोनों बालक वन विहार कर रहे थे तभी उन्हें वहां कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आईं जो कि बेहद सुन्दर थी. राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नाम की एक गंधर्व कन्या की ओर आकर्षित हो गए. कुछ समय पश्चात् राजकुमार और अंशुमती दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे और कन्या ने राजकुमार को विवाह हेतु अपने पिता गंधर्वराज से मिलने के लिए बुलाया. कन्या के पिता को जब यह पता चला कि वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार है तो उसने भगवान शिव की आज्ञा से दोनों का विवाह कराया. राजकुमार धर्मगुप्त की ज़िन्दगी वापस बदलने लगी. उसने बहुत संघर्ष किया और दोबारा अपनी गंधर्व सेना को तैयार किया. राजकुमार ने विदर्भ देश पर वापस आधिपत्य प्राप्त कर लिया.

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कुछ समय बाद उसे यह मालूम हुआ कि बीते समय में जो कुछ भी उसे हासिल हुआ है वह ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के द्वारा किये गए प्रदोष व्रत का फल था. उसकी सच्ची आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे जीवन की हर परेशानी से लड़ने की शक्ति दी. उसी समय से हिदू धर्म में यह मान्यता हो गई कि जो भी व्यक्ति प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा करेगा और एकाग्र होकर प्रदोष व्रत की कथा सुनेगा और पढ़ेगा उसे सौ जन्मों तक कभी किसी परेशानी या फिर दरिद्रता का सामना नहीं करना पड़ेगा.

 

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