Pitru Paksha 2021: गया में ही क्यों पितरों का श्राद्ध करने जाते हैं लोग? जानें पौराणिक महत्व

गया को विष्णु का नगर माना गया है. यह मोक्ष की भूमि कहलाती है. विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी इसकी चर्चा की गई है. विष्णु पुराण के मुताबिक, गया में पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है और वे स्वर्ग चले जाते हैं. माना जाता है कि स्वयं विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं, इसलिए इसे 'पितृ तीर्थ' भी कहा जाता है.

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गया को मोक्षस्थली भी कहा जाता है गया को मोक्षस्थली भी कहा जाता है

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 22 सितंबर 2021,
  • अपडेटेड 10:56 AM IST
  • गया में श्राद्ध का विशेष महत्व
  • गया को मोक्षस्थली भी कहा जाता है
  • देश-विदेश से श्राद्ध के लिए गया आते हैं लोग

पितृपक्ष (Pitru Paksha 2021) में पूर्वजों की आत्मा की शांति पिंडदान और श्राद्ध करने की परंपरा है. ज्यादातर लोगों की इच्छा होती है कि वो गया जाकर ही पिंडदान करें. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग है. यूं तो देश के कई स्थानों में पिंडदान किया जाता है, लेकिन बिहार के फल्गु तट पर बसे गया में पिंडदान का बहुत महत्व है. कहा जाता है कि भगवान राम और सीताजी ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था. गया में पहले विभिन्न नामों की 360 वेदियां थीं, जहां पिंडदान किया जाता था. इनमें से अब 48 ही बची हैं. इन्हीं वेदियों पर लोग पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं. पिंडदान के लिए प्रतिवर्ष गया में देश-विदेश से लाखों लोग आते हैं.

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गया में श्राद्ध की पौराणिक मान्यता- पौराणिक मान्यताओं और किवंदंतियों के अनुसार, भस्मासुर के वंश में गयासुर नामक राक्षस ने कठिन तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान मांगा था कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन मात्र से पाप मुक्त हो जाएं. इस वरदान के मिलने के बाद स्वर्ग की जनसंख्या बढ़ने लगी और प्राकृतिक नियम के विपरीत सब कुछ होने लगा. लोग बिना भय के पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन से पाप मुक्त होने लगे. इससे बचने के लिए देवताओं ने यज्ञ के लिए पवित्र स्थल की मांग गयासुर से मांगी. गयासुर ने अपना शरीर देवताओं के यज्ञ के लिए दे दिया. जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया. तबसे इस जगह को गया के नाम से जाना जाता है. यही कारण है कि आज भी लोग अपने पितरों को तारने के लिए पिंडदान के लिए गया आते हैं.

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पंडितों के अनुसार फल्गु नदी के तट पर पिंडदान किए बिना पिंडदान हो ही नहीं सकता. पिंडदान की प्रक्रिया पुनपुन नदी के किनारे से प्रारंभ होती है. एक आम धारणा है कि एक परिवार से कोई एक ही 'गया' करता है. गया करने का मतलब है कि गया में पितरों को श्राद्ध करना, पिंडदान करना. गरूड़ पुराण में लिखा गया है कि गया जाने के लिए घर से निकलने पर चलने वाले एक-एक कदम पितरों के स्वर्गारोहण के लिए एक-एक सीढ़ी बनते जाते हैं.

गया में श्राद्ध का महत्व- गया को विष्णु का नगर माना गया है. यह मोक्ष की भूमि कहलाती है. विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी इसकी चर्चा की गई है. विष्णु पुराण के मुताबिक, गया में पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है और वे स्वर्ग चले जाते हैं. माना जाता है कि स्वयं विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं, इसलिए इसे 'पितृ तीर्थ' भी कहा जाता है. गया को ‘मोक्षस्थली’ भी कहा जाता है. यहां साल में एक बार 17 दिन के लिए मेला लगता है जिसे पितृपक्ष मेला कहा जाता है. पितृपक्ष में फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर के करीब और अक्षयवट के पास पिंडदान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है.

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