Osho: जब अमेरिकी सरकार के लिए 'खतरा' बन गए ओशो! बसा लिया था खुद का शहर

ओशो का जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्यप्रदेश में हुआ था. ओशो एक विवादित लेकिन प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे. कहते हैं कि ओशो ने अपनी अद्भुत वाणी, अनोखे विचारों और करिश्माई व्यक्तित्व से दुनियाभर में अनुयायी बनाए. ओशो ने दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका में खुद का शहर भी बसा लिया था.

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ओशो के रजनीशपुरम शहर में लोग उन्हें भगवान रजनीश या सिर्फ भगवान कहकर पुकारते थे. (Photo: oshoworld) ओशो के रजनीशपुरम शहर में लोग उन्हें भगवान रजनीश या सिर्फ भगवान कहकर पुकारते थे. (Photo: oshoworld)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 10 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 6:22 PM IST

आध्यात्मिक गुरु ओशो की रहस्यमयी दुनिया से बहुत कम लोग वाकिफ हैं. कहते हैं कि ओशो ने अपने अद्भुत ज्ञान और आकर्षक वाणी से देश-विदेश तक लोगों पर जादू बिखेर रखा था. ओशो का असली नाम चंद्र मोहन जैन था. उनका जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्यप्रदेश के कुचवाड़ा में हुआ था. उनके अनुयायी आज भी इस तारीख को उनके मुक्ति दिवस या मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं. प्रत्येक विषय पर खुलकर अपनी राय रखने की वजह से ओशो बहुत विवादों में भी रहे. कुछ लोगों की नजर में वो सेक्स गुरु थे. तो कुछ की नजर में एक सच्चे आध्यात्मिक गुरु.

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ओशो की लोकप्रियता इस कदर बढ़ चुकी थी उन्होंने अमेरिका में अपना एक अलग शहर तक बसा लिया था. इस शहर का नाम था- 'रजनीशपुरम'. ओशो का 'रजनीशपुरम' खूब सुर्खियों में रहा. ये वो जगह थी जहां ओशो के अनुयायी उन्हें भगवान रजनीश या सिर्फ भगवान कहकर पुकारते थे. विदेश में उनके अनुयायियों की संख्या बहुत ज्यादा था.

साल 1974 में ओशो अपने अनुयायियों के साथ पुणे आ गए थे और श्री रजनीश आश्रम की स्थापना की. यही वो जगह थी जहां से उनकी लोकप्रियता को पंख लग गए. इस केंद्र से ओशो के विचार जन-जन तक पहुंचने लगे. कई बड़ी हस्तियां और फिल्मी सितारे भी इससे अछूते नहीं थे. फिर 80 के दशक में भारतीय मीडिया और सरकार ने ओशो के विचारों की आलोचना करनी शुरू कर दी. नतीजन ओशो को अपना पुणे स्थित आश्रम बंद करना पड़ा.

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ओशो (Photo: oshoworld)

इसके बाद ओशो ने अमेरिका जाकर रजनीशपुरम नामक शहर बनाया. इसके लिए ओशो ने ऑरेगोन प्रांत के बीचोबीच करीब 65 हजार एकड़ जमीन को चुना. यह दुर्गम और वीरान जगह ही ओशो का गढ़ थी. इस जगह को पहले बिग मडी रैंच के नाम से जाना जाता था. ओशो का कदम पड़ते ही महज तीन साल में ये वीरान इलाका एक विकसित शहर बन गया. यही ओशो का मुख्य ठिकाना भी था.

'सपनों की नगरी थी ओशो का शहर'
ओशो की एक शिष्या और ब्रिटिश साइकोलॉजिस्ट गैरेट कहती हैं, 'ये जगह किसी सपने जैसी थी. जहां हंसी, सेक्सुअल आजादी या किसी भी तरह की आजादी, प्रेम और दूसरी तमाम चीजें मौजूद थीं.'

ओशो के इस शहर में फायर ब्रिगेड, रेस्टोरेंट, पुलिस स्टेशन, शॉपिंग मॉल, ग्रीन हाउस और कम्युनिटी हॉल जैसी सभी आधुनिक सुविधाएं मौजूद थीं. ओशो के अनुयायी यहां खेतीबाड़ी, बागवानी से लेकर आधुनिक तौर-तरीकों से जीवन यापन करते थे. इतना ही नहीं, ओशो के इस शहर में खुद का हवाई अड्डा भी था. ओशो के लोग इस जगह को एक शहर के तौर पर रजिस्टर्ड भी करवाना चाहते थे, लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के बाद ऐसा न हो  सका.

ओशो (Photo: oshoworld)

अमेरिकी सरकार के लिए बने मुश्किल
अमेरिकी सरजमीं पर धीरे-धीरे ओशो को मानने और फॉलो करने वालों की संख्या बढ़ने लगी. ये सब ओरेगन सरकार के लिए किसी चुनौती और पैदा हो रहे खतरे जैसा था. इसके बाद ओशो और उनके शहर में रहने वाले लोगों पर इमीग्रेशन, फ्रॉड, टैपिंग, लोकल इलेक्शन में गड़बड़ी और आतंकवाद के आरोप लगने लगे.

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इसके बाद अक्टूबर 1985 में अमेरिकी सरकार ने ओशो पर अप्रवासी नियमों के उल्लंघन के तहत 35 आरोप दर्ज किए. उन्हें हिरासत में ले लिया गया. ओशो को 4 लाख यूएस डॉलर की पेनाल्टी का भुगतान करना पड़ा. कोर्ट ने ओशो को तुरंत देश छोड़ने और पांच साल तक वापस न लौटने की सजा सुनाई. इसके बाद ओशो का रजनीशपुरम शहर एक ईसाई युवा कैंप आर्गेनाईजेशन को दे दिया गया. मौजूदा वक्त में इस जगह को वाशिंगटन फैमिली रैंच के नाम से जाना जाता है.

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