Jaya Ekadashi 2022: कब है जया एकादशी? इंद्र के श्राप से मृत्युलोक पहुंची नृत्यांगना, पढ़ें व्रत कथा और पूजा विधि

Jaya Ekadashi 2022: हर माह की एकादशी तिथि का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व माना गया है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत से मोक्ष की प्राप्ति होती है. वहीं माघ के शुक्ल पक्ष की एकदशी के जयाएकादशी का व्रत रखा जाता है. इस दिन भगवान विष्णु को पुष्प, जल, अक्षत, रोली तथा विशिष्ट सुगंधित पदार्थों को अर्पित करने से उनकी विशेष कृपा मिलती है. इस बार ये व्रत 12 फरवरी, 2022 को रखा जाएगा.

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aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 03 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 11:27 AM IST
  • गंधर्व कन्या को इंद्र ने दिया मृत्युलोक का श्राप
  • देव सभा में गंधर्व कन्या से हुई थी जरा सी भूल

Jaya Ekadashi 2022: जया एकादशी का यह व्रत बहुत ही पुण्यदायी माना गया है. मान्यता के अनुसार इस दिन जो जातक श्रद्धापूर्वक व्रत करते हैं उन्हें भूत-प्रेत, पिशाच जैसी योनियों में जाने का भय नहीं रहता है. ऐसे जातकों के जीवन और मरण के बंधन से मुक्ति मिलकर मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस बार जया एकादशी 12 फरवरी, 2022 दिन शनिवार को है. जानें जया एकादशी व्रत की कथा व पूजा मुहूर्त... 

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जया एकादशी व्रत पारण मुहूर्त  
जया एकादशी का व्रत  12 फरवरी, 2022 दिन शनिवार को रखा जाएगा. व्रत का पारण अगले दिन 13 फरवरी को होगा. इस दिन जातक सुबह 07 बजकर 01 मिनट से  09 बजकर 15 मिनट यानि 2 घंटे 13 मिनट की अवधि में जया एकादशी के व्रत का पारण कर सकते हैं. 

जया एकादशी व्रत पूजा विधि
1- जया एकादशी व्रत के लिए एक दिन पहले नियम शुरू हो जाते हैं. यानि व्रत से पूर्व दशमी के दिन एक ही समय सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए.
2- व्रत करने वालों को ब्रह्मचार्य का पालन करना चाहिए.
3-  प्रात:काल स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेकर धूप, दीप, फल और पंचामृत आदि अर्पित करके भगवान विष्णु के श्री कृष्ण अवतार की पूजा करें.
3.  रात्रि में जागरण कर श्री हरि के नाम के भजन करें.
4.  द्वादशी के दिन किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराकर, दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करें.

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जया एकादशी व्रत की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार इंद्र की सभा में उत्सव चल रहा था. देवगण, संत, दिव्य पुरूष सभी उत्सव में उपस्थित थे. उस समय गंधर्व गीत गा रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं. इन्हीं गंधर्वों में एक माल्यवान नाम का गंधर्व भी था जो बहुत ही सुरीला गाता था. जितनी सुरीली उसकी आवाज़ थी उतना ही सुंदर रूप था. उधर गंधर्व कन्याओं में एक सुंदर पुष्यवती नामक नृत्यांगना भी थी. पुष्यवती और माल्यवान एक-दूसरे को देखकर सुध-बुध खो बैठते हैं और अपनी लय व ताल से भटक जाते हैं. उनके इस कृत्य से देवराज इंद्र नाराज़ हो जाते हैं और उन्हें श्राप देते हैं कि स्वर्ग से वंचित होकर मृत्यु लोक में पिशाचों सा जीवन भोगोगे. श्राप के प्रभाव से वे दोनों प्रेत योनि में चले गए और दुख भोगने लगे. पिशाची जीवन बहुत ही कष्टदायक था. दोनों बहुत दुखी थे. एक समय माघ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का दिन था. पूरे दिन में दोनों ने सिर्फ एक बार ही फलाहार किया था. रात्रि में भगवान से प्रार्थना कर अपने किये पर पश्चाताप भी कर रहे थे. इसके बाद सुबह तक दोनों की मृत्यु हो गई. अंजाने में ही सही लेकिन उन्होंने एकादशी का उपवास किया और इसके प्रभाव से उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई और वे पुन: स्वर्ग लोक चले गए.

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