Govardhan Puja 2025: क्यों श्रीकृष्ण ने उंगली पर उठा लिया था गोवर्धन पर्वत? पढ़ें गोवर्धन पूजा की कथा

Govardhan Puja 2025: इस साल यह पर्व 22 अक्टूबर यानी कल मनाया जाएगा. कहते हैं कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की विधिवत उपासना से दीर्घायु, आरोग्य और समृद्धि प्राप्त होती है. इस दिन गाय-बैलों की पूजा का भी विशेष महत्व है.

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जब इंद्र का अहंकार तोड़ने के लिए कृष्ण ने उठा लिया था पर्वत. (Photo: AI Generated) जब इंद्र का अहंकार तोड़ने के लिए कृष्ण ने उठा लिया था पर्वत. (Photo: AI Generated)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 21 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 9:14 PM IST

Govardhan Puja 2025: हर साल कार्तिक शुक्ल एकादशी को गोवर्धन पूजा का त्योहार मनाया जाता है. इस साल यह पर्व 22 अक्टूबर दिन बुधवार यानी कल मनाया जाएगा. यह पर्व भगवान कृष्ण की उस लीला को समर्पित है, जब उन्होंने अपनी कनिष्ठा उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर इंद्र का अहंकार तोड़ा था. इसलिए इस दिन गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की प्रतीकात्मक आकृति बनाकर उनकी पूजा करने का विधान है.

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गोवर्धन पूजा की कथा
विष्णु पुराण और श्रीमद्भागवत में गोवर्धन पूजा का विस्तृत वर्णन मिलता है. इस दिन का पौराणिक महत्व भगवान श्रीकृष्ण की एक अद्भुत लीला से जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि जब देवराज इंद्र को अपनी शक्ति पर घमंड हो गया था, तब श्रीकृष्ण ने उनके अहंकार को तोड़ने के लिए यह दिव्य लीला रची थी.

कथा के अनुसार, एक बार सारे गोकुलवासी बड़े उत्साह के साथ तरह-तरह के पकवान बना रहे थे और आनंदपूर्वक गीत गा रहे थे. श्रीकृष्ण ने यह देखकर यशोदा मैय्या से पूछा कि वे सब किस पर्व की तैयारी कर रहे हैं. तब माता यशोदा ने बताया कि वो सब देवराज इंद्र की पूजा करने जा रहे हैं.

तब कृष्ण ने पलटकर पूछा कि हम इंद्र की पूजा क्यों करते हैं? इस पर माता यशोदा ने कहा कि इंद्र देव की कृपा से वर्षा होती है, जिससे खेतों में फसल उगती है और हमारी गायों को भरपूर चारा मिलता है. यह सुनकर श्रीकृष्ण ने तर्क देते हुए कहा कि इसके लिए तो हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि वही हमारी गायों को आश्रय और भोजन देते हैं.

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तब कृष्ण की बात सुनकर सभी गोकुलवासी इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे. यह देखकर इंद्र अत्यंत क्रोधित हो उठे और उन्होंने प्रचंड वर्षा आरंभ कर दी. मूसलाधार बारिश से गोकुल डूबने लगा. तब श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठा अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी ग्रामवासियों को उसके नीचे आश्रय दिया.

सात दिन तक लगातार वर्षा होती रही और भगवान कृष्ण यूं ही कनिष्ठा उंगली पर पर्वत को संभाले खड़े रहे. जब इंद्र को एहसास हुआ कि वे स्वयं भगवान श्रीकृष्ण से संघर्ष कर रहे हैं, तो उन्होंने अपनी भूल स्वीकार की और श्रीकृष्ण से क्षमा मांगकर उनकी आराधना की. तभी से गोवर्धन पूजा की परंपरा आरंभ हुई.

कहते हैं कि इस दिन गाय-बैलों को स्नान कराकर उन्हें चंदन, फूल और माला से सजाया जाता है. गायों को भोजन और हरा चारा खिलाया जाता है. उनकी आरती उतारी जाती है. ऐसा विश्वास है कि गोवर्धन पूजा और अन्नकूट पर्व के आयोजन से दीर्घायु, आरोग्य और समृद्धि प्राप्त होती है और दरिद्रता दूर होती है.

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