Bhagwat Geeta: श्रीकृष्ण ने इन 3 चीजों को बताया है नरक का द्वार, उजाड़ सकती हैं आदमी का जीवन

Bhagwat Geeta: श्रीमद्भगवद्‌गीता में भगवान कृष्ण ने जीवन को सही दिशा देने के लिए स्पष्ट मार्गदर्शन किया है. उन्होंने बताया है कि कुछ आदतें मनुष्य को पतन की ओर ले जाती हैं. गीता के अनुसार क्रोध, लोभ और काम ये तीन दोष नरक के द्वार समान हैं.

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गीता के उपदेश धर्म, कर्म और प्रेम के मूल सिद्धांतों पर आधारित हैं, जो व्यक्ति को नैतिक और संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं. (Photo: AI Generated) गीता के उपदेश धर्म, कर्म और प्रेम के मूल सिद्धांतों पर आधारित हैं, जो व्यक्ति को नैतिक और संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं. (Photo: AI Generated)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 28 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 8:40 PM IST

Bhagwat Geeta: श्रीमद्भगवद्‌गीता हिंदू धर्म के अत्यंत पवित्र ग्रंथों में से एक है. यह ग्रंथ आधुनिक युग में भी मानव जीवन का मार्गदर्शन कर रहा है. गीता के उपदेश धर्म, कर्म और प्रेम के मूल सिद्धांतों पर आधारित हैं, जो व्यक्ति को नैतिक और संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं. श्रीमद्भागवत गीता में भगवान कृष्ण द्वारा दिए गए उपदेशों का वर्णन है. इसमें जीवन के प्रत्येक पहलू की अद्भुत व्याख्या की गई है. श्रीमद्भागवत गीता में भगवान कृष्ण ने तीन चीजों को नरक का द्वार बताया है. हर व्यक्ति को जीवन में इनसे दूर रहना चाहिए.

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श्लोक
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः.
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेत्तत्रयं त्यजेत्..
इदम् आत्मन: नाशनम् त्रिविधम् नरकस्य द्वारम काम: क्रोध:
तथा लोभ: तस्मात् एतत् त्रयम् त्यजेत्.

अर्थ- काम, क्रोध और लोभ ये तीन आत्मा को नष्ट करने वाले नरक के द्वार हैं. इसलिए इन तीनों को त्याग देना चाहिए. ये चीजें मनुष्य का सर्वनाश कर देती हैं. आइए अब इसे विस्तार से समझते हैं.

काम- जब मनुष्य की इच्छाएं सीमित नहीं रहती है तो वह अपनी मर्यादाओं से पार जाने लगता है. काम वासना व्यक्ति की सोच को खोखला कर देती है. परिणामस्वरूप, वह धर्म और कर्तव्य दोनों से भटक जाता है. अनियंत्रित काम अंततः मन की शांति और विवेक को नष्ट कर देता है. ऐसे लोग जीवन में कुछ हासिल नहीं कर पाते हैं. वो कभी सफल नहीं हो पाते हैं.

क्रोध- क्रोध या अहंकार बुद्धि का सबसे बड़ा शत्रु होता है. द्वेष में व्यक्ति सही और गलत का अंतर भूल जाता है. क्रोध रिश्तों को बिगाड़ता है. वाणी-व्यवहार को कठोर बनाता है. व्यक्ति खुद अपने ही बुरे कर्मों का शिकार बनने लगता है. एक क्षण का क्रोध आपके पूरे जीवन पर भारी पड़ सकता है.

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लोभ- लोभ या लालच मनुष्य की आत्मा को बांध देता है. जब धन, पद या वस्तुओं की चाह असीमित हो जाती है तो व्यक्ति का नैतिक आधार डगमगाने लगता है. नतीजन, लालच इंसान को दूसरों के अधिकार छीनने और अन्याय करने तक प्रेरित करता है. भौतिक और सांसारिक सुखों का लोभ और भी बुरा है.

इस प्रकार, काम मन को बांधता है, क्रोध उसे जला देता है और लोभ उसे अंधा बना देता है. ये तीनों मिलकर व्यक्ति को उस मार्ग पर ले जाते हैं जहां विवेक, शांति और धर्म का अस्तित्व समाप्त हो जाता है — और यही नरक का द्वार है.
जो इन तीनों पर संयम रखता है, वही सच्चे अर्थों में आत्मिक सुख और मोक्ष की ओर अग्रसर होता है.

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