गरीब हो या अमीर, दोनों प्रकार के व्यक्ति धन प्राप्ति की कोशिश में लगे रहते हैं. लेकिन कई बार उन्हें इस बात की जानकारी नहीं होती कि ईश्वर उनसे क्या चाहता है. अर्थशास्त्र और नीतिशास्त्र के महान ज्ञाता माने गए चाणक्य ने अपने नीति ग्रंथ यानी 'चाणक्य नीति' में मनुष्य के इस दुविधा को दूर करने के लिए कुछ उपाय सुझाए हैं. वो 'चाणक्य नीति' के 9वें अध्याय में एक श्लोक के माध्यम से बताते हैं कि धनवान मनुष्य को ईश्वर की उपासना कैसे करनी चाहिए. आइए जानते हैं इसके बारे में...
स्वहस्तग्रथिता माला स्वहस्तघृष्टचन्दनम्।
स्वहस्तलिखितमं स्तोत्रं शक्रस्यापि श्रियं हरेत्॥
चाणक्य कहते हैं कि अपने ही हाथ से गुंथी हुई माला, अपने हाथ से घिसा हुआ चंदन और अपने ही हाथ से लिखी हुई भगवान की स्तुति करने से मनुष्य इंद्र की धन-सम्पत्ति को भी अपने वश में कर सकता है.
वो चाणक्य नीति (Chanakya Niti In Hindi) के इस श्लोक के माध्यम से कहते हैं कि धनवान व्यक्ति को भगवान की स्तुति करने के लिए किए जाने वाले उपायों को स्वयं अपने हाथ से करना चाहिए. दूसरों से करवाने से कोई लाभ नहीं होता.
चाणक्य का भाव है कि प्रभु की उपासना व्यक्ति को स्वयं करनी चाहिए. जिस प्रकार भूख-प्यास तभी शांत होती है, जब आप स्वयं भोजन खाते और पानी पीते हैं, उसी प्रकार आपके द्वारा किए गए शुभ कार्य ईश्वर उपासना आदि तभी पूरी तरह से फल देता है, जब आप उसे स्वयं करें.
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