Pradosh Vrat 2025: साल के आखिरी प्रदोष व्रत पर आज ये रहेगा भगवान शिव की पूजा का मुहूर्त, पढ़ें ये कथा

Pradosh Vrat 2025: बुधवार के दिन पड़ा यह साल का आखिरी प्रदोष व्रत भगवान शिव की विशेष कृपा पाने का दुर्लभ अवसर माना जा रहा है. आज भगवान शिव के पूजन का मुहूर्त शाम 5 बजकर 27 मिनट से लेकर रात 8 बजकर 11 मिनट तक रहेगा.

Advertisement
बुध प्रदोष व्रत के दिन संध्याकाल में किया जाता है भगवान शिव का पूजन (Photo: Pixabay) बुध प्रदोष व्रत के दिन संध्याकाल में किया जाता है भगवान शिव का पूजन (Photo: Pixabay)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 17 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 11:40 AM IST

Pradosh Vrat 2025: 17 दिसंबर यानी आज साल का आखिरी प्रदोष व्रत है, क्योंकि यह व्रत बुधवार के दिन पड़ा है इसलिए इसे बुध प्रदोष व्रत भी कहा जाएगा. द्रिक पंचांग के अनुसार, प्रदोष व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष को रखा जाता है. इस दिन भक्त प्रदोष काल के दौरान भगवान शिव की पूजा करते हैं. पुराणों के अनुसार, जो कोई भी त्रयोदशी की रात के पहले भाग में भक्ति भाव से भगवान शिव के दर्शन या पूजा करता है, उसको लंबे समय से चली आ रही समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है.

Advertisement

बुध प्रदोष काल की तिथि (Budh Pradosh Kaal 2025 Tithi)

बुध प्रदोष व्रत की त्रयोदशी तिथि 16 दिसंबर की रात 11 बजकर 57 मिनट पर शुरू हो चुकी है और तिथि का समापन 18 दिसंबर यानी कल अर्धरात्रि में 2 बजकर 32 मिनट पर होगा. 

प्रदोष काल का आज पूजन मुहूर्त शाम 5 बजकर 27 मिनट से लेकर रात 8 बजकर 11 मिनट तक रहेगा, जिसमें भगवान शिव का पूजन करना सबसे ज्यादा खास माना जा रहा है.  

बुध प्रदोष काल पूजन विधि (Budh Pradosh Kaal 2025 Pujan Vidhi)

प्रदोष व्रत के दिन भक्तों को सुबह जल्दी उठना चाहिए और व्रत रखने का संकल्प लेना चाहिए. यह व्रत अनुशासन और भक्ति के साथ रखा जाता है. शाम को प्रदोष काल के पहले भाग में, फिर से स्नान करें और साफ-सुथरे वस्त्र धारण करके भगवान शिव का पूजन शुरू करें. इस दिन पूजा के लिए घर की उत्तर-पूर्व दिशा में एक शांत जगह चुनें. उस जगह को फिर गंगाजल या साफ पानी से साफ करें.

Advertisement

परंपरा के अनुसार, इस दिन गाय के गोबर से एक छोटा मंडप बनाया जाता है. मंडप के अंदर पांच रंगों से कमल बनाया जाता है. बीच में भगवान शिव की मूर्ति या तस्वीर रखें. कुशा आसन पर बैठकर, उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुंह करके पूजा शुरू करें. फिर, फूल-फल और दूसरी चीजें अर्पित करते समय ''ऊं नमः शिवाय" मंत्र का जाप करें. भगवान शिव के पूजन के बाद बुध प्रदोष व्रत की कथा जरूर सुनें. इसके बाद आरती के साथ पूजा खत्म करें और भगवान शिव को भोग लगाएं.

बुध प्रदोष काल कथा (Budh Pradosh Kaal Katha)

स्कंद पुराण में दी गयी एक कथा के अनुसार, प्राचीन समय की बात है. एक विधवा ब्राह्मणी अपने बेटे के साथ रोजाना भिक्षा मांगने जाती और संध्या के समय तक लौट आती. हमेशा की तरह एक दिन जब वह भिक्षा लेकर वापस लौट रही थी तो उसने नदी किनारे एक बहुत ही सुंदर बालक को देखा लेकिन ब्राह्मणी नहीं जानती थी कि वह बालक कौन है और किसका है ? दरअसल, उस बालक का नाम धर्मगुप्त था और वह विदर्भ देश का राजकुमार था. उस बालक के पिता को जो कि विदर्भ देश के राजा थे, दुश्मनों ने उन्हें युद्ध में मौत के घाट उतार दिया और राज्य को अपने अधीन कर लिया. पिता के शोक में धर्मगुप्त की माता भी चल बसी और शत्रुओं ने धर्मगुप्त को राज्य से बाहर कर दिया. बालक की हालत देख ब्राह्मणी ने उसे अपना लिया और अपने पुत्र के समान ही उसका भी पालन-पोषण किया.

Advertisement

कुछ दिनों बाद ब्राह्मणी अपने दोनों बालकों को लेकर देवयोग से देव मंदिर गई, जहां उसकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई.ऋषि शाण्डिल्य एक विख्यात ऋषि थे, जिनकी बुद्धि और विवेक की हर जगह चर्चा थी. ऋषि ने ब्राह्मणी को उस बालक के अतीत यानी कि उसके माता-पिता के मौत के बारे में बताया, जिसे सुन ब्राह्मणी बहुत उदास हुई. ऋषि ने ब्राह्मणी और उसके दोनों बेटों को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी और उससे जुड़े पूरे वधि-विधान के बारे में बताया. ऋषि के बताये गए नियमों के अनुसार ब्राह्मणी और बालकों ने व्रत संपन्न किया लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि इस व्रत का फल क्या मिल सकता है.

कुछ दिनों बाद दोनों बालक वन विहार कर रहे थे तभी उन्हें वहां कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आईं जो कि बेहद सुन्दर थी. राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नाम की एक गंधर्व कन्या की ओर आकर्षित हो गए. कुछ समय पश्चात राजकुमार और अंशुमती दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे और कन्या ने राजकुमार को विवाह हेतु अपने पिता गंधर्वराज से मिलने के लिए बुलाया. कन्या के पिता को जब यह पता चला कि वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार है तो उसने भगवान शिव की आज्ञा से दोनों का विवाह कराया.

Advertisement

राजकुमार धर्मगुप्त की ज़िन्दगी वापस बदलने लगी. उसने बहुत संघर्ष किया और दोबारा अपनी गंधर्व सेना को तैयार किया. राजकुमार ने विदर्भ देश पर वापस आधिपत्य प्राप्त कर लिया. कुछ समय बाद उसे यह मालूम हुआ कि बीते समय में जो कुछ भी उसे हासिल हुआ है वह ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के द्वारा किए गए प्रदोष व्रत का फल था. उसकी सच्ची आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे जीवन की हर परेशानी से लड़ने की शक्ति दी. उसी समय से हिंदू धर्म से प्रदोष व्रत रखने की परंपरा शुरू हुई. 

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement