Ram Mandir Dhwajarohan 2025: अयोध्या में राम मंदिर बनकर तैयार है. मंदिर निर्माण के बाद अब बारी धर्म ध्वजारोहण की है. दरअसल, अयोध्या में 25 नवंबर को राम जन्मभूमि मंदिर के शिखर पर भगवा विजय ध्वज फहराने का भव्य समारोह होगा और इसी दिन पूरे देश में विवाह पंचमी का पर्व भी मनाया जाएगा. ज्योतिषियों के अनुसार, 25 नवंबर को ध्वजारोहण अभिजीत मुहूर्त में किया जाएगा.
पंचांग के अनुसार, दिन मंगलवार, 25 नवंबर की तारीख और उसी दिन पड़ने वाली विवाह पंचमी तिथि पर अभिजीत मुहूर्त का सनातन धर्म में विशेष महत्व है. यह तिथि भगवान राम और माता जानकी से क्यों जुड़ी है और धर्म ध्वजारोहण के लिए 25 नवंबर ही क्यों चुना गया, इसे समझना बेहद जरूरी है. आइए अयोध्या के साधु संतों से जानते हैं कि मंदिर के शिखर पर धर्म ध्वजा फहराना इतना महत्वपूर्ण क्यों है और ये तारीख इतनी विशेष क्यों है.
राम मंदिर में धर्म ध्वजारोहण के लिए 25 नवंबर ही क्यों चुना गया?
अयोध्या के साधु संतों के अनुसार, त्रेता युग में भगवान राम और मां जानकी का विवाह मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को हुआ था. 25 नवंबर को भी यही पंचमी तिथि है और हर साल विवाह पंचमी के दिन हिंदू पंचांग में सर्वाधिक विवाह की तिथि निर्धारित की जाती है.
अभिजीत मुहूर्त में होगा अयोध्या मंदिर पर ध्वजारोहण
पंचांग के अनुसार, 25 नवंबर को अयोध्या मंदिर पर ध्वजारोहण अभिजीत मुहूर्त में किया जाएगा. जिसका मुहूर्त सुबह 11 बजकर 45 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 29 मिनट तक रहेगा. माना जा रहा है कि भगवान राम का जन्म इसी अभिजीत मुहूर्त में हुआ था इसीलिए राम मंदिर पर ध्वजारोहण के लिए ये समय निर्धारित किया गया है.
मंगलवार का दिन क्यों माना जा रहा है इतना महत्वपूर्ण?
25 नवंबर यानी कल मंगलवार है और यह दिन कई मायनों से विशेष माना जा रहा है. दरअसल, भगवान राम का जन्म चैत्र मास की नवमी तिथि पर हुआ था, और उस दिन भी मंगलवार ही था. इतना ही नहीं, त्रेता युग में जब भगवान राम और माता सीता का विवाह संपन्न हुआ, वह पावन तिथि पंचमी थी और उस समय भी मंगलवार का दिन ही था. भगवान राम के परम भक्त हनुमान जी का जन्म भी मंगलवार को हुआ माना जाता है. इसी वजह से मंगलवार का दिन राम भक्तों और सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत शुभ और ऊर्जा से भरपूर माना जा रहा है.
राम मंदिर पर ध्वजारोहण का महत्व
25 नवंबर को राम मंदिर पर फहराया जाने वाला ध्वज न केवल भगवान राम के प्रति भक्तों की अनन्य आस्था का प्रतीक होगा, बल्कि यह अयोध्या के सूर्यवंश और रघुकुल जैसी महान परंपराओं का साक्षी भी बनेगा.
वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस दोनों में ही ध्वज, पताका और तोरणों का वर्णन बड़े वैभव से मिलता है. त्रेता का उत्सव राघव के जन्म का था, और कलियुग का यह समारोह उनके मंदिर निर्माण के पूर्ण होने की घोषणा है. रघुकुल तिलक के मंदिर शिखर पर जब ध्वजा लहराएगी, तो यह संसार को संदेश देगी कि अयोध्या में रामराज की पुनर्स्थापना हो चुकी है.
संतोष शर्मा