श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को रक्षा बंधन का त्योहार मनाया जाता है. क्या आप जानते हैं कि भारत में एक मंदिर ऐसा भी है जो सिर्फ रक्षा बंधन के दिन ही खुलता है. आइए आपको बताते हैं कि आखिर यह मंदिर सालभर क्यों बंद रहता है और इसे सिर्फ रक्षा बंधन के दिन ही क्यों खोला जाता है.
यह मंदिर उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है. इस मंदिर का नाम वंशीनारायण मंदिर है जो साल में सिर्फ एक बार रक्षा बंधन के दिन ही खुलता है. इसके अलावा मंदिर को 364 दिन बंद ही रखा जाता है.
रक्षा बंधन पर मंदिर के प्रवेश द्वार खुलते ही महिलाएं भगवान नारायण को रक्षासूत्र बांधती हैं और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं. यहां ऐसी मान्यता है कि देवर्षि नारद साल के 364 दिन भगवान नाराणय की पूजा-अर्चना करते हैं. लोगों को यहां सिर्फ रक्षा बंधन के दिन ही पूजा करने का अवसर मिलता है.
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चमोली का वंशीनारायण मंदिर समुद्र तल से 12 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. ऐसा बताया जाता है कि उर्गम घाटी के बुग्याल के मध्य में स्थित वंशीनारायण मंदिर छठी सदी में राजा यशोधवल के समय बनाया गया था. इस मंदिर में विष्णु भगवान की पूजा की जाती है.
स्कंध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत के मुताबिक, दानवेंद्र राजा बलि का अहंकार चूर करने के लिए एक बार भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया था और ब्राह्मण के वेश में राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए. उन्होंने राजा बलि से तीन पग भूमि की मांग की. इसके बदले राजा बलि ने भगवान से रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया.
राजा बलि भगवान को अपने साथ पाताल ले गया और वहां उन्हें अपना द्वारपाल बना लिया. मां लक्ष्मी ने जब नारद से भगवान विष्णु के बारे में पूछा तो देवर्षि ने जवाब देते हुए कहा कि भगवान को वापस लाने के लिए आपको पाताल लोक जाना होगा. राजा बलि की कलाई पर रक्षा का सूत्र बांधना होगा और बदलें में राजा बलि से भगवान विष्णु को वापस मांग लें.
माता लक्ष्मी को पाताल लोक का मार्ग नहीं पता था तो उन्होंने नारद से उनके साथ चलने का आग्रह किया. नारद ने उनका आग्रह स्वीकार किया और वे मां लक्ष्मी के साथ पाताल की ओर निकल पड़े.
मां लक्ष्मी और नारद मुनि के पाताल लोक जाने के दौरान कालाकोड गांव के जाख पुजानी ने वंशीनारायण की पूजा की थी. तभी से रक्षा बंधन पर यह परंपरा चली आ रही है. वंशीनारायण मंदिर के कपाट खुलने पर कालाकोड गांव का हर परिवार मंदिर में भगवान की पूजा करने आता है.
रक्षा बंधन के दिन बहनें मंदिर में जाकर भगवान नारायण की पूजा करती हैं और उन्हें राखी भी बांधती हैं. इसके बाद ही वे भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती हैं और माथे पर भाग्योदय का तिलक करती हैं.
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