सनातन परंपरा में भगवान शालिग्राम की पूजा का खास महत्व है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार शालिग्राम ही जगत के पालनहार श्री हरि विष्णु का विग्रह स्वरूप हैं. ये काले रंग के गोल चिकने पत्थर के स्वरूप में होते हैं. इन्हीं के साथ तुलसी जी का विवाह हुआ है. सनातन परंपरा को मानने वाले ज्यादातर लोगों के पूजा स्थान पर शालिग्राम जी स्थापित होते हैं. मान्यता है कि जिन घरों में नियम पूर्वक शालिग्राम जी की पूजा की जाती है, वहां पर हमेशा भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है. इन्हें घर में रखकर नियमित रूप से पूजा करने से आपको कई तरह की परेशानियों से निजात मिलती है. साथ ही घर में सुख-समृद्धि आती है.
शालिग्राम और तुलसी विवाह
जब कार्तिक एकादशी में तुलसी विवाह की परंपरा निभाई जाती है तब देवी तुलसी का विवाह शालिग्राम जी से ही किया जाता है. शालिग्राम नेपाल के गंडक नदी के तल में पाए जाते हैं. यहां पर सालग्राम नामक स्थान पर भगवान विष्णु का मंदिर है, जहां उनके इस रूप का पूजन होता है, कहा जाता है कि इस ग्राम के नाम पर ही उनका नाम शालिग्राम पड़ा.
असुर जालंधर की पत्नी का श्राप
भगवान विष्णु के शालिग्राम विग्रह को लेकर कथा आती है कि उन्हें असुर जालंधर की पत्नी वृंदा ने श्राप दिया था कि उनका स्वरूप पत्थर का हो जाएगा. असल में जालंधर राक्षस पर वृंदा के सतीत्व का प्रभाव था. भगवान विष्णु जालंधर का रूप बनाकर वृंदा के पास पहुंचे और वृंदा, जिसने कभी पर पुरुष का स्पर्श नहीं किया था, उसने पति भाव से जालंधर बने विष्णु के चरण स्पर्श कर लिए. इस तरह वृंदा का सतीत्व खंडित हो गया और जालंधर का वध भगवान शिव ने कर दिया. इससे ही क्रोधित वृंदा ने भगवान विष्णु को शिला रूप हो जाने का श्राप दिया था.
देवी पार्वती ने भी दिया था श्राप
लेकिन... यह कहानी सिर्फ इतनी भर नहीं है. असल में भगवान विष्णु को यह श्राप पहले देवी पार्वती से मिला था. देवी पार्वती ने शिवजी, विष्णु जी और अन्य देवताओं को भी यह श्राप दिया था कि वह सभी पत्थर स्वरूप में और पिंड के रूप में पूजे जाएंगे. इसी श्राप के कारण भगवान विष्णु को वृंदा से श्राप मिला था. स्कंदपुराण में इस कथा का वर्णन मिलता है.
स्कंदपुराण में है वर्णन
स्कंद पुराण के अनुसार, एक समय सब देवताओं तथा भगवान विष्णु ओर शिवजी के द्वारा पार्वती जी की इच्छा के विरुद्ध कोई कार्य हो गया. इससे उन्होने देवताओंको मर्त्यलोकमें प्रस्तर- प्रतिमा (पत्थर की प्रतिमा) होने का श्राप दिया. उसी समय उन्ंहोंने भगवान विष्णु से कहा. आप भी मर्त्यलोके शिलारूप होंगे ओर शिवजीको भी ब्राह्यणों के श्राप से लिंगाकार प्रस्तररूप प्राप्त होगा. तब भगवान विष्णुने पार्वतीजीको प्रणाम करके कहा' हे महादेवि! आप सदैव महादेवजी की प्रिया है. सम्पूर्ण भूतोंकी जननि हैं और आपको नमस्कार है. उन्होंने देवी पार्वती से पूछा कि उन्हें कैसा स्वरूप मिलेगा.
तब देवी पार्वती ने कहा- आप गंडकी नदी में पाए जाने वाले शालग्राम पत्थर बन जाएंगे.शालग्राम स्वरूप में आप सम्पूर्ण सामर्थ्य से युक्त होकर योगियों को भी मोक्ष देनेवाले होंगे. शालग्राम शिला में व्याप्त हुए आपका जो मनुष्य पूजन करेंगे, उन भक्तों को आप मनोवांछित सिद्धि प्रदान करेंगे.' गोलाकार तेजोमय शरीर अपूर्व शोभासे युक्त 'जनार्दन! आप शिलारूपमें रहकर भी योगीश्वरोंको मोक्ष देनेवाले होंगे, खासतौर पर चातुर्मास यमें सब भक्तों की कामनाएं पूर्ण करने वाले होंगे. ब्रह्माजीकी प्यारी पुत्री जो गण्डकी नामवाली नदी है, वह महान् जलराशिसे भरी हुई और परम पुण्यदायिनी है, उसीके अत्यन्त निर्मल नीरमें आपका निवास होगा. पुराणोंके ज्ञाता आपको चौबीस स्वरूपोंमें देखेंगे. आपके मुख में सुवर्ण होगा. इस तरह पार्वती जी के कहे अनुसार समय आने पर भगवान विष्णु शालिग्राम स्वरूप में अवतरित हुए थे.
विकास पोरवाल