Shukra Pradosh Vrat: 5 या 6 कब है सितंबर का पहला प्रदोष व्रत? जानिए सही तारीख, महत्व और पूजन विधि

Shukra Pradosh Vrat: शास्त्रों के अनुसार, जब प्रदोष व्रत शुक्रवार के दिन पड़ता है, तब यह शुक्र प्रदोष व्रत कहलाया जाता है. यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होता है. प्रदोष व्रत में पूजा शाम के समय यानी प्रदोष काल में की जाती है.

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जब प्रदोष व्रत शुक्रवार के दिन पड़ता है, तब इसे शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाता है. (Photo: Ai Generated) जब प्रदोष व्रत शुक्रवार के दिन पड़ता है, तब इसे शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाता है. (Photo: Ai Generated)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 02 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 7:08 AM IST

Shukra Pradosh Vrat 2025: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का खास महत्व माना गया है. यह व्रत हर महीने के दोनों पक्षों शुक्ल और कृष्ण की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है. यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा पाने के लिए सबसे श्रेष्ठ माना जाता है. मान्यता है कि प्रदोष काल में की गई पूजा से भक्तों के सभी दुख-दर्द दूर होते हैं.

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कब है प्रदोष व्रत? (Pradosh Vrat 2025 Date)

त्रयोदशी तिथि की शुरूआत 5 सितंबर सुबह 4 बजकर 09 मिनट पर होगी और इसका समापन 6 सितंबर मध्य रात्रि 3 बजकर 14 मिनट पर होगा. प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा शाम के समय यानी प्रदोष काल में होती है. ऐसे में 05 सितंबर को प्रदोष व्रत रखा जाएगा. चूंकि, इस बार प्रदोष व्रत शुक्रवार को पड़ रहा है इसीलिए यह शुक्र प्रदोष व्रत कहलाएगा. साथ ही इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है, जिससे व्रत का महत्व और बढ़ जाता है.

शुक्र प्रदोष व्रत का महत्व (Shukra Pradosh Vrat Significance)

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शुक्र प्रदोष व्रत करने से दांपत्य जीवन में खुशहाली आती है. साथ ही जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है. शास्त्रों के अनुसार, इस दिन रुद्राभिषेक कराने से विशेष पुण्य और भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है.

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शुक्र प्रदोष व्रत पूजा विधि (Shukra Pradosh Vrat Pujan Vidhi)

इश दिन प्रातःकाल स्नान कर सूर्यदेव को अर्घ्य दें. इसके बाद पूजा स्थल को साफ करें. प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में करें. शिव मंदिर जाएं और घी का दीपक जलाकर शिवलिंग का पंचामृत से अभिषेक करें. माता पार्वती को श्रृंगार सामग्री और लाल चुनरी अर्पित करें. इसके बाद शुक्र प्रदोष व्रत कथा और शिव चालीसा का पाठ करें. साथ ही आरती कर भगवान को भोग चढ़ाएं. अंत में प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रत का पारण करें.

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