शारदीय नवरात्र की शुरुआत सोमवार से हो चुकी है. घरों में घट स्थापना हो चुकी है और इस तरह पहले दिन की पूजा के तौर पर 'शैलपुत्री' देवी की पूजा की जा रही है. कई लोगों के मन में शंका रहती है कि वह नवरात्र में पूजन कैसे करें? कहीं कोई गलती न हो जाए या फिर किस तरह से देवी को प्रसन्न किया जा सकता है. लोगों की इस उलझन का हर देवी पूजा से संबंधित पुस्तिका श्रीदुर्गा सप्तशती में दिया गया है.
दुर्गा सप्तशती मार्कंडेय पुराण के ही एक हिस्से के रूम देवी आराधना के लिए बने मंत्रों और पूजा के श्लोकों का समूह है. इसी सप्तशती में एक जगह पर खुद भगवना शिव ने कहा है कि देवी दुर्गा के 108 नाम हैं. इन 108 नामों में ही उनके व्यकित्व का पूरा रहस्य छिपा पड़ा है. कोई भी व्यक्ति श्लोकों समूह में से केवल देवी के नामों का ही उच्चारण कर लेता है तो इससे उसकी पूजा सफल हो जाती है और उसे मनचाहा वरदान भी मिलता है.
देवी के 108 नामों से मिलकर बना है स्त्रोत
देवी के इस श्कोल को श्री दुर्गा स्तोत्र भी कहा जाता है. यह स्तोत्र 108 नामों से मिलकर बना है, जिनका पाठ करने से भक्त को शांति, सुख, और समृद्धि प्राप्त होती है. इन नामों का उच्चारण और स्मरण मन को शुद्ध करता है और मां दुर्गा के प्रति भक्ति बढ़ाता है . दुर्गाष्टोत्तर शतनाम के पाठ से मां दुर्गा में श्रद्धा और भक्ति का विकास होता है. इस स्तोत्र के पाठ से रोगों का नाश होता है और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का उन्नति होताी है . दुर्गाष्टोत्तर शतनाम के पाठ से भय और अंधकार का नाश होता है. यह भक्त को साहस और निर्भीकता प्रदान करता है.
यह स्तोत्र भक्ति और आध्यात्मिक विकास का एक अच्छा साधन है. इसका नियमित पाठ करने से जीवन में स्थिरता और संतुलन बना रहता है और मां दुर्गा के आशीर्वाद से व्यक्ति के मार्ग में सफलता आती है. यहां इस श्लोक में जिन-जिन नामों वर्णन आया है, उनकी लिस्ट यहां मौजूद है.
1 सती पतिव्रता
2 साध्वी साधना करनेवाली
3 भवप्रीता भगवान शिव पर प्रीति रखनेवाली
4 भवानी शिवपत्नी
5 भवमोचनी संसार बन्धन से मुक्त करनेवाली
6 आर्या श्रेष्ठ, पूजनीय
7 दुर्गा कठिनाइयों से रक्षण करनेवाली
8 जया विजयदायिनी
9 आद्या आदि स्वरूपिणी
10 त्रिनेत्रा तीन नेत्रोंवाली
11 शूलधारिणी त्रिशूल धारण करनेवाली
12 पिनाकधारिणी शिवधनुष धारण करनेवाली
13 चित्रा सुंदरता से युक्त
14 चण्डघण्टा प्रचण्ड स्वर से घण्टानाद करनेवाली
15 महातपा भारी तपस्या करनेवाली
16 मन मनस्वरूपिणी
17 बुद्धि बोधशक्ति
18 अहंकारा अहंकार का आश्रय
19 चित्तरूपा चित्तस्वरूपा
20 चिता श्मशान से सम्बन्धित
21 चिति चेतना
22 सर्वमन्त्रमयी सभी मन्त्रों में विद्यमान
23 सत्ता सत्-स्वरूपा
24 सत्यानन्दस्वरूपिणी सत्य और आनन्द की स्वरूपिणी
25 अनन्ता जिनका अन्त नहीं
26 भाविनी सबको उत्पन्न करनेवाली
27 भाव्या ध्यान करने योग्य
28 भव्या कल्याणरूपा
29 अभव्या सर्वोत्तम भव्य
30 सदागति शाश्वत गति देनेवाली
31 शाम्भवी शिवप्रिया
32 देवमाता देवताओं की माता
33 चिन्ता ध्यानस्वरूपा
34 रत्नप्रिया रत्नप्रिय
35 सर्वविद्या सम्पूर्ण विद्याओं की अधिष्ठात्री
36 दक्षकन्या दक्षप्रजापति की पुत्री
37 दक्षयज्ञविनाशिनी दक्षयज्ञ का विनाश करनेवाली
38 अपर्णा पत्ता तक न खानेवाली तपस्विनी
39 अनेकवर्णा अनेक रंगोंवाली
40 पाटला लाल रंगवाली
41 पाटलावती लाल फूल धारण करनेवाली
42 पट्टाम्बरपरीधाना रेशमी वस्त्र पहननेवाली
43 कलमंजीररंजिनी मधुर मंजीरा ध्वनि करनेवाली
44 अमेयविक्रमा असीम पराक्रमवाली
45 क्रूरा दैत्यों पर कठोर
46 सुन्दरी सुंदरता से युक्त
47 सुरसुन्दरी अप्सराओं से भी सुंदर
48 वनदुर्गा वन में पूजित दुर्गा
49 मातंगी मातंग वंश की देवी
50 मतंगमुनिपूजिता मतंग मुनि द्वारा पूजिता
51 ब्राह्मी ब्रह्मशक्ति स्वरूपा
52 माहेश्वरी महेश्वर की शक्ति
53 ऐन्द्री इन्द्रशक्ति
54 कौमारी कुमार कार्तिकेय की शक्ति
55 वैष्णवी विष्णुशक्ति
56 चामुण्डा चण्ड-मुण्ड संहारिणी
57 वाराही वराह शक्ति
58 लक्ष्मी धन की देवी
59 पुरुषाकृति पुरुष समान स्वरूपा
60 विमला निर्मल
61 उत्कर्षिणी उत्कर्ष देनेवाली
62 ज्ञाना ज्ञान की अधिष्ठात्री
63 क्रिया क्रियाशक्ति
64 नित्या शाश्वता
65 बुद्धिदा बुद्धि देनेवाली
66 बहुला विविध स्वरूपिणी
67 बहुलप्रेमा अत्यधिक प्रेम देनेवाली
68 सर्ववाहनवाहना सभी वाहनों की स्वामिनी
69 निशुम्भ-शुम्भहननी शुम्भ-निशुम्भ संहारिणी
70 महिषासुरमर्दिनी महिषासुर का वध करनेवाली
71 मधुकैटभहन्त्री मधु-कैटभ वध करनेवाली
72 चण्डमुण्डविनाशिनी चण्ड-मुण्ड का संहार करनेवाली
73 सर्वासुरविनाशा सभी असुरों का नाश करनेवाली
74 सर्वदानवघातिनी सभी दानवों का संहार करनेवाली
75 सर्वशास्त्रमयी सभी शास्त्रों में विद्यमान
76 सत्य सत्यस्वरूपा
77 सर्वास्त्रधारिणी सभी अस्त्र धारण करनेवाली
78 अनेकशस्त्रहस्ता अनेक शस्त्रोंवाली
79 अनेकास्त्रधारिणी अनेक अस्त्र धारण करनेवाली
80 कुमारी कुमारिका रूपा
81 एककन्या एकल कन्या
82 कैशोरी किशोरी
83 युवती युवा स्वरूपा
84 यति संयमस्वरूपा
85 अप्रौढा अविवाहिता
86 प्रौढा विवाहित
87 वृद्धमाता वृद्धावस्था की माता
88 बलप्रदा बल प्रदान करनेवाली
89 महोदरी विशाल उदर वाली
90 मुक्तकेशी खुले केशोंवाली
91 घोररूपा भयानक रूपवाली
92 महाबला अत्यन्त शक्तिशाली
93 अग्निज्वाला अग्निज्वालामयी
94 रौद्रमुखी रौद्र रूपवाली
95 कालरात्रि कालरात्रि स्वरूपा
96 तपस्विनी तपस्या करनेवाली
97 नारायणी विष्णुशक्ति
98 भद्रकाली कल्याणमयी काली
99 विष्णुमाया विष्णु की मायाशक्ति
100 जलोदरी जलको धारण करनेवाली
101 शिवदूती शिव की दूत
102 कराली प्रचण्ड रूपवाली
103 अनन्ता विनाश रहित
104 परमेश्वरी परमेश्वरी देवी
105 कात्यायनी ऋषि कात्यायन की कन्या
106 सावित्री सरस्वती स्वरूपा
107 प्रत्यक्षा प्रत्यक्ष स्वरूपिणी
108 ब्रह्मवादिनी ब्रह्मज्ञान उपदेशिका
॥ श्रीदुर्गायै नमः ॥
ईश्वर उवाच
शतनाम प्रवक्ष्यामि शृणुष्व कमलानने । यस्य प्रसादमात्रेण दुर्गा प्रीता भवेत् सती ॥ 1 ॥
ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी भवमोचनी ।आर्या दुर्गा जया चाद्या त्रिनेत्रा शूलधारिणी ॥ 2 ॥
पिनाकधारिणी चित्रा चण्डघण्टा महातपाः । मनो बुद्धिरहंकारा चित्तरूपा चिता चितिः ॥ 3 ॥
सर्वमन्त्रमयी सत्ता सत्यानन्दस्वरूपिणी । अनन्ता भाविनी भाव्या भव्याभव्या सदागतिः ॥ 4॥
शाम्भवी देवमाता च चिन्ता रत्नप्रिया सदा। सर्वविद्या दक्षकन्या दक्षयज्ञविनाशिनी ॥ 5 ॥
अपर्णानेकवर्णा च पाटला पाटलावती। पट्टाम्बरपरीधाना कलमञ्जीररञ्जिनी ॥ 6 ॥
अमेयविक्रमा क्रूरा सुन्दरी सुरसुन्दरी। वनदुर्गा च मातङ्गी मतङ्गमुनिपूजिता ॥ 7 ॥
ब्राह्मी माहेश्वरी चैन्द्री कौमारी वैष्णवी तथा । चामुण्डा चैव वाराही लक्ष्मीश्च पुरुषाकृतिः ॥ 8 ॥
विमलोत्कर्षिणी ज्ञाना क्रिया नित्या च बुद्धिदा । बहुला बहुलप्रेमा सर्ववाहनवाहना ॥ 9॥
निशुम्भशुम्भहननी महिषासुरमर्दिनी । मधुकैटभहन्त्री च चण्डमुण्डविनाशिनी ॥ 10 ॥
सर्वासुरविनाशा च सर्वदानवघातिनी । सर्वशास्त्रमयी सत्या सर्वास्त्रधारिणी तथा ॥ 11 ॥
अनेकशस्त्रहस्ता च अनेकास्त्रस्य धारिणी। कुमारी चैककन्या च कैशोरी युवती यतिः ॥ 12 ॥
अप्रौढा चैव प्रौढा च वृद्धमाता बलप्रदा। महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला ।। 13॥
अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्रिस्तपस्विनी । नारायणी भद्रकाली विष्णुमाया जलोदरी ॥ 14 ॥
शिवदूती कराली च अनन्ता परमेश्वरी। कात्यायनी च सावित्री प्रत्यक्षा ब्रह्मवादिनी ॥ 15॥
य इदं प्रपठेन्नित्यं दुर्गानामशताष्टकम् । नासाध्यं विद्यते देवि त्रिषु लोकेषु पार्वति ॥ 16 ॥
धनं धान्यं सुतं जायां ‘हयं हस्तिनमेव च। चतुर्वर्गं तथा चान्ते लभेन्मुक्तिं च शाश्वतीम् ॥ 17 ॥
कुमारीं पूजयित्वा तु ध्यात्वा देवीं सुरेश्वरीम् । पूजयेत् परया भक्त्या पठेन्नामशताष्टकम् ॥ 18॥
तस्य सिद्धिर्भवेद् देवि सर्वैः सुरवरैरपि। राजानो दासतां यान्ति राज्यश्रियमवाप्नुयात् ॥ 19 ॥
गोरोचनालक्तककुङ्कुमेन सिन्दूरकर्पूरमधुत्रयेण विलिख्य यन्त्रं विधिना विधिज्ञो भवेत् सदा धारयते पुरारिः ॥ 20 ॥
भौमावास्यानिशामग्रे चन्द्रे शतभिषां गते। विलिख्य प्रपठेत् स्तोत्रं स भवेत् सम्पदां पदम् ॥ 21 ॥
aajtak.in