असदुद्दीन ओवैसी, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख और हैदराबाद से सांसद, भारतीय राजनीति में एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जिनको समझना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. लोकसभा में सोमवार को ऑपरेशन सिंदूर पर हो रही बहस में उन्होंने मोदी सरकार की धज्जियां उड़ा दीं फिर भी सोशल मीडिया पर तमाम ऐसे भाजपाई हैं जो तारीफ के पुल बांध रहे हैं.
ट्वीटर पर एक बीजेपी के हार्ड कोर कट्टर समर्थक ने ओवैसी के लोकसभा में दिए स्पीच के बारे लिखा...
'गिरी हुई कॉन्ग्रेस से ज़्यादा सही तरीके से असदुद्दीन ओवैसी ने सरकार की आलोचना की है.
पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैच को लेकर निशाना साधा, डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा सीजफायर की घोषणा पर प्रहार किया, राफेल के सोर्स कोड न मिलने को लेकर सवाल दागा और पर्याप्त सबमरीन न होने पर भी आशंका जताई.
असदुद्दीन ओवैसी ऑल-पार्टी डेलीगेशन के भी सदस्य थे, इस्लामी मुल्क़ों में जाकर उन्होंने भारत का खुलकर पक्ष लिया. भले ही इसे दिखावा ही क्यों न कहा जाए, जब देश की बात आई तो उन्होंने देश के पक्ष में आवाज़ उठाई तो ये मायने रखता है.
आलोचना की भाषा सभ्य हो, सवाल सुसंगत हों और आशंकाएं जायज़ हों तो फिर आलोचना बुरी नहीं है. बिना आलोचना लोकतंत्र का अस्तित्व नहीं है.'
जाहिर है कि सोशल मीडिया पर असदुद्दीन ओवैसी छाये हुए हैं. उनके समर्थकों की संख्या बढ़ती जा रही है. ओवैसी को पाकिस्तान भेजने की बात करने वाले आज उन्हें कांग्रेस से बेहतर देश हित की बात करने वाला बता रहे हैं.
1-ओवैसी ने क्या कहा जिसकी इतनी तारीफ हो रही है
पाकिस्तान के प्रति आम भारतीयों का नजरिया ठीक नहीं रहा है. फिर चाहे वह बीजेपी समर्थक हो या कांग्रेसी. पाकिस्तान की जब कोई भी धुलाई करता है तब भारतीयों को बहुत मजा आता है. फिर वो चाहे क्रिकेट मैदान हो या संसद भवन. ओवैसी आम भारतीयों की इस भावना को भली भांति समझते हैं.
संसद में ओवैसी भारत-पाकिस्तान संबंधों पर कड़ा रुख अपनाते हैं और कहते हैं कि जब भारत ने पाकिस्तान के साथ व्यापार, हवाई क्षेत्र का उपयोग,और राजनयिक संबंधों को सीमित कर दिया है, तो फिर क्रिकेट जैसे खेलों में भागीदारी का क्या औचित्य रह गया है.
ओवैसी एशिया कप जैसे टूर्नामेंट में भारत की भागीदारी पर सवाल उठाते हैं. गौरतलब है कि इस टूर्नामेंट में पाकिस्तान भी शामिल होता है. पाकिस्तान के खिलाफ ओवैसी की यह स्पीच बीजेपी की राष्ट्रवादी विचारधारा और पाकिस्तान के प्रति सख्त नीति के अनुरूप होने के चलते बीजेपी समर्थकों को खूब पसंद आ रहा है.
2- विपक्षी वोट बैंक पर प्रभाव
ऑपरेशन सिंदूर के शुरू होने के पहले तक ओवैसी को अक्सर मुस्लिम समुदाय के अधिकारों की बात करने वाले नेता के रूप में देखा जाता रहा है. पर पाकिस्तान से जंग के वक्त उन्होंने जिस तरह भारत का पक्ष दुनिया के सामने रखा उससे उनकी छवि बदल गई. खासकर उनके बयानों से विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस और अन्य सेक्युलर दलों के नेताओं के बयान से तुलना होने लगती है.जाहिर है कि असदुद्दीन औवैसी की बातों से विपक्ष का वोट बैंक प्रभावित हो सकता है.
बीजेपी समर्थक औवैसी के भाषण को कांग्रेस नेताओं को टार्गेट करने के लिए एक रणनीतिक अवसर के रूप में इस्तेमाल करते हैं. ओवैसी का राष्ट्रवाद से ओतप्रोत सख्त बयान विपक्षी दलों को असहज स्थिति में डाल देता है. दरअसल ओवैसी की बातों का विपक्ष न तो खुलकर विरोध कर पाता और न ही खुलकर समर्थन कर पाता है.
3- अनुच्छेद 370 पर आलोचना भी पच जा रही है
ओवैसी ने अपनी स्पीच में जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद भी आतंकी गतिविधियों पर सवाल उठाए. जाहिर है कि बीजपेी समर्थकों को बुरा लगना चाहिए था. पर ऐसा नहीं हुआ. हालांकि यह सरकार की आलोचना थी, लेकिन बीजेपी समर्थकों ने इस रूप में स्वीकार किया कि ओवैसी ने आतंकवाद के खिलाफ सख्ती की बात की है. ओवैसी का आतंकवाद विरोधी रुख बीजेपी की नीतियों से मेल खाता है, और दूसरी तरफ, उनकी आलोचना को बीजेपी समर्थक यह कहकर खारिज कर सकते हैं कि सरकार पहले ही सही दिशा में काम कर रही है.
4- बीजेपी समर्थकों को नैतिक जीत महसूस होता है
भारतीय राजनीति में ध्रुवीकरण एक बड़ा कारक है और अब तक देश की राजनीति में ओवैसी के बयान ध्रुवीकरण के लिए मशहूर थे. बीजेपी भी चाहती थी कि ओवैसी कुछ बोले ताकि पार्टी उनके बयान पर खेल सके. अब ओवैसी जैसे नेता राष्ट्रवादी हो गए हैं. बीजेपी समर्थकों को लगता है कि मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि माने जाने वाले ओवैसी उनकी तरह सोचने लगे हैं. बीजेपी समर्थकों के लिए यह एक नैतिक जीत की तरह होता है. यह उनके समर्थकों को यह कहने का मौका देता है कि राष्ट्रवाद अब सभी समुदायों में स्वीकार्य हो रहा है.
संयम श्रीवास्तव