रोहित शर्मा और विराट कोहली कोई साधारण क्रिकेटर नहीं थे. वे सतर्क आशावाद से लेकर साहसिक महत्वाकांक्षा तक के देश के सफ़र के प्रतीक थे, वह भारत के कर सकने की भावना से लेकर कर के रहेंगे की भावना तक के सफर के जीते-जागते उदाहरण थे. वे सिर्फ क्रिकेट के इतिहास के चैप्टर नहीं थे, एक साथ पढ़ा जाए तो वे भारत का दशकीय इतिहास ही थे.
क्रिकेट और देश का मजबूत रिश्ता
क्रिकेट भारत के लिए एक तरह से पहचान है. यह हमारी उम्मीदों, आकांक्षाओं, नैतिकताओं और संघर्षों को दर्शाता है, जो भारतीय इतिहास के अलग-अलग चरणों को दर्शाता है. यह जादुई रिश्ता इतना गहरा है कि भारत की कहानी उसके क्रिकेटरों की जीवनी के जरिए बताई जा सकती है.
आजादी के बाद के भारत के संघर्ष और लाला अमरनाथ के संघर्ष एक जैसे थे, राजनीति से बांटे गए एक देश में गरीबी में पैदा हुए, लेकिन फिर भी अपने भाग्य के निर्माता बने. 1971 के बाद के भारत की चुनौती सुनील गावस्कर का प्रतिरोध था, जो तेज और बेरहम दुनिया के सामने बगैर हेलमेट के साहस की एक तस्वीर थे. 1980 के दशक का उभरता हुआ आत्मविश्वास कपिल देव का तेज था, वो साहसी कप्तान, जो पलटवार करने से नहीं डरता था.
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इसी तरह उदारीकरण के बाद के 1990 के दशक की उम्मीदें और आकांक्षाएं सचिन तेंदुलकर में दिखीं, एक युवा जो ग्लोबल प्लेटफॉर्म पर अपनी महानता की मुहर लगाने के लिए उत्सुक था. और 2010 के दशक का बहादुर, साहसी भारत महेंद्र सिंह धोनी, रोहित और कोहली की तिकड़ी थी. वे तीन महान खिलाड़ी, जो अपनी महत्वाकांक्षा और क्षमता से भारत को आगे और ऊपर ले गए.
'रोहित-कोहली और धोनी...'
क्रिकेट की तरह, भारतीय सिनेमा भी अक्सर देश की भावना को परिभाषित करता है, कभी-कभी एक्सीडेंटल पैरोडी के जरिए. इसलिए, किसी चालाक तुकबंदी करने वाले ने एक मशहूर गीत का इस्तेमाल करके दावा किया, 'अनहोनी को होनी कर दे, होनी को अनहोनी, एक जगह जब जमा हो तीनों, रोहित, कोहली और धोनी', तो यह सच्चाई से बहुत दूर नहीं था. यह तिकड़ी वास्तव में मौजूदा युग की प्रतीक थी. एक ऐसे भारत की जो सतर्क उम्मीद से आत्मविश्वासपूर्ण उपलब्धि की ओर बढ़ रहा है. एक ऐसा भारत जो अनहोनी को होनी करने में सक्षम है, अकल्पनीय है.
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कोहली और रोहित, दोनों ही लीडर और बल्लेबाज के रूप में बदलते भारत के प्रतिबिंब थे. उनकी कप्तानी समय की निरंतरता पर एक स्वाभाविक प्रगति थी. तेंदुलकर, 90 के दशक के अलर्ट मिडिल क्लास की तरह, अपनी महत्वाकांक्षा के बारे में लगभग क्षमाप्रार्थी थे और अपनी प्रतिभा में संयमित थे. धोनी ने 2010 के बीच में शांत आत्मविश्वास को दर्शाया, जब भारत की अर्थव्यवस्था लगातार बढ़ रही थी. कोहली ने आक्रामकता के युग की शुरुआत की, जो प्रतिद्वंद्वियों को भारत की ताकत की याद बेबाकी से मिडिल फिंगर ऊपर करके दिलाते थे, जो 2013 के आसपास आकार लेना शुरू कर रहा था और एक बार जब वह प्रभुत्व स्थापित हो गया, तो रोहित ने इस खेल को किसी गार्डन में टहलने जैसा बना दिया, जो आज के आत्मविश्वासी भारत को परिभाषित करता है.
कोहली अपने आप में आग
इन नजरियों ने उनकी बल्लेबाजी शैलियों को भी आकार दिया. कोहली एक जोशीले योद्धा थे, जो किसी ऐसे व्यक्ति की तीव्रता के साथ खेलते और प्रतिस्पर्धा करते थे जो हार मानने से इनकार करता था. वह खुद आग थे, अक्सर उससे प्रेरित होते थे, कभी-कभी उसमें भस्म भी हो जाते थे, लेकिन हमेशा प्रतिद्वंदियों को जलाने के लिए तैयार रहते थे.
रोहित हमेशा एक ब्रेफिक्र आर्टिस्ट थे, एक सुहानी दोपहर में अपने नेचुरल टेलेंट का आनंद लेने वाले एक आलसी बेपरवाह व्यक्ति की तरह. वह खुद हवा थे, जो अपने ही अंदाज में बह रहे थे, कभी ठंडी हवा, कभी प्रचंड हवा, लेकिन हमेशा अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को बहा ले जाते थे.
वे ज्यादातर अपने बल्ले से ही बात करते हैं. लेकिन कभी-कभी, वे अपने बल्ले से ही बात करते हैं. स्टंप-माइक और बाउंड्री कैमरा पर कब्ज़ा करके, दोनों ही क्रिकेटर ऑडियो-विज़ुअल लीजेंड बन गए. रोहित, हर मौके पर गाली देने वाला बड़ा भाई. कोहली, एक शरारती बच्चा, जो हमेशा भिड़ंत के लिए गलत उंगली तैयार रखता है.
क्या उनके बिना टेस्ट क्रिकेट वैसा ही रहेगा?
भले ही क्रिकेट एक टीम गेम है, लेकिन यह अंततः दो व्यक्तियों- बल्लेबाज और गेंदबाज के बीच की लड़ाई है, जिसका नतीजा पूरे कॉन्टेस्ट का फैसला करता है. कभी-कभी, ये व्यक्तिगत लड़ाइयां खेल से भी बड़ी हो जाती हैं क्योंकि इसमें शामिल खिलाड़ियों का कद और उनके साथ हमारा भावनात्मक जुड़ाव होता है.
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पिछले एक दशक में, बल्लेबाजों में से हमने कोहली और रोहित पर सबसे ज़्यादा निवेश किया है. तेंदुलकर के बाद के दौर में किसी भी दूसरे बल्लेबाज़ से कहीं ज्यादा, उनकी जीत और असफलता की व्यक्तिगत कहानियां मैन सब-प्लॉट बन गए. इन कहानियों ने खेल की बड़ी कहानी को आकार दिया.
दोनों सिर्फ क्रिकेटर नहीं, क्रिकेट थे
जब कोहली ऑफ स्टंप के बाहर संघर्ष कर रहे थे, तो हमने उनके सफल होने की प्रार्थना की, भले ही खेल पहले ही हार चुके हों, फिर भी खुद को फिर से जिंदा करने की दुआ की. जब रोहित ऊपर बल्लेबाजी करते हुए उन बहादुर, नि:स्वार्थ पारियां खेलना भूल गए, तो हमने उनके लिए समय को पीछे मोड़ने की प्रार्थना की. उनके आगे बढ़ने की फीकी उम्मीदों में, हमने चमत्कारों में अपने भरोसे का टेस्ट किया, मानवीय कमजोरी और नियति के खिलाफ लड़ाई लड़ी, जिससे टेस्ट क्रिकेट एक खेल से कहीं ज्यादा बड़ा हो गया.
उनके संन्यास के साथ, कम से कम कुछ समय के लिए टेस्ट क्रिकेट एक आत्माविहीन तमाशा, एक रोचक सब-प्लॉट के बिना एक नीरस कहानी, खुशी या गम के बिना एक रोलर-कोस्टर बन जाएगा.
क्योंकि कोहली और रोहित महज क्रिकेटर नहीं थे, बल्कि वे खुद क्रिकेट थे.
(संदीपन शर्मा हमारे गेस्ट ऑथर हैं, जो क्रिकेट, सिनेमा, संगीत और राजनीति पर लिखना पसंद करते हैं. उनका मानना है कि ये सभी आपस में जुड़े हुए हैं.)
संदीपन शर्मा