नौकरशाही के पदक्रम में पंचायत सचिव सबसे पहला पायदान होता है. मतलब सरकारी तंत्र का सबसे छोटा लेकिन, बेहद अहम कर्मचारी. गांव में आम लोगों का सबसे अधिक साबका इस कर्मचारी से ही पड़ता है. इसके बाद खंड विकास अधिकारी, तहसीलदार, एसडीएम , एडीएम और डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट आदि. इसी तरह पुलिस विभाग में दरोगा से लेकर एसपी और आईजी तक का पदक्रम होता है. खुदा न खास्ता अगर आपका पाला इन सरकारी कर्मचारियों से पड़ गया तो आपको जिंदगी की हकीकत समझ में आ जाएगी. किस तरह एक प्रमाण पत्र के लिए या एक फाइल पर साइन कराने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं. फिर आपको हैरानी नहीं होगी कि लोग घूस देना क्यों ठीक समझते हैं या अपना काम कराने के लिए किसी दलाल या नेता के चक्कर में क्यों पड़ते हैं. हां, यहां यह स्पष्ट कर देना जरूरी है कि कहीं-कहीं अपवाद स्वरूप अमेजन प्राइम की वेबसीरीज पंचायत के पंचायत सचिव भी काम कर रहे होंगे. लेकिन, ज्यादातर जगहों पर अनुभव कड़वा ही है.
बिहार के एक पंचायत सचिव से एक आरजेडी विधायक भाई विरेंद्र की बातचीत पिछले दिनों से सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. लोग पंचायत सचिव के कसीदे पढ़ रहे हैं. आरजेडी विधायक को गाली दी जा रही है. विधायक को जेल भेजने की बात कर रहे हैं. बेशक यह आक्रोश जायज भी है. आम नागरिक नेताओं के VVIP कल्चर और उनकी दबंगई से खासे खफा हैं. ऐसे में विधायक भाई विरेंद्र के लहजे का समर्थन नहीं किया जा सकता है. लेकिन, यह बात कैसे नजरअंदाज कर दी जाए कि एक मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाने के लिये विधायक को पंचायत सचिव से बहस करनी पड़ रही है? मृत्यु प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, मूल निवासी प्रमाण पत्र जैसी बुनियादी सेवा देने को लेकर प्रशासनिक तंत्र किस तरह काम करता है, यह किसी से छुपा नहीं है. आइये, विधायक और पंचायत सचिव का ऑडियो सुनकर इस बारे में विस्तार से चर्चा करते हैं...
विधायक और पंचायत सचिव के बीच तल्खी का आधार तो दोनों की बातचीत के लहजे के कारण ही है. विधायक अपना नाम बताकर यह उम्मीद कर रहा है कि पंचायत सचिव उसे पहचान ले. जबकि अपनी दुनिया का बादशाह पंचायत सचिव विधायक को दो कौड़ी का नहीं समझ रहा है. आप इस बात से खुश हो सकते हैं कि विधायक की हेकड़ी को पंचायत सचिव अच्छे से निकाल दिया है. लेकिन, यह नहीं भूलना चाहिये कि यदि पंचायत सचिव एक विधायक के साथ ऐसा बर्ताव कर रहा है तो वह आम आदमी से कैसा बर्ताव कर रहा होगा.
कल्पना करिए कि जब एक विधायक की इस तरह खिल्ली एक पंचायत सचिव उड़ा रहा है तो इन जनप्रतिनिधियों की हालत डीएम और एसपी के आगे क्या होती होगी. आईएएस और आईपीएस अफसरों को तो सस्पेंड करने में चीफ मिनिस्टरों की भी सांस फूलने लगती है. नेताओं ने चिंदी चोरी में अपना नाम इस तरह दर्ज करा लिया कि आम जनता को अधिकारी ईमानदार लगते हैं और नेता भ्रष्ट लगते हैं. लेकिन, इस बहस का एक गंभीर पहलू यह है कि जनप्रतिनिधि पर हावी हो चुका प्रशासनिक तंत्र आम आदमी को कहीं का नहीं समझता है. आप किसी तहसील कार्यालय या कलेक्टोरेट का चक्कर लगाकर आ जाइये. अंदाजा मिल जाएगा कि कुछ लोगों का जीवन वहां अफसरों के इंतेजार में ही गुजर जाता है.
भ्रष्टाचार और दबंगई के लिए नेता कुख्यात रहे हैं, लेकिन देश में जितना काला धन अफसरों ने इकट्ठा किया है उतना नेताओं नहीं. नेताओं की बदनाम आम जनमानस में इस कदर हावी है कि इस ऑडियो को सुनने के बाद विधायक को ही गाली पड़ रही है. उस सचिव के बारे में लोग कह रहे हैं कि बहुत रीढ़ वाला व्यक्ति है जो नेता को उसकी औकात बता दिया. जबकि हकीकत में विधायक ने तो किसी कमजोर का काम कराने के लिए फोन किया था.
दरअसल पूरे देश में दबंगों और दलालों की राजनीति में सफलता का यही कारण रहा है. पंचायत सचिव हो या लेखपाल, बीडीओ हो या तहसीलदार, आम लोग की गि़ड़गिड़ाहट को तवज्जो नहीं देते हैं. उन्हें सिर्फ रिश्वत की भाषा समझ में आती है या किसी दबंग नेता के सामने इनकी घिग्गी बंध जाती है.
बिहार के इस वाकये को हम उत्तर प्रदेश के उदाहरण से भी समझ सकते हैं. यूपी में नौकरशाही इस तरह हावी है कि बिजली मंत्री को अपने मातहत इंजीनियर को सस्पेंड करने के लिए उसकी बातचीत का ऑडियो वायरल करवाना पड़ता है. एक राज्यमंत्री को अभी हाल ही में थाने में धरने पर बैठना पड़ता है. यूपी सरकार में नंबर 2 पर रह चुके सिद्धार्थ नारायण सिंह का सरकारी आवास बारिश में लीक कर रहा था. अधिकारी सुन नहीं रहे थे इसलिए उन्हें सोशल मीडिया पर अपना दुखड़ा रोना पड़ा था. अब अंदाजा लगाइये कि नौकरशाही के आगे ये हालत सियासी हुक्मरानों की है, तो आम बाशिंदों की क्या बिसात!
संयम श्रीवास्तव