कांग्रेस आलाकमान ने बिहार में चुनावी हार की समीक्षा के लिए दिल्ली मुख्यालय इंदिरा भवन में बैठक बुलाई थी. बैठक में हिस्सा लेने के लिए बिहार कांग्रेस के सीनियर नेता, सांसद और सारे उम्मीदवार भी पहुंचे थे. बैठक में बवाल भी हुआ. दो नेताओं के बीच हुई बहस इस लेवल तक पहुंच गई कि गाली-गलौच के बाद गोली मार देने तक की धमकी दी गई.
राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने समीक्षा बैठक में उम्मीदवारों के साथ विस्तार से बातचीत की. उम्मीदवारों को 10-10 के ग्रुप में बुलाया गया, और उनसे रिपोर्ट ली गई. बैठक में बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम, सांसद अखिलेश प्रसाद और मदन मोहन झा सहित कई सीनियर नेता भी मौजूद थे.
राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस उम्मीदवारों से हार के कारण पूछे और पूरा फीडबैक नोट किया. ज्यादातर उम्मीदवारों ने सीट बंटवारे में देरी, महागठबंधन में फ्रेंडली फाइट के साथ साथ आरजेडी के साथ गठबंधन को भी कांग्रेस की हार के लिए जिम्मेदार बताया - जाहिर है, ये सब फैसले उन उम्मीदवारों ने तो लिए नहीं होंगे.
हार की बड़ी वजह चुनावी गठबंधन
बैठक के बाद बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरु ने जो कुछ बताया उसमें जोर तो वोट चोरी पर ही था, लेकिन ये भी माना कि कुछ आंतरिक कारण भी थे. बैठक में शामिल कांग्रेस नेताओं में से कई आरजेडी के साथ चुनावी गठबंधन से नाराज भी नजर आए. बैठक में संगठन के भीतर की आपसी गुटबाजी और टिकट बंटवारे में गड़बड़ी जैसी बातों पर भी चर्चा हुई. देखा जाए, तो ऐसी ही बातों की तरफ इशारा करते हुए सीनियर नेता शकील अहमद ने चुनाव नतीजे आने के दिन ही कांग्रेस को अलविदा बोल दिया था.
ऐसे नेताओं का कहना था कि अगर तेजस्वी यादव और लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल से गठबंधन नहीं हुआ होता तो कांग्रेस की स्थिति इतनी खराब नहीं होती. नेताओं का सुझाव है कि आरजेडी के साथ गठबंधन पर फिर से विचार किया जाना चाहिए, और कांग्रेस को अपनी ताकत बढ़ाने पर फोकस करना चाहिए.
महागठबंधन के सहयोगी दलों के बारे में मीडिया से कृष्णा अल्लावरु कहते हैं, महागठबंधन में कई राजनीतिक दल शामिल थे. हर पार्टी की अपनी कमजोरियां भी हैं, और ताकत भी.
कांग्रेस उम्मीदवारों ने आलाकमान के सामने कुछ सीटों पर फ्रेंडली फाइट को भी हार के लिए जिम्मेदार बताया है - ध्यान से देखें तो समीक्षा बैठक में जो मुद्दे उठाए गए हैं, वे वही सारे हैं जिन पर कांग्रेस हाईकमान को फैसला लेना था.
आरजेडी की समीक्षा बैठक में उठे कांग्रेस पर सवाल
ध्यान देने वाली बात ये है कि आरजेडी की समीक्षा बैठकों से भी ऐसी ही खबरें आ रही हैं. असल में, तेजस्वी यादव भी चुनाव हारने वाले नेताओं से बात कर रहे हैं. 26 नवंबर से शुरू हुआ आरजेडी का समीक्षा कार्यक्रम 4 नवंबर तक चलने वाला है. आरजेडी की बैठक में भी नेताओं ने गठबंधन साथियों खासकर कांग्रेस के प्रति नाराजगी जताई है.
आरजेडी नेताओं का आरोप है कि पार्टी को अपने गठबंधन सहयोगियों कांग्रेस, लेफ्ट, वीआईपी, आईआईपी जैसे राजनीतिक दलों से वैसी मदद नहीं मिली, जितनी मिलनी चाहिए थी. नेताओं ने तेजस्वी यादव की कोर टीम के कामकाज के तौर तरीकों पर भी सवाल उठाए.
टिकट बंटवारे में देर और गड़बड़ियां
उम्मीदवारों ने बताया कि टिकट बंटवारे में देर होना भी बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार की बड़ी वजह बनी. और उसका खामियाजा उठाना पड़ा. उम्मीदवारों को आखिरी वक्त में सिंबल मिला, जिससे चुनाव कैंपेन के लिए जरूरी समय नहीं मिल सका.
टिकट बंटवारे की गड़बड़ी के सवाल पर कृष्णा अल्लावरु कहते हैं, कुछ टिकटों पर विवाद जरूर हुआ. ये सच है. लेकिन, विवादित टिकटों के केस में हार जीत का अंतर कम रहा, निर्विवाद टिकटों के मुकाबले. तो टिकट बेचे जाने की बात कैसे मान ली जाए? आरोप लगाना बहुत आसान होता है.
समीक्षा बैठक में हंगामा और बवाल
कांग्रेस की समीक्षा बैठक में हंगामा तो हुआ ही, जब दो उम्मीदवार आपस में भिड़ गए तो खासा बवाल भी हुआ. बहस से एक दूसरे को गाली देने का मामला गोली मार देने की धमकी तक पहुंच गया. बताते हैं, ये वाकया कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के मीटिंग में पहुंचने से पहले का है.
हुआ ये कि कांग्रेस के टिकट पर वैशाली सीट से चुनाव लड़ चुके इंजीनियर संजीव ने बाहरी नेताओं को टिकट देने का आरोप लगाया और हार के लिए जिम्मेदार ठहराया. इस बात पर पूर्णिया से उम्मीदवार रहे जितेंद्र यादव ने आपत्ति जताई और विरोध किया. उसके बाद दोनों आपस में भिड़ गए, और इंजीनियर संजीव ने जितेंद्र यादव को मुंह में गोली मार देने की धमकी दे डाली. बहरहाल, सीनियर नेताओं के बीच बचाव से मामला शांत हुआ.
बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरु से मीडिया ने जब घटना के बारे में जानना चाहा, तो उनका जवाब था, जब से मैं उस कमरे में दाखिल हुआ, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. अगर ऐसा हुआ है, तो आपको जाकर उनसे पूछना चाहिए.
सीटें बदल दिया जाना भी हार की एक वजह के रूप में सामने आया है. कांग्रेस नेता तौकीर आलम ने समीक्षा बैठक में खुद का ही उदाहरण पेश किया. बोले, मैं अपनी सीट पर तैयारी कर रहा था, लेकिन मेरा ट्रांसफर बरारी कर दिया गया... अगर मेरा नाम 10-15 दिन पहले अनाउंस हो जाता, तो मैं कवर कर सकता था... कम समय में हमें बहुत सपोर्ट मिला, लेकिन हम जीत नहीं पाए.
बरारी विधानसभा सीट पर तौकीर आलम को 96,858 वोट मिले थे, और वो 10,984 वोटों के अंतर से जेडीयू उम्मीदवार बिजय सिंह से चुनाव हार गए.
मुस्लिम वोट बंटने के लिए जिम्मेदार कौन
सीमांचल से आने वाले कांग्रेस नेता मुसव्विर आलम का मानना है कि असदुद्दीन ओवैसी की वजह से महागठबंधन के वोट बंट गए. मुसव्विर आलम का आकलन है कि ओवैसी और बीजेपी ने मिलकर ऐसा नैरेटिव तैयार किया जिसका असर सीमांचल से लेकर बिहार के दूसरे जिलों तक पड़ा.
मुस्लिम वोट पर तो पहला दावा महागठबंधन का ही था. तेजस्वी यादव तो M-Y फैक्टर की स्थापित राजनीति को ही आगे बढ़ा रहे हैं. कांग्रेस को भी मुस्लिम वोट मिलते ही हैं. रही बात ओवैसी फैक्टर की, तो एक मुद्दा तो है ही. चुनावों के दौरान सुनने में आया था कि AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी महागठबंधन में शामिल होना चाहते थे, लेकिन उनको एंट्री नहीं मिली.
महागठबंधन का नेता और चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष होने के नाते अंतिम फैसला तो तेजस्वी यादव ने ही लिया होगा. हो सकता है, राहुल गांधी भी थोड़ी बहुत भूमिका हो. लेकिन, बात बस इतनी ही तो नहीं थी.
क्या तेजस्वी यादव के महागठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किए जाने पर असमंजस ने मुस्लिम वोटर को कन्फ्यूज नहीं किया होगा? और ऐसी तोहमत तो कांग्रेस हाईकमान पर ही जाएगी.
मृगांक शेखर