बिहार की राजनीति में एक सप्ताह के अंदर इतना कुछ बदल जाएगा यह किसने सोचा था. एक सप्ताह में बिहार में सरकार बदल गई, एक सप्ताह में नीतीश कुमार के गठबंधन के साथी भी बदल गए, मगर जो चीज नहीं बदली वह थी नीतीश कुमार और उनके मुख्यमंत्री पद पर बने रहना. दरअसल यही है नीतीश कुमार स्टाइल का पॉलिटिक्स. नीतीश कुमार जिस भी गठबंधन में भी जाते हैं, वहां सर्वमान्य हो जाते हैं. और हर गठबंधन उन्हें मुख्यमंत्री स्वीकार करने के लिए मानो तैयार बैठा है.
बिहार में पिछले सात दिनों में जो सबसे बड़ा परिवर्तन हुआ वह यह की बिहार में सरकार बदल गई. इस बात के संकेत तभी से मिल रहे थे जब से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नीतीश कुमार को लेकर अपने तेवर नरम किए थे, और जनता दल यूनाइटेड के दोबारा से एनडीए में आने को लेकर कहा था कि अगर कोई प्रस्ताव उन्हें मिलेगा तो वह उसे पर विचार करेंगे.
इसके बाद पिछले सप्ताह ही केंद्र सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने का फैसला किया. कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने की मांग नीतीश कुमार की काफी वर्षों से थी और माना गया कि केंद्र सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री को भारत रत्न से सम्मानित करके नीतीश कुमार के तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है. नीतीश ने कर्पूरी ठाकुर को सम्मानित करने के केंद्र सरकार के फैसले के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद किया.
24 जनवरी को ही जब सुबह में नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धन्यवाद किया तो उसी दिन दोपहर होते-होते उन्होंने कर्पूरी ठाकुर की 100वीं जयंती के मौके पर परिवारवाद का मुद्दा उठा दिया. उन्होंने परिवारवाद को लेकर कांग्रेस और लालू परिवार पर बिना नाम लिए हुए जमकर हमला बोला. नीतीश कुमार के परिवारवाद का मुद्दा उठाने के बाद लगभग तय हो चुका था कि उन्होंने राजद के साथ गठबंधन तोड़ने का मन बना दिया है और एक बार फिर से वह बीजेपी के साथ दोस्ती करेंगे.
नीतीश कुमार के परिवारवाद का मुद्दा उठाने के साथ ही राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद की सिंगापुर स्थित बेटी रोहिणी आचार्य ने 25 जनवरी को नीतीश कुमार पर सोशल मीडिया के जरिए जमकर हमला बोला और जमकर खरी खोटी सुनाया. रोहिणी आचार्य के नीतीश कुमार पर हमला बोलने के बाद तय हो गया था कि नीतीश कुमार अब राजद के साथ कुछ ही दिनों के मेहमान है. इसके बाद फिर 25 जनवरी के शाम को ही आनन-फानन में बिहार बीजेपी के नेताओं को केंद्रीय भाजपा के नेताओं ने दिल्ली बुलाया और उनसे मंथन किया.
माना जा रहा है कि केंद्रीय भाजपा आलाकमान ने बिहार बीजेपी के नेताओं को बता दिया कि नीतीश कुमार एनडीए में वापस आ रहे हैं और इसीलिए बिहार में बीजेपी के नेताओं को नीतीश पर हमला करना बंद करना चाहिए. 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर शाम में राज भवन में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था जिसमें नीतीश कुमार तो पहुंचे थे और साथ ही भाजपा के कई नेता भी पहुंचे थे. तत्कालीन उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए थे. राजद और जनता दल यूनाइटेड के बीच में गठबंधन की गांठ और कसती जा रही थी.
इसके बाद 27 जनवरी को पटना में भाजपा विधायक दल की बैठक हुई और साथ ही राजद विधायक दल की भी बैठक हुई. माहौल पूरा बन चुका था कि अब बिहार में जल्द सरकार बदलने वाली है. इसके बाद नीतीश कुमार ने भी अगले दिन यानी 28 जनवरी को जनता दल यूनाइटेड विधायक दल की बैठक बुलाई और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने का घोषणा किया. इसके बाद दोपहर में नीतीश कुमार ने राज्यपाल से मिलकर अपना इस्तीफा दे दिया.
इसके बाद मुख्यमंत्री आवास पर एनडीए विधायक दल की बैठक हुई जहां पर नीतीश कुमार को नेता चुना गया. उसके बाद नीतीश कुमार दोबारा से राज भवन गए और सरकार बनाने का दावा पेश किया और फिर शाम होते-होते उसी दिन उन्होंने नौवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लिया. दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी के नेता सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा जो नीतीश कुमार के जबरदस्त विरोधी थे उन्हें नई सरकार में उपमुख्यमंत्री बना दिया गया.
रोहित कुमार सिंह