तेलंगाना विधानसभा के लिए चुनाव के प्रचार आखिरी घंटे दौर में है. 30 नवंबर को होने वाले मतदान के लिए सत्ताधारी BRS, कांग्रेस और बीजेपी ने एक-दूसरे के खिलाफ आक्रामक तेज कर दिया है. कोशिश तो शुरू से ही मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की रही है, लेकिन दोनों ही राजनीतिक विरोधियों के निशाने पर होने के बावजूद मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव का पूरा परिवार कांग्रेस और बीजेपी से डट कर मुकाबला कर रहा है - नेताओं के भाषण सुन कर तो ऐसा ही लगता है.
केसीआर की तैयारियों को थोड़ा अलग रख कर देखें तो बीजेपी ने विधानसभा चुनावों की तैयारी 2020 के बिहार चुनाव के साथ ही शुरू कर दी थी. हैदराबाद में जुलाई, 2022 में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के बाद तो जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी नेता अमित शाह ने मुख्यमंत्री केसीआर और उनके परिवार पर धावा ही बोल दिया था.
बीजेपी के मुकाबले देर से शुरुआत के बावजूद कांग्रेस ने खुद को बीआरएस से सीधे मुकाबले में ला दिया. राहुल गांधी भी बीजेपी की ही तरह मुख्यमंत्री केसीआर पर परिवारवाद और भ्रष्टाचार के आरोप लगाते रहे हैं. अब तो एक नया स्लोगन भी गढ़ लिया है - 'मोदी जी के दो यार... ओवैसी और केसीआर.'
बीजेपी वाली स्टाइल में राहुल गांधी, केसीआर की तेलंगाना सरकार को देश की सबसे भ्रष्ट सरकार बता रहे हैं - और पूछ रहे हैं, केसीआर ने तेलंगाना के लिए किया क्या है?
और तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पलट कर बोलते हैं, कांग्रेस और BRS एक-दूसरे की कार्बन कॉपी हैं - और दोनों की पहचान भ्रष्टाचार और परिवारवाद से ही है.
तेलंगाना में वोट के बदले नोट का खेल
देश के पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में तेलंगाना ने एक मामले में बाकी चार को पीछे छोड़ दिया है. चुनाव आयोग ने करीब 700 करोड़ कैश बरामद किया है, जिसे वोट के लिए लोगों में बांटे जाने की तैयारी थी. चुनाव आयोग को मिली शिकायतों की बात करें तो सबसे ज्यादा बीआरएस और कांग्रेस के ही खिलाफ बतायी जा रही हैं.
वोटों के लिए पैसे बांटने वाला एक मंत्री का वीडियो भी वायरल हो रखा है, और उसकी भी शिकायत दर्ज हुई है. वीडियो में केसीआर सरकार की मंत्री सत्यवती राठौर को एक गांव में आरती की थाली में नोटों का बंडल डालते देखा गया है.
तेलंगाना से आ रही रिपोर्ट बताती हैं कि वहां एक-एक वोट की कीमत 200 रुपये से लेकर 10 हजार तक लगाई जा रही है. और ये एकतरफा मामला नहीं है. वोट के बदले भारी रकम की डिमांड मतदाताओं की तरफ से ही की जा रही है. कई जगह तो बताते हैं कि उम्मीदवार स्थानीय स्तर पर बिचौलियों के पास मदद के लिए पहुंच रहे हैं - जो वोटर से डील पक्की करा सके.
बीजेपी का मिशन तेलंगाना कहां तक पहुंचा?
अक्टूबर और नवंबर सिर्फ दो महीने के भीतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 5 दौरे हो चुके हैं. वोटिंग से पहले आखिरी तीन दिन का दौरा 25 से 27 नवंबर रहा है. वो मुख्यमंत्री केसीआर के चुनाव क्षेत्र कामारेड्डी पहुंच कर पूछते हैं, आखिर केसीआर को दूसरी सीट से चुनाव लड़ने की जरूरत क्यों पड़ी? और बातों बातों में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को भी लपेट लेते हैं, राहुल गांधी को अमेठी छोड़ कर भागना पड़ता है, केसीआर को भी भागना पड़ा है.
फिर वो लोगों को समझाते हैं कि कैसे बीआरएस और कांग्रेस एक जैसे हैं, और ये बात सिर्फ भ्रष्टाचार वाली सरकार और परिवारवाद की राजनीति तक ही सीमित नहीं है. कहते हैं, टीआरएस ने अपना नाम बदल कर बीआरएस कर लिया - और यूपीए ने भी अपना नाम बदल कर INDIA कर लिया, लेकिन ये सब करने के बावजूद दोनों का भ्रष्टाचार और कुशासन का इतिहास नहीं बदलेगा.
और वैसे ही बीजेपी नेता अमित शाह एक अलग चुनावी रैली में लोगों से कहते हैं, केवल भारतीय जनता पार्टी ही तेलंगाना को देश का नंबर 1 राज्य बना सकती है. अमित शाह भी मोदी की ही तरह दोनों को एक जैसा बताने की कोशिश करते हैं, 'कांग्रेस को वोट देने का मतलब केसीआर को वोट देना है.' फिर कहते हैं, 'अगर आप केसीआर को गद्दी से उतारना चाहते हैं तो सिर्फ और सिर्फ भारतीय जनता पार्टी को वोट दें.'
तेलंगाना बीजेपी के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दक्षिण भारत में पांव जमाना जरूरी हो गया है. खासकर कर्नाटक से कांग्रेस के हाथों विदाई के बाद. अव्वल तो हाल फिलहाल विधानसभा चुनाव के नतीजों का लोक सभा चुनाव पर असर कम देखने को मिला है, लेकिन 2024 में कर्नाटक में मोदी लहर का कितना असर होता है, ये भी देखना होगा.
तेलंगाना में तो हाल ये है कि लाख कोशिश के बावजूद बीजेपी कांग्रेस को पछाड़ नहीं पायी है - और सवा साल की लगातार कोशिश के बावजूद वो तीसरे नंबर पर ही देखी जा रही है. तेलंगाना पर अमित शाह की नजर तभी पड़ गयी थी, जब ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के चुनाव हो रहे थे - और उनकी मेहनत फायदा भी बीजेपी को दिखा था. बीजेपी ने ओवैसी को भी घेरा, लेकिन कांग्रेस ने अरविंद केजरीवाल स्टाइल में समझाना शुरू कर दिया - सब मिले हुए हैं जी. बाद में तो बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही एक दूसरे खिलाफ एक ही जैसे प्रचार करते देखे गये.
कांग्रेस और केसीआर के बीच दो-दो हाथ
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने लोगों से कह रहे हैं, तेलंगाना में दोराला सरकार और प्रजाला सरकार के बीच लड़ाई है. दोराला यानी सामंती सरकार यानी केसीआर जो सरकार चलाते हैं, और प्रजाला यानी जनता की सरकार यानी वो सरकार जो कांग्रेस के चुनाव जीतने पर बन सकती है.
राहुल गांधी लोगों से कहते हैं, आपके मुख्यमंत्री पूछ रहे हैं कि कांग्रेस ने क्या किया है? मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि जिन सड़कों पर केसीआर चलते हैं वो कांग्रेस सरकार ने ही बनवाई है... और तो और जिस स्कूल या यूनिवर्सिटी में वो पढ़े हैं... उसको भी बनवाने का काम कांग्रेस ने ही किया है.
कांग्रेस तेलंगाना में बीजेपी के बहुत बाद एक्टिव हुई. कैंपेन से लेकर रणनीति तक में कांग्रेस बीजेपी की नकल करती देखी गयी. पहले तो राहुल गांधी ने बीआरएस को भाजपा रिश्तेदार समिति करार दिया था.
अब वो कह रहे हैं, 'मोदी जी के दो यार... ओवैसी और केसीआर. और ये लाइन भी राहुल गांधी बार बार वैसे ही दोहरा रहे हैं, जैसे पहले सूट बूट की सरकार या 'चौकीदार चोर है' के नारे लगाते रहे हैं.
और फिर कहते हैं, 'केसीआर चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी दिल्ली में प्रधानमंत्री रहें... नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि केसीआर तेलंगाना के मुख्यमंत्री रहें.'
जैसे प्रधानमंत्री मोदी केसीआर के दो सीटों से चुनाव लड़ने के मामले में राहुल गांधी को लपेट लेते हैं, राहुल गांधी का भी जवाब तैयार रहता है, 'मुझ पर 24 केस लगाये गये... वो मेरी छाती पर 24 मेडल हैं... क्या केसीआर पर केस लगाये? नहीं, क्योंकि मोदी-केसीआर एक हैं.'
सोशल मीडिया साइट एक्स पर राहुल गांधी के हवाले से कांग्रेस ने लिखा है, 'मोदी के हाथ में रिमोट कंट्रोल है... एक बटन ED वाला, एक CBI वाला... मोदी बटन दबाते भी नहीं, सिर्फ रिमोट कंट्रोल दिखाते हैं... जैसे ही दिखाते हैं, केसीआर बैठ जाते हैं.'
और मुकाबले के लिए केसीआर की तैयारी
एक लड़ाई चुनाव आयोग में भी लड़ी जा रही है, एक दूसरे की शिकायतें करके. ऐसी ही शिकायत के कारण चुनाव आयोग से केसीआर को बड़ा झटका लगा है. चुनाव आयोग ने केसीआर सरकार की रायतु बंधु योजना के तहत किसानों की दी जाने वाली नकद राशि पर रोक लगा दी है. चुनाव आयोग ने कुछ शर्तों के साथ रबी की फसल की किस्त के लिए बीआरएस सरकार को अनुमति दी थी. चुनाव आयोग की तरफ से साफ हिदायत थी कि योजना के महिमामंडन का काम चुनाव के दौरान नहीं होना चाहिये, लेकिन सुनता कौन है. रिपोर्ट बताती है कि राज्य के मंत्री अपने भाषण में इसका ऐलान कर रहे थे - और चुनाव आयोग ने सरकार को दी गयी अनुमति वापस रद्द कर दी.
बीजेपी और कांग्रेस के परिवारवाद की राजनीति का काउंटर भी केसीआर अपने बेटे बेटी के साथ मिल कर रहे रहे हैं. केसीआर के बेटे केटी रामाराव पूरा कैंपेन देख रहे हैं, और फील्ड में बेटी के. कविता बीजेपी और कांग्रेस नेताओं को जबाव और कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करती हैं.
एक रणनीति ये भी देखने को मिली है कि केसीआर परिवार बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस के खिलाफ ज्यादा आक्रामक देखने को मिल रहा है. पूरा परिवार मिल कर नेहरू से लेकर राजीव गांधी तक गांधी परिवार का नाम ले लेकर हमला बोल रहा है, और तेलंगाना के लोगों के साथ नाइंसाफी किये जाने का आरोप लगा रहा है - ऐसा लगता है जैसे बीजेपी से मुकाबले को आसान बनाने के लिए कांग्रेस को लड़ाई में आगे बताने की कोशिश हो रही है. 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ऐसे ही समाजवादी पार्टी के मुकाबले कांग्रेस के खिलाफ ज्यादा आक्रामक रुख दिखाती रही.
मृगांक शेखर