करणी सेना, अहीर रेजिमेंट के बाद भीम ऑर्मी का तांडव, क्या जातीय हिंसा के मुहाने पर है यूपी?

बीएसपी के कमजोर होने, ब्राह्मणों में बीजेपी को लेकर असमंजस की स्थिति के चलते राजनीतिक पार्टियां दलित और ब्राह्मण वोट को लेकर अति सक्रिय हो गईं हैं. समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी इस खेल में सबसे आगे हैं.

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प्रयागराज में भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं ने जमकर बवाल काटा प्रयागराज में भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं ने जमकर बवाल काटा

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 30 जून 2025,
  • अपडेटेड 12:09 PM IST

इटावा और कन्नौज के बाद अब प्रयागराज से जातीय हिंसा की खबर आ रही है. पहले अहीर रेजिमेंट ने ब्राह्मणों के एक गांव को बंधक बना लिया था अब भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं ने प्रयागराज में सवर्ण दुकानदारों के प्रतिष्ठानों पर तोड़-फोड़ की है. दरअसल आजाद समाज पार्टी  (कांशीराम) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और लोकसभा सांसद चंद्रशेखर आजाद को रविवार को प्रयागराज में हाउस अरेस्ट कर लिया गया. वह कौशांबी और करछना में हाल में हुई घटनाओं के पीड़ित परिवारों से मुलाकात करने जा रहे थे. चंद्रशेखर पूरे देश में दलितों पर हुए अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं. वह खुद के रोके जाने पर अपने समर्थकों के साथ सर्किट हाउस में ही धरने पर बैठ गए.

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उनके हाउस अरेस्ट के विरोध में चंद्रशेखर के हजारों समर्थकों ने करछना इलाके में सड़क पर जमकर हंगामा किया. पुलिस की गाड़ियां तोड़ने और बसों पर पथराव करने के कई फोटो और विडियो वायरल हो रहे हैं. खबर है कि पुलिस की 8 और बसों समेत 7 प्राइवेट गाड़ियों में तोड़फोड़ की गई है. यहां खास बात यह रही कि भडेरवा बाजार में भीम आर्मी के निशाने पर केवल सवर्णों की दुकानें ही थीं. करछना में हालात काबू करने के लिए पीएसी और आरएएफ को भी मौके पर पहुंच चुकी है. 50 से ज्यादा उपद्रवियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है.

रात करीब 8 बजे चंद्रशेखर आजाद को पुलिस फोर्स की मौजूदगी में प्रयागराज से वाराणसी भेजा गया. वहां से उन्हें दिल्ली भेजने की तैयारी थी. दूसरी तरफ खबर आ रही है कि चंद्रशेखर को जान से मारने की भी धमकी मिली है. जाहिर है कि उत्तर प्रदेश में जातीय हिंसा के बीज बोए जा रहे हैं.

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1-अहीर रेजिमेंट, भीम आर्मी और करणी सेना, जातीय अस्मिता का टकराव

यदुवंशी (अहीर) समुदाय द्वारा भारतीय सेना में एक अलग अहीर रेजिमेंट बनाए जाने की मांग उठाई जाती रही है. यह मांग यादव समुदाय की सामाजिक और सैन्य पहचान को मजबूत करने के बहाने उनको संगठित करने की है. मथुरा के करनावल में मार्च 2025 में अहीर रेजिमेंट के बोर्ड को तोड़े जाने का आरोप भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं पर लगा था. इस घटना को सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से प्रचारित किया गया, जिसने यादव और दलित समुदायों के बीच तनाव को और भड़काया जा सके.

भीम आर्मी, जिसकी स्थापना चंद्रशेखर आजाद ने 2015 में की थी, दलित अधिकारों के लिए कुछ भी करने को तैयार रहने वाल यह संगठन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर, मेरठ, और शामली जैसे क्षेत्रों में सक्रिय है. रविवार को प्रयागराज के करछना में भीम आर्मी कार्यकर्ताओं पर पथराव और हिंसा का आरोप लगा, जिसमें कई लोग घायल हुए हैं. बताया जा रहा है कि करछना की घटना सवर्णों विशेष रूप से ठाकुरों के खिलाफ आक्रोश था.

राजपूत (ठाकुर) समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाली करणी सेना ने आगरा में मार्च और अप्रैल 2025 में दो बड़े प्रदर्शन किए. ये प्रदर्शन समाजवादी पार्टी के सांसद रामजीलाल सुमन के राणा सांगा पर दिए गए विवादित बयान के विरोध में थे. 26 मार्च को सुमन के आवास पर हिंसक प्रदर्शन और 12 अप्रैल को रक्त स्वाभिमान सम्मेलन में हथियारों का प्रदर्शन और भड़काऊ नारेबाजी ने दलित और ओबीसी समुदायों में सवर्णों, विशेष रूप से ठाकुरों, के खिलाफ आक्रोश को बढ़ाया. करणी सेना के कार्यकर्ताओं ने इन प्रदर्शनों को राजपूत गौरव का प्रतीक बताया है. जाहिर है कि ये तनाव जितना बढ़ेगा , प्रदेश में जातीय हिंसा की आशंका उतनी ही बढ़ जाएगी.

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2-ब्राह्मण-यादव संघर्ष, सामाजिक तनाव का नया आयाम

उत्तर प्रदेश के इतिहास में कभी ब्राह्मण और यादव समुदायों के बीच तनाव नहीं रहा. पर हाल के महीनों में ऐसा लग रहा है कि जैसे दोनों समुदायों के बीच कितनी पुरानी दुश्मनी है. हालांकि यह सोशल मीडिया पर ही ज्यादा दिख रहा है. आम लोगों को इससे मतलब नहीं है. पर एक चिंगारी कई बार बड़ी आग भड़काने के लिए काफी होती है. इसलिए इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए.

इटावा के अहेरीपुर में एक यादव कथावाचक, मुकुट मणि यादव, पर ब्राह्मणों द्वारा कथित हमले की घटना ने तनाव को बढ़ाया. आरोप है कि कथावाचक की चोटी काटी गई और उनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया गया. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस पर बयान देकर सवर्णों के खिलाफ नफरत की धारणा को हवा दे दिया.शायद यही कारण है कि डैमेज कंट्रोल के लिए रविवार को ही अखिलेश यादव अंतरिक्ष यात्रा पर गए शुभम शुक्ला के परिवार से मिलने कानपुर पहुंचे थे.

इसके पहले कन्नौज में समाजवादी पार्टी के युवा नेता गगन यादव पर ब्राह्मण-प्रधान गांव में हिंसा भड़काने का आरोप लगा था. इस घटना को सोशल मीडिया पर ब्राह्मण-यादव संघर्ष के रूप में प्रचारित किया गया, जिसने दोनों समुदायों के बीच तनाव को और बढ़ा.

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3-कौन है जो चाहता है यूपी में जातीय संघर्ष हो

उत्तर प्रदेश, भारत का सबसे अधिक आबादी वाला राज्य, लंबे समय से जातीय और सामाजिक गतिशीलता का केंद्र रहा है. हुकुम सिंह पैनल (2001) के अनुसार, राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की आबादी लगभग 54.05% है, जिसमें यादव समुदाय (9-11%) सबसे प्रभावशाली है. सवर्ण जातियां, जैसे ब्राह्मण (12-14%) और ठाकुर (7-8%), सामाजिक और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं. दलित समुदाय, विशेष रूप से जाटव, लगभग 25% आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं.

जाहिर है कि यह जातीय विविधता यहां की राजनीतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि को प्रभावित करती रही है. आजादी के बाद कांग्रेस दलित, सवर्ण और मुस्लिमों के बल पर चार दशक तक प्रदेश में सरकार बनाती रही . मंडल राजनीति के प्रभावी होने के बाद समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को हमेशा के लिए प्रदेश से सत्ताच्यूत कर दिया. मंडल को अप्रभावी बनाने के लिए बीजेपी ने कमंडल का मंत्र अपनाया और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के वोट बैंक पर काबिज हो गई. दलितों और अति पिछड़ों के बल पर बहुजन समाज पार्टी ने भी कुछ दिन प्रदेश की राजनीति को अपने हिसाब से चलाया.

पर अब बीएसपी के कमजोर होने , ब्राह्मणों में बीजेपी को लेकर असमंजस की स्थिति के चलते राजनीतिक पार्टियां इनके वोट को लेकर सक्रिय हुईं हैं. समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी इस खेल में सबसे आगे हैं. दोनों की गिद्ध दृष्टि दलित वोट्स और ब्राह्मण वोट्स पर है.इसके लिए दोनों ही पार्टियां दोनों ही वर्गों को लुभाने के लिए पॉजिटिव अप्रोच तो अपना ही रहीं हैं पर एक दूसरे के खिलाफ भड़काने का नेगेटिव अप्रोच भी ढंग से आजमाया जा रहा है.

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दरअसल समाजवादी पार्टी जानती है कि प्रदेश में अगर ठाकुरवादी सरकार का नरेटिव सेट किया जाएगा तो ब्राह्मण बीजेपी से टूटकर हमारे तरफ आ सकते हैं.समाजवादी पार्टी यह भी जानती है कि अगर प्रदेश में ठाकुर बनाम दलित हुआ तो इससे बीजेपी का नुकसान होना तय है. दलित बीजेपी की जगह समाजवादी पार्टी को अपनाने का मौका नहीं छोड़ेंगे. सपा सांसद रामजी लाल सुमन ने राणा सांगा पर अभद्र टिप्पणियां शायद पार्टी की सोची समझी साजिश थी. बाद में आगरा में करणी सेना के प्रदर्शन और राम जी लाल सुमन को धमकी के बाद अखिलेश का अपने सांसद के पक्ष में खड़ा होना और उनकी बात पर कायम रहना को इस तथ्य से जोड़कर देखा जा सकता है.

 इसी तरह बीजेपी भी जानती है कि अगर प्रदेश में ब्राह्मणों को समाजवादी पार्टी के पास जाने से रोकना है तो कुछ ऐसा होना चाहिए कि जो उन्हें बीजेपी में रोके रखे. जाहिर है कि यादव बनाम ब्राह्मण संघर्ष जितना बढ़ेगा बीजेपी को फायदा होगा. ब्राह्मण अंत में यही सोचेंगे कि हमारे लिए समाजवादी पार्टी से बेहतर बीजेपी ही है. बीजेपी को यह भी पता है कि दलितों को समाजवादी पार्टी से रोकने का सबसे बेहतर उपाय यही है कि किसी भी तरह यादव बनाम दलित संघर्ष यूपी में शुरू हो जाए.

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4- सवर्णों के खिलाफ नफरत, क्या बढ़ रही है?

सवर्ण जातियों, विशेष रूप से ब्राह्मणों और ठाकुरों, के खिलाफ नफरत की धारणा ऐतिहासिक असमानताओं से उत्पन्न होती है. दलित और ओबीसी समुदाय सवर्णों को सामाजिक और आर्थिक वर्चस्व का प्रतीक मानते हैं. मंडल आयोग और आरक्षण नीतियों ने इस असंतोष को और बढ़ाया, क्योंकि सवर्णों को लगता है कि उनकी अवसरों तक पहुंच कम हुई है. लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी हर रोज अगड़े पिछड़े की बात करके इनके गैप की दूरी और बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं.

समाजवादी पार्टी और भीम आर्मी जैसे संगठनों ने सवर्णों को निशाना बनाकर दलित और ओबीसी वोट बैंक को मजबूत करने की कोशिश की है. उदाहरण के लिए, रामजीलाल सुमन के बयान को सपा ने सवर्णों के खिलाफ एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया. अखिलेश यादव ने करणी सेना के प्रदर्शन को बीजेपी समर्थित करार दिया, जिसने ठाकुरों के खिलाफ नफरत की धारणा को और बढ़ावा मिला है.

सवर्ण समुदाय, विशेष रूप से ठाकुर और ब्राह्मण, ने भी अपनी अस्मिता को मजबूत करने के लिए करणी सेना और परशुराम सेना का सहारा ले रहा है. करणी सेना का प्रदर्शन ठाकुर समुदाय की अस्मिता और गौरवगान करते हैं. जाहिर है कि इस तरह के प्रदर्शन एक जाति का दूसरे जाति समुदाय के खिलाफ जहर भरने का ही काम करते हैं.

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5-क्या उत्तर प्रदेश जातीय हिंसा की ओर बढ़ रहा है?

मथुरा, प्रयागराज, इटावा, और आगरा की घटनाएं निश्चित रूप से सामाजिक तनाव को दर्शाती हैं. जाहिर है कि यह सब चुनावों को ध्यान में रखकर किया जा रहा है. पर इन घटनाओं के बाद भी यह निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि यूपी जातीय हिंसा के मुहाने पर खड़ा है. क्योंकि भारतीय समाज इतना कमजोर नहीं है कि इन छिटपुट घटनाओं का उस पर असर पड़ने वाला हो. करणी सेना और अहीर रेजिमेंट और भीम आर्मी की उग्र गतिविधियां 1990 के दशक के बिहार के जातीय संघर्षों की याद दिलाती हैं. पर नफरत का लेवल अभी इतना नहीं बढ़ा है कि बिहार जैसी नरसंहार की घटनाएं यूपी में हों. 

दरअसल भारतीय जनता पार्टी के कट्टर हिंदुत्व के खिलाफ विपक्ष का कोई फॉर्मुूला काम नहीं कर रहा है. जाहिर है कि बीजेपी को तोड़ने के लिए जरूरी है कि हिंदुओं की एकता को खत्म किया जाए. बीजेपी को रोकने के लिए विपक्ष उसके ही फार्मूले पर काम कर रहा है.जाहिर है कि किसी भी कीमत पर योगी आदित्यनाथ सरकार यूपी में इस तरह की हिंसा को होने नहीं देंगे. इसके लिए गैंगस्टर एक्ट और एनएसए का उपयोग सरकार लगातार कर रही है.

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