यूपी में ब्राह्मण गोलबंदी पर विवाद के बीच अचानक कुर्मी राजनीति पर चर्चा क्‍यों गर्म हो गई?

कभी उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मणों की तूती बोलती थी. पर मंडल राजनीति के आने से ही ओबीसी राजनीति सभी दलों में हावी हो गई. आज बीजेपी ही नहीं, कांग्रेस में भी ओबीसी नेतृत्व को आगे रखना मजबूरी है.

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ब्राह्णण विधायकों की मीटिंग के बाद प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी ने एक बार फिर चेतावनी देकर राजनीतिक माहौल को गर्म कर दिया है. ब्राह्णण विधायकों की मीटिंग के बाद प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी ने एक बार फिर चेतावनी देकर राजनीतिक माहौल को गर्म कर दिया है.

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 29 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 7:03 PM IST

उत्तर प्रदेश की राजनीति में बीजेपी के ब्राह्मण विधायकों की मीटिंग के बाद भूचाल आया हुआ है. दरअसल शनिवार को नवनियुक्त प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष पंकज चौधरी ने एक बार सार्वजनिक रूप से ब्राह्मण विधायकों की मीटिंग पर नाराजगी जताते हुए जातिगत मीटिंग्स पर कड़ी चेतावनी जारी की है. लेकिन, इस पर ब्राह्मणों की ओर से सोशल मीडिया पर आरोप लगाया जा रहा है कि पंकज चौथरी खुद कुर्मी महासभा की बैठक को संबोधित कर चुके हैं और दिल्ली में अपने आवास पर कुर्मी महासभा के लोगों से मुलाकात करने की फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर चुके हैं, इसलिए उन्हें दूसरी जातियों को रोकने का कोई हक नहीं है.  

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दरअसल प्रदेश की राजनीति में पहले राजपूत विधायकों की बैठक हुई तो पार्टी की तरफ से कोई चेतावनी जारी नहीं हुई. पर ब्राह्मण विधायकों की मीटिंग के बाद दो-दो बार चेतावनी जारी होने पर एक खास तबके में नाराजगी स्वाभाविक है. कहा जा रहा है कि बीजेपी कुर्मी वोटर्स को एकजुट कर रही है. कुछ लोग कुर्मियों को किंगमेकर बता रहे हैं. जाहिर है कि प्रदेश में कुर्मी राजनीति चर्चा के केंद्र में है आज.

सोशल मीडिया पर क्या कहा जा रहा है

उत्तर प्रदेश में कुर्मी राजनीति की अचानक चर्चा सोशल मीडिया खासकर X पर 14 दिसंबर 2025 से तेज हो गई, जब पंकज चौधरी को BJP का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. इसके बाद ब्राह्मण विधायकों की मीटिंग (23 दिसंबर) और पंकज चौधरी की चेतावनी ने आग में घी डाल दिया.कुछ  दिनों से  X पर लगातार कुर्मी राजनीति से संबंधित  हैशटैग चल रहे हैं. जहां यूजर्स जातीय समीकरणों, BJP की OBC रणनीति और ब्राह्मण असंतोष पर बहस कर रहे हैं.ब्राह्मण समर्थकों की तरफ से नाराजगी ज्यादा है. कई यूजर्स (जैसे @ManuvadiBrijeshऔर @AstuteNyaksha ) ने पंकज चौधरी पर धमकी का आरोप लगाया, लिखा कि कुर्मी 4% हैं, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष मिला. ब्राह्मण 9% पर अपमान. BJP ब्राह्मणों को दूध की मक्खी की तरह फेंक रही है.

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एक पोस्ट में कहा गया कि ब्राह्मण विधायक मीटिंग पर चेतावनी, लेकिन कुर्मी महासभा पर मौन? यह दोहरा मापदंड है. #BJPHatesBrahmin  ब्राह्मण यूजर्स BJP को ठाकुर-कुर्मी पार्टी बताकर ब्राह्मणों को हाशिए पर धकेलने का आरोप लगा रहे हैं. और कुछ SP या BSP की ओर शिफ्ट की बात कर रहे हैं. 

कुर्मी समर्थकों की तरफ से उत्साह है. यूजर्स (जैसे @KurmiSamajUP ने लिखा कि कुर्मी की ताकत – 41 विधायक, 11 सांसद, अब प्रदेश अध्यक्ष. ठाकुरवाद और ब्राह्मणवाद खत्म! BJP की स्मार्ट मूव . एक पोस्ट में तुलना की गई है कि कुर्मी 3.5-5% पर इतने पद, ब्राह्मण 9% पर रोना क्यों? कुर्मी यूजर्स BJP की गैर-यादव OBC रणनीति की तारीफ कर रहे हैं, कह रहे हैं कि यह SP के PDA को तोड़ेगी.

BJP यूजर्स (जैसे @BJP4UP) ने इसे सगठनात्मक अनुशासन बताया, लिखते हैं कि जातिवादी मीटिंग्स पार्टी नीति के खिलाफ है. पंकज चौधरी सही बोल रहे. वही विपक्ष के समर्थक यूजर्स इसे BJP की साजिश कह रहे हैं. सपा के लोग कह रहे हैं कि कुर्मी vs ब्राह्मण करवाकर BJP PDA तोड़ रही है.अखिलेश जी PDA मजबूत रखें.

 कुल मिलाकर, X पर माहौल ध्रुवीकरण का है. ब्राह्मण असंतोष से कुर्मी उत्साह तक. यह 2027 चुनावों की पूर्व संध्या पर जातीय टकराव का संकेत दे रहा है, जहां BJP की कुर्मी रणनीति पर सवाल उठ रहे हैं. चर्चा से लगता है कि कुर्मी अब राजनीतिक किंगमेकर बन सकते हैं, लेकिन अगर  ब्राह्मण शिफ्ट हुए तो BJP को तगड़ा नुकसान हो सकता है.

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बिहार के बाद यूपी में कुर्मी राजनीति को प्रयोग

बिहार में 2025 विधानसभा चुनावों में कुर्मी-कुशवाहा उभार ने नीतीश कुमार (JDU-NDA) की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. बिहार में कुर्मी 4-5% हैं, लेकिन कुशवाहा (कोइरी) के साथ मिलकर 12-15% बनते हैं. NDA ने कुर्मी वोटों को मजबूत करके RJD के यादव-मुस्लिम गठबंधन को तोड़ा, जिससे NDA को बहुमत मिला.  BJP ने बिहार में कुर्मी नेता जैसे सम्राट चौधरी को प्रमोट किया, जो OBC एकीकरण का प्रतीक बना. बिहार चुनावों में कुर्मी-कुशवाहा के उत्थान ने BJP को विश्वास दिलाया कि UP में भी यह काम करेगा.

UP में यह प्रयोग ब्राह्मण असंतोष के बीच आया है. MP-बिहार की सफलता से प्रेरित होकर BJP ने पंकज चौधरी को चुना, जो कुर्मी को किंगमेकर बनाने का प्रयास है. UP में कुर्मी 7-9% हैं, और पूर्वांचल में 48-50 सीटों पर निर्णायक हैं. 

 यह प्लान SP के PDA को तोड़ने का है, जहां कुर्मी वोटों को गैर-यादव OBC में एकजुट किया जा रहा है. हालांकि, ब्राह्मण मीटिंग (23 दिसंबर) से असंतोष बढ़ा है, जो इस प्रयोग को चुनौती दे सकता है. कुल मिलाकर, MP-बिहार के बाद UP में कुर्मी राजनीति BJP की OBC रणनीति का नया अध्याय है. 

2024 में कुर्मियों के एसपी में जाने से हुआ था नुकसान, अब उन्हें फिर से वापस लाने की है तैयारी

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2024 लोकसभा चुनावों में कुर्मी वोटों का SP की ओर शिफ्ट होना BJP के लिए बड़ा झटका साबित हुआ था. UP में BJP की सीटें 62 से घटकर 33 रह गईं, और इसका एक प्रमुख कारण कुर्मी समुदाय का असंतोष था. कुर्मी, जो 7-9% वोटर हैं, परंपरागत रूप से BJP के साथ रहे थे, लेकिन 2024 में PDA फॉर्मूले से SP ने उन्हें आकर्षित किया.समाजवादी पार्टी ने कुर्मी नेताओं को यादवों से अधिक टिकट दिया जिसका उन्हें लाभ हुआ.

 पूर्वांचल में कुर्मी बहुल सीटों (जैसे महाराजगंज, कुशीनगर) पर BJP हारी, जहां कुर्मी वोटों का 15-20% शिफ्ट हुआ. इस नुकसान से सबक लेकर BJP अब कुर्मी वोटों को वापस लाने की तैयारी कर रही है. कुर्मी नेता पंकज चौधरी की नियुक्ति (14 दिसंबर 2025) इसी रणनीति का हिस्सा है . 

 2026 पंचायत चुनावों में कुर्मी उम्मीदवारों को टिकट देकर ग्रासरूट स्तर पर पार्टी को मजबूत करने की तैयारी है. कुर्मी वापसी की तैयारी से गैर-यादव OBC एकीकरण होगा, जो SP के PDA को तोड़ेगा. 2024 में कुर्मी शिफ्ट से BJP को 10-15 सीटों का नुकसान हुआ था. अब अगर कुर्मी वापस आए, तो पूर्वांचल में 20+ सीटें मजबूत हो सकती हैं. 

क्या बीजेपी की राजनीतिक चाल है 

एक्स पर एक यूजर ने लिखा है कि... लेकिन लोग किसी को नेता यूं ही नहीं मान लेते इसलिए ब्राह्मण और चौधरी जी का मुद्दा सामने लाया गया.  आज कुर्मी समाज के लोग खुलेआम चौधरी जी के साथ खड़े हैं. 

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अब इतना तो तय है कि कुछ प्रतिशत वोट कुर्मी समाज का भाजपा से जुड़ तो चुका ही है. चौधरी जी को लाना सफल हो गया है.
बाकी रही बात ब्राह्मण की, तो वो सपा में जायेगा नहीं . बूथ में पहुंचकर अंत में कमल का बटन ही दबाएगा. एक दो प्रतिशत भले ही नोटा या बसपा में चला जाए . लेकिन बदले में चार प्रतिशत कुर्मी वोट तो sure हो गया है. इस तरह से भाजपा की सरकार फिर से बड़े बहुमत से बन जाएगी.

यही सारा खेल है और चुनाव तक भाजपा यूं ही ब्राह्मण vs other' करके कुछ प्रतिशत वोट हर समाज का खुद से जोड़ेगी. दरअसल लेखक के कहने का मतलब यही है कि जितना कुर्मी वर्सेस ब्राह्मण होगा उतना ही कुर्मी वोट बीजेपी के लिए ध्रुवीकृत होते जाएंगे. हरियाणा में लोग देख चुके हैं. जाट के खिलाफ सभी पिछड़ी जातियां और सामान्य लोग एक हो गए. 

इसलिए ही कहा जा रहा है कि BJP की कुर्मी राजनीति UP में एक सुनियोजित राजनीतिक चाल है, जो 2027 विधानसभा चुनाव और 2026 पंचायत चुनाव के लिए तैयार की गई है. पंकज चौधरी की नियुक्ति (14 दिसंबर 2025) अचानक नहीं, बल्कि मोदी-शाह की OBC रणनीति का हिस्सा है, जो 2024 की हार से सबक लेकर गैर-यादव OBC को मजबूत करने पर फोकस कर रही है. 

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यह चाल SP के PDA को तोड़ने, कुर्मी वोट बैंक को वापस लाने और जातीय समीकरणों को संतुलित करने की है. कुर्मी (7-9% वोटर) को प्रमोट करके BJP गैर-यादव OBC (कुर्मी, लोध, मौर्य) को एकजुट कर रही है, जो कुल 27% OBC का बड़ा हिस्सा है. यह SP के यादव-केंद्रित PDA को कमजोर करेगी.
  
कुर्मी वोट पूर्वांचल में निर्णायक हैं, जहां 2024 में BJP हारी. पंकज चौधरी की नियुक्ति से पूर्वांचल में 48-50 सीटों पर पकड़ मजबूत होगी. ब्राह्मण (9-10%) और ठाकुर (7-8%) असंतोष के बीच कुर्मी को बढ़ावा देकर BJP जातीय संतुलन बना रही है.

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