क्या BJP के लिए मनरेगा जैसा चुनावी गेमचेंजर बन सकेगा बुजुर्गो के लिए आयुष्मान का वादा?

शिक्षा-स्वास्थ्य और रोजगार पर किया गया काम सरकारों के लिए हमेशा से फायदे का सौदा रहा है. यूपीए 2 के आने का कारण मनरेगा को माना गया था. आम आदमी पार्टी की मुफ्त बिजली पानी योजना उसे दिल्ली में लगातार मजबूत बनाए हुए है.

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बीजेपी का घोषणापत्र जारी करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीजेपी का घोषणापत्र जारी करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

संयम श्रीवास्तव

  • नई दिल्ली,
  • 15 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 3:04 PM IST

जिन लोगों को 2009 का लोकसभा चुनाव याद होगा, उन्हें यह भी पता होगा कि किस तरह यूपीए सरकार की वापसी की कोई उम्मीद नहीं थी पर मनमोहन सरकार की एक योजना ने कांग्रेस पार्टी को जीवनदान दे दिया. मनमोहन सरकार ने महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना शुरू की थी जो आगे चलकर यूपीए सरकार के लिए तारणहार साबित हुई. हालांकि किसी चुनावों में जीत का कोई एक कारण नहीं होता है पर यह भी सही है कि हर चुनाव में कोई एक कारण कैटेलिस्ट के रूप  में काम करता है. बीजेपी के लिए यह चुनाव बहुत अहम है. एक तरफ तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 400 पार का नारा लगा रहे हैं पर यह भी सही है की पार्टी जिस तरह माइक्रो मैनेजमेंट कर रही है उससे यही लगता है कि कहीं न कहीं पूर्ण बहुमत में न आने का डर भी है. इस बीच बीजेपी ने रविवार को अपना घोषणापत्र जारी किया है. घोषणा पत्र मे पार्टी ने 70 साल तक के सभी बुजुर्गों के लिए आयुष्मान कार्ड की घोषणा कर दी है. राजनीतिक विश्लेषक इसे मनरेगा की तरह का गेमचेंजर बता रहे हैं. आइये देखते हैं क्या वास्तव में यह बीजेपी के लिए कितना प्रभावी साबित होने वाली है.  

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सत्तर प्रतिशत से भी अधिक लोग आयुष्मान के लाभार्थी

देश में लगभग 13.44 करोड़ परिवार यानि कि करीब 65 करोड़ लोग आयुष्मान योजना से से लाभ ले सकते हैं.सूचना का अधिकार अधिनियम के माध्यम से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर इंडियन एक्सप्रेस लिखता है कि अब तक 32.40 करोड़ लोगों को आयुष्मान भारत कार्ड जारी किये जा चुके हैं. दस्तावेजों के विश्लेषण से पता चलता है कि 2018 और 2023 के बीच, 5.47 करोड़ मरीजों ने इस योजना के तहत इलाज कराया. देश में कुल करीब 90 करोड़ वोटर्स हैं.मलतब साफ है कि देश के कुल वोटर्स में करीब 70 प्रतिशत से अधिक इस योजना के लाभ उठाने के काबिल हैं.

जैसा कि बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में वादा किया है उसके मुताबिक अब 70 साल तक के लोग इस योजना का लाभ उठा सकेंगे. भारत में सत्तर साल से ऊपर के लोगों की जनसंख्या करीब 11.6 करोड़ लोग है.जबकि 50 वर्ष और उससे अधिक आयु की कुल जनसंख्या 26 करोड़ है. 70 साल तक के लोग तो इस योजना का लाभ उठा सकते हैं पर 50 के ऊपर के लोग भी इस योजना से प्रभावित होंगे. पहली बात तो ये कि 50 प्लस वालों के माता-पिता या सगे संबंधी 70 के हो चुके होते हैं. इसलिए उनकी जिम्मेदारी भी कम होगी.दूसरे 50 प्लस के ऊपर वाले लोग भी अपने भविष्य के बारे में सोचते हैं. उन्हें भी उम्मीद बढ़ेगी कि हो सकता है कि सरकार जल्दी ही 50 की उम्र तक के लोगों को शामिल कर लें. इस तरह करीब 70 करोड़ लोग इस योजना के लाभार्थियों में शामिल होंगे. मतलब साफ है कि देश के एक बहुत बड़े हिस्से को यह योजना फायदा पहुंचाने वाली है. 

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आयुष्मान भारत योजना में और सुधार की उम्मीद

सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के माध्यम से प्राप्त आंकड़ों और दस्तावेजों के विश्लेषण से पता चलता है कि 2018 और 2023 के बीच, 5.47 करोड़ मरीजों ने इस योजना के तहत इलाज कराया. जहां पहले तीन वर्षों में वार्षिक औसत लगभग 49 लाख रोगियों का था, वहीं बाद के तीन वर्षों में इसमें वृद्धि देखी गई. अस्पताल में भर्ती होने के दौरान होने वाले खर्चों के अलावा, यह योजना अस्पताल में भर्ती होने से पहले के तीन दिनों और अस्पताल में भर्ती होने के 15 दिनों के बाद के दवाओं को भी कवर करती है. लोगों की इच्छा है कि इस योजना में ओपीडी को भी शामिल किया जाए. इसके साथ ही ऐसी सुविधा मिले कि लोग टॉप अप के द्वारा इस योजना में आवंटित रकम में अपने सुविधानुसार बढ़वा सकें.जिस तरह सरकार हर साल इस योजना में कुछ सुधार कर रही है उम्मीद है कि इस तरह के सुधार जल्द ही किए जाएंगे.

मनरेगा के मुकाबले आयुष्मान की पहुंच बहुत अधिक लोगों तक

मनरेगा के ज़रिए काम का अधिकार का क़ानून अगस्त, 2005 में पारित हुआ था. यह योजना पहले भारत के 625 ज़िलों में लागू किया गया, पर 2008 में यह देश के सभी ज़िलों में लागू कर दिया गया. इसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक परिवार के एक शख़्स को कम से कम 100 दिन तक रोज़गार देने का प्रावधान है. मनरेगा के तहत वर्ष 2021-22 में काम के एवज में 208.84 रुपए, वर्ष 2022-23 में 217.91 रुपए प्रतिदिन की मजदूरी दी गई और मौजूदा वर्ष 2023-24 में औसतन 231.69 रुपए की मजदूरी दी जा रही है. एक तो मजदूरी की यह रकम बहुत कम है दूसरे यह कानून नागरिकों को वर्ष में केवल 100 दिन का ही सुनिश्चित रोजगार हासिल करने में सामर्थ्य बनाता है. फिर भी यह कानून 2008 की मंदी के बाद लोगों के जीवनयापन के लिए एक बहुत बड़ा आधार बना. 

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योजना की खासियत यह है कि आवेदन के 15 दिनों के भीतर काम नहीं मिलने पर आवेदक को बेरोज़गारी भत्ता दिए जाने का प्रावधान भी है. केंद्र सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक बीते दो फ़रवरी 2023 तक देश भर में 15 करोड़ से अधिक एक्टिव मज़दूर थे. देशभर में कुल रजिस्टर्ड मज़दूरों की संख्या 29 करोड़ के करीब है. मतलब सीधा है आयुष्मान के लाभार्थियों का आधा भी मनरेगा के लाभार्थी नहीं हैं. जाहिर है कि आयुष्मान के लाभार्थियों की संख्या को देखते हुए उम्मीद की जा सकती है कि बीजेपी को चुनावों में तगड़ा लाभ मिल सकता है.

शिक्षा-स्वास्थ्य और रोजगार की गारंटी मतलब जीत की गारंटी

आजादी के सात दशकों के बाद भी देश में शिक्षा-स्वास्थ्य और रोजगार की हालत बहुत खराब है. हर चुनावों में राजनीतिक दल कुछ गारंटी का वादा करके चुनावों में जीत हासिल करते हैं. आम आदमी पार्टी दिल्ली में लगातार हर चुनाव जीत रही है. इसका श्रेय मुफ्त बिजली -पानी और शिक्षा -स्वास्थ्य आदि पर पार्टी की फ्रीबीज वाली नीतियों से जोड़कर देखा जाता है. बीजेपी को भी मिल रही लगातार जीत के लिए 80 करोड़ लोगों को मिलने वाले मुफ्त राशन, उज्ज्वला योजना, किसानों को हर साल मिल रहे 6 हजार रुपये आदि से जोड़कर देखा जाता है. यही कारण है कि आजकल हर चुनाव में राजनीतिक दलों द्वारा बड़े पैमाने पर फ्रीबीज की घोषणा की जाती है. कांग्रेस ने भी हाल ही में जारी अपने घोषणा पत्र में हर साल गरीब महिलाओं को एक लाख रुपये देने को घोषणा की है. इसी क्रम में बीजेपी ने भी अपने घोषणापत्र में आयुष्मान योजना का विस्तार किया है. जाहिर है कि पहले से लागू योजना के विस्तार पर लोगों का भरोसा ज्यादा होगा. कांग्रेस ने भी एमएसपी की गारंटी सहित समाजिक न्याय वाली कई गारंटियों का वादा किया है. पर जनता को ज्यादा उम्मीद बीजेपी पर इसलिए हो सकती है क्योंकि वो सत्ता में है.

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