बीजेपी का ‘मतदाता अभिनंदन’ कार्यक्रम असल में अयोध्या पर भूल सुधार अभियान है

बीजेपी के पास लोकसभा चुनाव की हार की भरपाई का भी भरपूर मौका है. वो चाह ले तो यूपी की 10 सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव, और 2024 के विधानसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन कर सकती है - और मोदी-शाह की हालिया सक्रियता बताती है कि बीजेपी नये मिशन में जुट गई है.

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यूपी में बीजेपी की लोकसभा सीटें भले ही कम हो गई हों, लेकिन सबसे बड़ा मलाल तो अयोध्या की हार है यूपी में बीजेपी की लोकसभा सीटें भले ही कम हो गई हों, लेकिन सबसे बड़ा मलाल तो अयोध्या की हार है

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 11 जुलाई 2024,
  • अपडेटेड 11:08 AM IST

बीजेपी का ताजा जख्म है लोकसभा चुनाव 2024 में हुई हार, और राष्ट्रीय राजनीति में दबदबा बनाये रखने के लिए ये चिंता की बात तो है ही. 2021 में पश्चिम बंगाल की हार भी बीजेपी के लिए कोई मामूली बात नहीं थी, सारी चालें चलने के बावजूद बीजेपी के हाथ कुछ खास नहीं लगा - और उसका असर लोकसभा चुनाव में भी देखने को मिला. 

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बंगाल की हार के फौरन बाद ही बीजेपी मिशन यूपी में जुट गई थी, क्योंकि 2024 के लिए मजबूत वहीं मिलना था. तब तो बीजेपी ने यूपी में फतह हासिल कर ली, लेकिन उसके बाद के दो चुनावों में एक ही जीत पाई. हिमाचल प्रदेश में शिकस्त झेलनी पड़ी, सत्ता हाथ से निकल गई. 

लेकिन उसके बाद बीजेपी ने हिमाचल का जिक्र तक करना छोड़ दिया था, बाद के चुनावी राज्यों में मोदी-शाह गुजरात की ही गाथा सुनाते रहे. कहने का मतलब कहीं भी चूक हो जाने पर वापसी कैसे की जाती है, मौजूदा बीजेपी नेतृत्व अच्छी तरह जानता है. 

और एक बार फिर बीजेपी ऐसे मोड़ पर खड़ी है, जहां से उसके लिए बड़ी छलांग लगाने का सीधा मौका है. लोकसभा चुनाव की हार की भरपाई का भी, और कार्यकर्ताओं का जोश बनाये रखने का भी.  

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बीजेपी के लिए सबसे बड़ा मौका है उत्तर प्रदेश में विधानसभा की 10 सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव. वो चाह ले तो उपचुनावों में अच्छा प्रदर्शन करके लोकसभा की हार का गम कुछ तो कम कर ही सकती है. और इसी साल जम्मू-कश्मीर सहित चार राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके कैबिनेट साथी अमित शाह की हालिया सक्रियता देखकर तो यही लगता है कि बीजेपी अपने नये मिशन में जुट गई है. 

उपचुनावों में खास बात ये है कि इसमें अयोध्या की भी एक सीट शामिल है. वो सीट जो समाजवादी पार्टी के अवधेश प्रसाद के सांसद बन जाने से खाली हुई है. अवधेश प्रसाद पहले फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र में आने वाली मिल्कीपुर विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर रहे थे. 

मिल्कीपुर में बीजेपी का जीतना जरूरी है

बीजेपी को सबसे बड़ा मलाल अयोध्या हार जाने का ही है. क्योंकि जिस तरह से विपक्षी इंडिया गठबंधन अयोध्या के सांसद अवधेश प्रसाद को राष्ट्रीय स्तर पर प्रोजेक्ट कर रहा है, बीजेपी के लिए ये काफी तकलीफदेह बात है - और तो और, बीजेपी के ही नारे को पलट कर पेश किया जाने लगा है, 'अयोध्या तो बस झांकी है, काशी मथुरा बाकी है.' 

समाजवादी पार्टी, और फिलहाल तो कांग्रेस भी, से बदला लेने का बीजेपी के पास बेहतरीन मौका है, और वो है मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव. बीजेपी अगर यूपी की मिल्कीपुर विधानसभा सीट जीत लेती है, तो लोगों को वो बड़ा मैसेज दे सकती है. 

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बीजेपी ने मतदाता अभिनंदन कार्यक्रम शुरू किया है, और 11 जुलाई को ये कार्यक्रम अयोध्या में होना तय हुआ है. बीजेपी पूरे देश में मतदाता अभिनंदन कार्यक्रम चला रही है. इस कार्यक्रम के जरिये बीजेपी मतदाताओं के प्रति आभार प्रकट कर रही है. 

मतदाता अभिनंदन कार्यक्रम के तहत हर विधानसभा क्षेत्र में कार्यकर्ताओं के साथ ऐसे लोगों को बुलाने की कोशिश है जो अपने आस पास प्रभावी हैं, और फिर से बीजेपी के पक्ष में माहौल बना सकते हैं. ये कार्यक्रम वहां के लिए भी है, जहां बीजेपी को जीत मिली है, और वहां भी जहां हार का मुंह देखना पड़ा है. कार्यक्रम में स्थानीय बीजेपी उम्मीदवार, के साथ साथ पदाधिकारियों को भी मंच से अपनी बात कहने की सलाह दी गई है. 

मसलन, पूर्व केंद्रीय मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय चंदौली में 11 जुलाई को ही मतदाता अभिनंदन कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे हैं. वो अपने इलाके के सभी कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगे. यूपी बीजेपी के अध्यक्, रह चुके महेंद्र नाथ पांडेय इस बार चुनाव हार गये थे. 
 
बीजेपी का मतदाता अभिनंदन कार्यक्रम भी जनविश्वास या गौरव यात्राओं जैसा ही है, लेकिन ये पार्टी के संपर्क फॉर समर्थन अभियान के ज्यादा करीब लगता है. 2019 में ये कार्यक्रम शुरू किया गया था - देखा जाये तो मतदाता अभिनंदन के बहाने भी लोगों से जुड़ने का ही मकसद है. 

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असल में, बीजेपी के दो अभियानों को एक साथ धक्का लगा है. पहला कांग्रेस मुक्त भारत अभियान, और दूसरा बीजेपी का स्वर्णकाल लाने की मुहिम. अमित शाह के मुताबिक देश में बीजेपी का स्वर्णकाल तो तब माना जाएगा, जब पंचायत से लेकर पार्लियामेंट तक बीजेपी ही सत्ता में हो. 

बेशक बीजेपी इस बार चूक गई है, लेकिन जब कांग्रेस बाउंसबैक कर सकती है, तो बीजेपी का अभी बिगड़ा ही कितना है. अभी सत्ता भी उसी के हाथ में है. और यूपी की कुछ सीटें गंवाने के साथ ही एनडीए की दो राज्यों में सरकार भी तो बनी है. बीते 10 साल में नवीन पटनायक का समर्थन मिला ही, अब तो ओडिशा में सरकार भी बन गई है. आंध्र प्रदेश में भी पूर्व मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी भी तो पांच साल तक बीजेपी के साथ ही खड़े रहे, अब तो बीजेपी की साथी टीडीपी भी सत्ता में आ ही गई है. 

बीजेपी का सबसे कमजोर पक्ष उसका अपने बूते लोकसभा में बहुमत हासिल न कर पाना है, लेकिन महीना भर हो चुका है और अभी तक केंद्र सरकार को किसी मुद्दे पर किसी तरह की मुश्किल आई हो ऐसा तो नहीं लगा है. 

अब एनडीए के प्रवक्ता जरूरी सिर्फ बीजेपी के नहीं

कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ही नहीं, एक के बाद एक मुसीबतों से घिरती जा रही आम आदमी पार्टी भी बीजेपी से हद से ज्यादा खफा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट करते हुए आप नेता संजय सिंह तो यहां तक कहने लगे हैं कि अयोध्या की हार के बाद वो जय श्रीराम बोलना भी बंद कर दिया है. 

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संजय सिंह के आरोप अपनी जगह हैं लेकिन अयोध्या की हार का फर्क तो पड़ा ही है, तभी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सलाह दी है कि बीजेपी की जगह एनडीए के प्रवक्ता बनाये जायें. और ऐसे संभावित नेताओं को भी मोदी की सलाह है कि मीडिया के सामने किसी मुद्दे पर कमेंट करने से पहले वे उस चीज के बारे में अच्छी तरह जान समझ लें. साथ ही, सांसदों को भी हिदायत मिली है कि वे अपने इलाके लोगों के संपर्क में रहें और लोगों के सपोर्ट के लिए उनको धन्यवाद दें. साफ है, मतदाता अभिनंदन कार्यक्रम भी इसी मकसद से चलाया जा रहा है.

देखा जाये तो एनडीए को एकजुट रखने की ये कोशिश है. अब अगर बीजेपी के सहयोगी दलों के नेता एनडीए के प्रवक्ता के रूप में मीडिया में जाएंगे तो जो भी बात करेंगे, वो सिर्फ उनकी अपनी पार्टी से जुड़ा नहीं होगा. चाहे वो टीडीपी के नेता हों, या फिर जेडीयू के - सभी एनडीए के प्रवक्ता के रूप में बीजेपी की तरह ही मुद्दों पर पक्ष रखेंगे और बचाव करेंगे. 

कहने को तो मतदाता अभिनंदन कार्यक्रम बीजेपी का है, लेकिन जिस तरह मोदी की तरफ से एनडीए के सांसदों को इलाके के लोगों को धन्यवाद कहने को कहा गया है, मोदी उनसे भी एनडीए के प्रवक्ताओं जैसी ही अपेक्षा रख रहे हैं.

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