अखिलेश यादव के लिए न्याय यात्रा का बुलावा भी अयोध्या के न्योते जैसा ही है

अखिलेश यादव का रुख देख कर तो यही लगता है कि राहुल गांधी की न्याय यात्रा को लेकर भी उनका स्टैंड कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा जैसा ही है. अगर वास्तव में ऐसा ही है तो INDIA ब्लॉक के लिए यूपी में खड़ा होना भी मुश्किल हो सकता है.

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अखिलेश यादव ने कांग्रेस को भी बीजेपी जैसा बोल कर यूपी में INDIA ब्लॉक का भविष्य बता दिया है अखिलेश यादव ने कांग्रेस को भी बीजेपी जैसा बोल कर यूपी में INDIA ब्लॉक का भविष्य बता दिया है

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 18 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 4:41 PM IST

अखिलेश यादव कांग्रेस और बीजेपी दोनों को एक जैसा क्यों बता रहे हैं? ऐसी बातें तो मायावती करती रही हैं. और अब तो मायावती ने ये भी साफ कर दिया है कि आने वाले लोक सभा के चुनाव में वो किसी के साथ गठबंधन नहीं करेंगी - क्या अखिलेश यादव भी ऐसी ही किसी रणनीति पर काम कर रहे हैं, लेकिन अभी किसी को बता नहीं रहे हैं?

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बीजेपी से समाजवादी पार्टी की लड़ाई की बात तो ठीक है, लेकिन कांग्रेस से भिड़ने का क्या मतलब है? आखिर समाजवादी पार्टी को अपनी लड़ाई अकेले लड़ने की बात करने को कैसे समझा जाना चाहिये? 

और उसके बाद वो बीजेपी से लड़ाई में INDIA ब्लॉक के साथ खड़े होने की बात भी कर रहे हैं. हो सकता है अखिलेश यादव को सामने कोई सीधा रास्ता दिखाई पड़ रहा हो, लेकिन ये सुन कर तो वोटर भी कन्फ्यूज ही होगा - कन्फ्यूजन की ये नौबत आई है, अखिलेश यादव के ही एक बयान से. 

राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल होने को लेकर अखिलेश यादव से एक सीधा सा सवाल पूछा गया था - वो शामिल होने जा रहे हैं या नहीं. पहले वाली भारत जोड़ो यात्रा में न तो अखिलेश यादव ही शामिल हुए थे, न ही समाजवादी पार्टी का कोई सदस्य. फिर भी वो बीजेपी से लड़ाई में विपक्ष के साथ खड़े होने की बात कर रहे थे. 

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सवाल राहुल गांधी की न्याय यात्रा को लेकर था, लेकिन अखिलेश यादव ने अयोध्या के राम मंदिर समारोह के बहाने बीजेपी को भी कांग्रेस के साथ जोड़ दिया. कहने लगे कि न तो बीजेपी अपने कार्यक्रमों में उनको बुलाती है, न ही कांग्रेस - और फिर जोड़ दिये कि ऐसे में समाजवादियों को अपनी लड़ाई अकेले लड़नी पड़ती है. 

कांग्रेस की तरफ से दावा किया जा रहा है कि न्याय यात्रा का न्योता INDIA ब्लॉक के सभी सहयोगी नेताओं को भेजा गया है, लेकिन अखिलेश यादव के बयान को देखें तो वो बुलावे की बात को भी वैसे ही गोल कर जा रहे हैं जैसे राम मंदिर समारोह के न्योते को लेकर कर रहे थे.  

राम मंदिर उद्घाटन समारोह के न्योते को लेकर भी अखिलेश यादव की तरफ से कई तरह की बातें सुनी गईं. पहले बोले कि न्योता मिलेगा तो जाएंगे. फिर बताते रहे कि न्योता मिला ही नहीं. उसके बाद ये कह कर न्योता लेने से इनकार कर दिया कि जो बुलाने आये हैं, उनको जानते ही नहीं. जिनको जानते ही नहीं उनसे न्योता लेने का क्या मतलब. और जिनको जानते नहीं उनको न्योता देने का भी क्या मतलब है? सही बात है, अखिलेश यादव को भी ये अधिकार तो है कि वो खद तय कर सकें कि किसको जानते हैं, और किसको पहचानते हैं. कोई जबरदस्ती तो है नहीं. 

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जब वीएचपी की तरफ से बताया जा रहा था कि न्योता भेजा गया है, तो वो न्योता भेजे जाने वाले कूरियर की रसीद मांगने लगे. ये भी सही बात है. कोई सबूत तो होगा ही. डाक से भेजा गया हो, या कूरियर से. रसीद तो पक्की ही मिलती है. कागज नहीं दिखाएंगे, जैसी बातें तो हर जगह चलेंगी नहीं. 

राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के मामले में भी अखिलेश यादव का बिलकुल वैसा ही रवैया देखने को मिल रहा है. अब ये अखिलेश यादव की कांग्रेस पर दबाव बनाने की कोई तरकीब है, या पुरानी नापंसदगी, नतीजा तो INDIA ब्लॉक को ही भुगतना होगा - बड़ा सवाल ये है कि मंदिर वाले जबरदस्त राजनीतिक माहौल में बीजेपी से मुकाबला मुमकिन कैसे होगा? 

बीजेपी की ही तरह कांग्रेस से भी क्यों लड़ रहे हैं अखिलेश यादव

लखनऊ के समाजवादी पार्टी कार्यालय में 17 जनवरी को अखिलेश यादव मीडिया से बात कर रहे थे. प्रेस कांफ्रेंस में ही अखिलेश यादव से राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के यूपी पहुंचने पर शामिल होने को लेकर सवाल पूछा गया था. राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा चंदौली से उत्तर प्रदेश में प्रवेश करने का कार्यक्रम बताया गया है. यूपी के 20 जिलों से गुजरने वाली ये यात्रा 11 दिनों में 1074 किलोमीटर का सफर पूरा करेगी. 

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न्याय यात्रा में शामिल होने के मुद्दे पर अखिलेश यादव का कहना था, 'न तो कांग्रेस हमें अपने कार्यक्रमों में बुलाती है, न ही भाजपा.'

अखिलेश यादव ने अपने ये समझाने की कोशिश की, अपने कार्यक्रम में न तो कांग्रेस ने निमंत्रण दिया है, न ही बीजेपी ने. कांग्रेस के निमंत्रण की बात तो समझ में आती है, लेकिन ये नहीं समझ में आ रहा है कि अखिलेश यादव किस मामले में बीजेपी के बुलावे की बात कर रहे हैं?

अगर बीजेपी के निमंत्रण से आशय राम मंदिर समारोह के न्योते को लेकर है, तो वो पहले ही बता चुके हैं कि न्योता मिल गया है. सोशल साइट x पर एक पोस्ट में अखिलेश यादव ने आयोजन समिति के चंपत राय को निमंत्रण के लिए धन्यवाद भी दिया है, और 22 जनवरी के बाद परिवार सहित अयोध्या जाने का वादा भी किया है.

हाल फिलहाल देश हो या यूपी की राजनीति, बीजेपी के तो इसी न्योते में शामिल होने की बात चल रही है. अखिलेश यादव अगर किसी और निमंत्रण की बात कर रहे हैं तो तभी पता चल सकेगा जब वो खुद सोशल मीडिया के जरिये ये प्रेस कांफ्रेंस करके या बयान जारी करके बतायें. 

अखिलेश यादव की इन बातों से तो नहीं लगता कि राहुल गांधी की न्याय यात्रा में शामिल होने का उनको कोई इरादा है. और ऐसे में INDIA ब्लॉक को मजबूत करने या विपक्षी दलों के साथ मिल कर बीजेपी को हराने की बातें तो बेमानी ही लगती हैं, और काफी अजीब भी. 

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अखिलेश यादव को राहुल गांधी की न्याय यात्रा भी नापसंद क्यों?

ये ठीक है कि अखिलेश यादव को पिछले दो चुनावी गठबंधनों के बड़े ही खट्टे अनुभव रहे हैं. पहला 2017 में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ, और दूसरा बीएसपी नेता मायावती के साथ 2019 के लोक सभा चुनाव में. खास बात ये रही कि दोनों ही बार पहल अखिलेश यादव की तरफ से ही हुई थी. ये बात गठबंधन को लेकर अखिलेश यादव की आतुरता से लग रही थी.

2017 के यूपी विधानसभा चुनावों से पहले अखिलेश यादव कहा करते थे, अगर साइकिल पर हाथ लग जाये तो रफ्तार बढ़ जाएगी. साइकिल समाजवादी पार्टी और हाथ कांग्रेस का चुनाव निशान है. और वैसे ही भाव 2019 के आम चुनाव से पहले भी वो प्रकट कर रहे थे.

अखिलेश यादव को गिरगिट जैसा बताने वाले मायावती के बयान पर नाराजगी जाहिर करते हुए अखिलेश यादव अब कह रहे हैं कि वो तो उनको प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे. वैसे ये भी सही है कि सपा-बसपा गठबंधन तोड़ने की घोषणा तो मायावती ने ही की थी. 

ये भी सही है कि समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में ज्यादा सीटें लेने के बाद भी कांग्रेस का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा, लेकिन कांग्रेस के साथ तो वैसा ही 2020 के बिहार चुनाव में भी हुआ. बेशक आरजेडी नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को लेकर तब काफी आक्रामक हो गये थे, लेकिन न तो तेजस्वी यादव न ही लालू यादव ने कांग्रेस को लेकर कोई ऐसी वैसी बात कही, न ही गठबंधन ही तोड़ा. बिहार में सात दलों की गठबंधन वाली नीतीश कुमार सरकार में कांग्रेस अब भी हिस्सेदार है. 

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अखिलेश यादव की प्रतिक्रिया से तो ऐसा लग रहा है कि वो भी कांग्रेस के अकेले अकेले यात्रा निकालने से जेडीयू की तरह ही नाराज हैं - और सीधे सीधे न सही, किसी और तरीके से भड़ास निकाल रहे हैं.

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