ओडिशा वन विभाग 2024–25 वित्त वर्ष में खरीदी गई 51 महिंद्रा थार SUV को लेकर विवादों में घिर गया है. दस्तावेजों के मुताबिक, इन गाड़ियों की खरीद पर करीब 7 करोड़ रुपये खर्च किए गए, जबकि बाद में इनके मॉडिफिकेशन पर लगभग 5 करोड़ रुपये और खर्च हुए. इस तरह कुल खर्च करीब 12 करोड़ रुपये तक पहुंच गया, जिसके बाद सरकार को स्पेशल ऑडिट का आदेश देना पड़ा है.
सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, 2024–25 वित्त वर्ष में इन 51 थार SUV को करीब 7 करोड़ रुपये में खरीदा गया. प्रत्येक गाड़ी की कीमत लगभग 14 लाख रुपये बताई गई है.
विवाद तब गहराया जब सामने आया कि इन गाड़ियों के मॉडिफिकेशन पर अलग से करीब 5 करोड़ रुपये खर्च किए गए. इस तरह पूरी खरीद और मॉडिफिकेशन की कुल लागत लगभग 12 करोड़ रुपये तक पहुंच गई. इसी खर्च को लेकर अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या इतने बड़े पैमाने पर किया गया मॉडिफिकेशन वाकई जरूरी था.
सरकार ने दिए ऑडिट के आदेश
मामला विवादों में आने पर ओडिशा के वन एवं पर्यावरण मंत्री गणेश राम सिंह खुंटिया ने पूरे प्रकरण की स्पेशल ऑडिट कराने के आदेश दिए हैं. उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि गाड़ियों की खरीद प्रक्रिया के साथ-साथ मॉडिफिकेशन पर हुए खर्च की भी विस्तार से जांच की जाए.
वन मंत्री ने साफ कहा है कि विभागीय जरूरतों के तहत कुछ मॉडिफिकेशन जरूरी हो सकते हैं, लेकिन किसी भी तरह का गैरजरूरी, अत्यधिक या अनुचित खर्च बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. उन्होंने कहा कि जांच का मुख्य उद्देश्य यह पता लगाना है कि मॉडिफिकेशन क्यों किए गए और क्या वे वास्तव में फील्ड ऑपरेशन के लिए आवश्यक थे.
कार में क्या-क्या लगवाया गया?
जानकारी के मुताबिक, इन थार SUV में अतिरिक्त लाइट्स, कैमरे, सायरन, विशेष टायर और अन्य तकनीकी उपकरण लगाए गए हैं. विभाग का दावा है कि ये सभी बदलाव फील्ड की जरूरतों को ध्यान में रखकर किए गए, ताकि कठिन और दुर्गम इलाकों में काम आसान हो सके.
हालांकि मंत्री ने यह भी चेतावनी दी है कि अगर ऑडिट में कोई भी फिटिंग गैरजरूरी, अत्यधिक या बिना अनुमति की पाई गई तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. राज्य सरकार ने साफ कर दिया है कि जांच के दौरान अगर कोई अवैध या संदिग्ध गतिविधि सामने आती है, तो उस पर कड़ी कार्रवाई होगी.
वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इन SUV को जंगल की आग पर नियंत्रण, दूरदराज और सीमावर्ती इलाकों में वन कर्मियों की तैनाती, वन्यजीवों की सुरक्षा और अवैध गतिविधियों जैसे शिकार और लकड़ी तस्करी पर रोक लगाने जैसे अहम कार्यों के लिए खरीदा गया था. विभाग का यह भी तर्क है कि ओडिशा के कई जंगलों में भौगोलिक हालात बेहद कठिन हैं, इसलिए इन गाड़ियों में खास तरह के मॉडिफिकेशन जरूरी थे.
इसके बावजूद इस बात को लेकर संदेह बना हुआ है कि क्या इन सभी खर्चों के लिए पहले से जरूरी मंजूरी ली गई थी और क्या इतना ज्यादा खर्च वाकई जरूरी था. सरकारी सूत्रों का कहना है कि ऑडिट रिपोर्ट आने के बाद जिम्मेदारी तय की जाएगी और उसी के आधार पर आगे की कार्रवाई होगी.
ओडिशा सरकार का कहना है कि पूरी सच्चाई ऑडिट पूरी होने के बाद ही सामने आएगी. हालांकि, इतना साफ है कि इस विवाद ने वन विभाग के खर्च और निर्णय प्रक्रिया को लेकर सार्वजनिक और राजनीतिक स्तर पर कड़ी निगरानी में ला दिया है.
अजय कुमार नाथ