पूर्व डकैत मलखान सिंह (Malkhan Singh) ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है. इससे पहले वे बीजेपी में भी रह चुके हैं, लेकिन मलखान सिंह नेता बनने से पहले एक कुख्यात डकैत हुआ करते थे. ऐसे डकैत जिनकी तूती पूरे चंबल (Chambal Beehad) के बीहड़ में बोला करती थी. ऐसे डकैत जिनकी वजह से चंबल के जिलों में रेप की घटनाएं लगभग खत्म ही हो गई थी और एक ऐसा डकैत जिसकी तलाश में तीन राज्यों की पुलिस बीहड़ों की खाक छानती रही लेकिन कभी पुलिस के हाथ मलखान सिंह तक नहीं पहुंच सके.
हम आपको बताने जा रहे हैं उस पूर्व दस्यु मलखान सिंह की कहानी, जिसने चंबल के बीहड़ में 10 साल से ज्यादा समय तक अपना साम्राज्य चलाया. मलखान सिंह का जन्म भिंड के बिलाव गांव में हुआ था. बिलाव गांव में मलखान सिंह पले बढ़े और खेले कूदे थे. इसी गांव के सरपंच कैलाश नारायण पंडित द्वारा गांव में स्थित एक मंदिर की जमीन पर कब्जा कर लिया गया था.
मंदिर की जमीन से शुरु हुआ था विरोध
किशोर उम्र में ही मलखान सिंह इस बात को भलीभांति समझ गए थे कि गांव के सरपंच की नजर मंदिर की जमीन पर है. उन्होंने मंदिर की जमीन पर हुए अतिक्रमण का विरोध करना शुरू कर दिया. महज 17 साल की उम्र में उन्होंने गांव के लोगों को इस बात के लिए जागरूक किया कि मंदिर की जमीन पर जबरन कब्जा किया जा रहा है जो कि गलत है. जब इस बात की भनक सरपंच कैलाश नारायण पंडित के कानों तक पहुंची तो उन्होंने अपने रसूख का इस्तेमाल करते हुए मलखान सिंह को हवालात की हवा खिलवाई और पुलिस के हाथों पिटाई भी लगवा दी, लेकिन पुलिस की पिटाई से भी मलखान का हौसला कम नहीं हुआ.
विरोध किया तो जाना पड़ा जेल
थाने से लौटने के बाद एक बार फिर से मलखान सिंह ने कैलाश नारायण पंडित का विरोध करना शुरू कर दिया. मलखान समझ गया था की बाहुबली कैलाश नारायण के सामने वह नहीं टिक पाएगा, इसलिए उसने पंचायत चुनाव में भागीदारी करने का निर्णय लिया. मलखान सिंह के पंचायत चुनाव में दिलचस्पी की खबर जब कैलाश नारायण पंडित को लगी तो कैलाश नारायण पंडित ने एक बार फिर अपने राजनीतिक रिश्तों का इस्तेमाल करते हुए पुलिस तक इस बात की सूचना पहुंचाई कि मलखान सिंह डकैतों का मुखबिर है और गांव में रहकर डकैतों के लिए मुखबरी करता है.
सूचना मिलने पर पुलिस ने मलखान सिंह को धर लिया और कुछ दिन मलखान सिंह को जेल में रहना पड़ा. मलखान सिंह जब जेल से बाहर आया उस दौरान कैलाश नारायण पंडित के एक रिश्तेदार की हत्या हो गई. इस हत्या के आरोप में मलखान सिंह का नाम भी शामिल कर दिया गया और मलखान सिंह को फिर से जेल हो गई.
बीहड़ का किया रुख, बने डकैत
जमानत मिलने के बाद जब मलखान सिंह बाहर आया तो समझ गया था कि कैलाश नारायण पंडित का सामना करना इतना आसान नहीं है. इसके बाद मलखान सिंह ने अपना घर और गांव छोड़ दिया और कुछ रिश्तेदारों के साथ मिलकर बीहड़ का रास्ता अख्तियार कर लिया. गिरोह चलाने के लिए हथियारों की जरूरत थी इसलिए मलखान सिंह ने पहले छोटे-मोटे अपहरण किए और जो पैसा फिरौती की रकम से मिला उस पैसे से हथियार खरीदना शुरू कर दिया.
मलखान सिंह की गैंग में थे 100 सदस्य
धीरे-धीरे मलखान सिंह के गिरोह में सदस्यों की संख्या बढ़ती गई. 70 के दशक में मलखान सिंह का गिरोह इतना बड़ा हो गया कि उसमें तकरीबन 100 सदस्य शामिल हो गए. उन दिनों मलखान सिंह का गिरोह चंबल में सबसे बड़ा गिरोह हुआ करता था. मलखान सिंह महिलाओं की बहुत इज्जत किया करते थे. उन्होंने इसके लिए चंबल के बीहड़ों में एक फरमान भी जारी किया कि हर कोई महिलाओं की इज्जत करेगा और महिलाओं के साथ रेप करने वाले को चौराहे पर गोली मार दी जाएगी.
लोगों में बना खौफ, रेप की घटनाएं हो गई थी समाप्त
मलखान सिंह के इस एलान का बहुत असर हुआ और ग्वालियर-चंबल संभाग के जिलों में रेप की घटनाएं लगभग ना के बराबर रह गई थीं. मलखान सिंह खुद किसी महिला के सामने आ जाने पर उनके पैर छूकर उन्हें सम्मान दिया करते. मलखान सिंह का यह व्यवहार देखकर गिरोह के अन्य सदस्य भी महिलाओं को सम्मान देने लगे.
ग्रामीण की मौत, सरपंच बच निकला
मलखान सिंह ने इस दौरान अपने दुश्मन पर भी हमला किया. मलखान सिंह ने बिलाव गांव में घुसकर कैलाश नारायण पंडित पर गोलियां दागीं. गोली लगने के बावजूद कैलाश नारायण पंडित की जान बच गई, लेकिन उनके साथ में मौजूद अन्य ग्रामीण की मौत हो गई. मलखान सिंह का बदला पूरा नहीं हुआ तो मलखान सिंह बीहड़ में अपनी ताकत बढ़ाने में जुट गया.
बदला पूरा, कैलाश नारायण पंडित का मर्डर
मलखान सिंह का रसूख और उसका आतंक चंबल के बीहड़ों में बढ़ता जा रहा था, लेकिन पुलिस के हाथ उन तक नहीं पहुंच पा रहे थे. मलखान सिंह अपने दुश्मन को भूला नहीं थे और एक दिन मौका पाकर उन्होंने एक बार फिर कैलाश नारायण पंडित पर हमला किया और इस बार बदला पूरा हुआ, कैलाश नारायण पंडित की हत्या कर दी गई. कैलाश नारायण की हत्या तो हो गई थी, लेकिन गांव के मंदिर की जमीन पर अभी भी कैलाश के परिवार का कब्जा था.
100 से अधिक केस थे दर्ज
मलखान सिंह पर तकरीबन 1 सैकड़ा मामले मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के थानों में दर्ज हुए, इनमें 17 हत्या, 28 अपहरण और 19 हत्या के प्रयास जैसे संगीन मामले शामिल थे. मलखान सिंह के आतंक से परेशान होकर पुलिस ने उन पर 70 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया था.
मलखान सिंह ने किया था सशर्त समर्पण
तत्कालीन अर्जुन सिंह की सरकार की तरफ से मलखान सिंह के समर्पण करवाने का प्रयास किया गया. मलखान सिंह ने शर्त रखी कि मंदिर की जमीन से अधिकरण हटवाया जाए. मंदिर की जमीन से अतिक्रमण हटवा दिया गया, जिसके बाद चंबल के बीहड़ों में आने का मलखान सिंह का उद्देश्य पूरा हो गया.
15 जून 1982 को मलखान सिंह ने अपने गैंग के सदस्यों के साथ तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने सरेंडर कर दिया. आत्मसमर्पण के बाद 6 साल मलखान सिंह जेल में रहे इसके बाद वे जेल से बाहर आ गए. मलखान सिंह के जेल से बाहर आने के बाद सरकार ने उन्हें गुना जिले के आरोन तहसील की सुनगयाई गांव में खेती करने के लिए जमीन उपलब्ध कराई. मलखान सिंह इसी गांव में आकर बस गए.
पत्नी सरपंच, मलखान सिंह कांग्रेस में शामिल
उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनाव प्रचार भी किया था. साल 2014 के चुनाव में उन्होंने भाजपा के प्रचार अभियान से जुड़कर बीजेपी को जिताने की अपील भी की थी. बीते साल हुए नगरी निकाय चुनाव में मलखान सिंह की पत्नी ललिता सिंह उनके ही गांव से निर्विरोध सरपंच चुनी गई, लेकिन अब मलखान सिंह का बीजेपी से मोह भंग हो गया और उन्होंने कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया है.
हेमंत शर्मा