MP: चीतों के नए घर गांधी सागर में दिखा एक दुर्लभ जीव, फॉरेस्ट अफसर भी हैरान

स्याहगोश एक मांसाहारी, अत्यंत शर्मीला, तेज गति से दौड़ने वाला और रात्रिचर वन्यजीव है. यह खासकर शुष्क, झाड़ीदार, पथरीले और खुले घास वाले इलाकों में पाया जाता है. भारत में यह प्रजाति अब विलुप्तप्राय श्रेणी में है और इसकी मौजूदगी बहुत दुर्लभ मानी जाती है.

Advertisement
गांधी सागर अभयारण्य में पाया गया दुर्लभ 'स्याहगोश' (Photo:mpinfo) गांधी सागर अभयारण्य में पाया गया दुर्लभ 'स्याहगोश' (Photo:mpinfo)

aajtak.in

  • मंदसौर,
  • 11 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 4:02 PM IST

MP News: मंदसौर जिले के गांधी सागर अभयारण्य में दुर्लभ प्रजाति के स्याहगोश (कैराकल) की मौजूदगी दर्ज की गई है. गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में कैराकल, जिसे स्थानीय रूप से स्याहगोश कहा जाता है, कैमरा ट्रैप में दिखाई दिया. 

स्याहगोश एक मांसाहारी, अत्यंत शर्मीला, तेज गति से दौड़ने वाला और सामान्यतः रात्रिचर वन्यजीव है. यह खासकर शुष्क, झाड़ीदार, पथरीले और खुले घास वाले इलाकों में पाया जाता है. भारत में यह प्रजाति अब विलुप्तप्राय श्रेणी में है और इसकी मौजूदगी बहुत दुर्लभ मानी जाती है.

Advertisement

गांधी सागर अभयारण्य के वन अधिकारी ने बताया कि मंदसौर वन मंडल में लगाए गए कैमरा ट्रैप में एक वयस्क नर कैराकल की उपस्थिति दर्ज हुई है, जो जैव विविधता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है. यह अभयारण्य में संरक्षित आवासों की गुणवत्ता और संरक्षण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का प्रमाण है. कैराकल की उपस्थिति दर्शाती है कि गांधी सागर क्षेत्र का शुष्क और अर्द्ध-शुष्क पारिस्थितिक तंत्र अभी भी इतना समृद्ध और संतुलित है कि यह दुर्लभ प्रजाति को आश्रय दे सकता है.

मध्य प्रदेश में कई वर्षों बाद किसी संरक्षित क्षेत्र में कैराकल की पुष्टि हुई है, जो प्रदेश के लिए गर्व की बात है. यह खोज न केवल वन्यजीव शोध के लिए अहम है, बल्कि हमारे संरक्षण प्रयासों की सफलता का भी प्रमाण है. 

इस उपलब्धि के लिए वन विभाग और गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य के अधिकारियों व कर्मचारियों के विशेष प्रयासों से विविध पारिस्थितिकी संरक्षित रही है, जिसके कारण यह अभयारण्य दुर्लभ प्रजातियों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल बना हुआ है.

Advertisement

वन अधिकारी ने कहा, ''कई साल बाद मध्य प्रदेश के किसी संरक्षित क्षेत्र में कैराकल की उपस्थिति की पुष्टि हुई है, जो राज्य के लिए गौरव की बात है. यह खोज न केवल वन्यजीव अनुसंधान के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि हमारे संरक्षण प्रयासों की सफलता का भी प्रमाण है. वन विभाग और गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य के अधिकारियों व कर्मचारियों के विशेष प्रयासों से विविध पारिस्थितिकी संरक्षित हुई है, जिसके कारण यह अभयारण्य दुर्लभ प्रजातियों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल बन गया है.''

बता दें कि इस साल अप्रैल में दो दक्षिण अफ्रीकी चीतों प्रभाष और पावक को श्योपुर जिले स्थित कूनो नेशनल पार्क से गांधी सागर अभयारण्य के बसीगांव खेमला में छोड़ा गया था.

---- समाप्त ----

TOPICS:
Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement