मध्य प्रदेश के ग्वालियर से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है, जहां हाईकोर्ट के जमानत आदेश में अनोखी गलती हो गई. जिस आरोपी को जमानत मिलनी थी, उसकी अर्जी खारिज कर दी गई और जिसे जमानत नहीं मिलनी थी, उसे जमानत दे दी गई. मामला संज्ञान में आते ही पहला आदेश निरस्त कर नया आदेश जारी किया गया.
मामला 7 अगस्त 2025 को हल्के आदिवासी की जमानत पर सुनवाई का है, जो मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ में हुई. 8 अगस्त 2025 को सुबह करीब 10:45 बजे कोर्ट ने हल्के आदिवासी को जमानत देने का आदेश पारित किया और इसे वेबसाइट पर अपलोड किया. लेकिन शाम करीब 6:30 बजे एक और आदेश अपलोड हुआ, जिसमें कहा गया कि टाइपिंग मिस्टेक के कारण आदेश गलत हो गया था. जिसे जमानत देनी थी, उसका नाम किसी और का था, जबकि आदेश में हल्के आदिवासी का नाम आ गया. जिसे जमानत देनी थी, उसकी अर्जी खारिज हो गई.
कोर्ट ने तुरंत पहला आदेश रद्द कर केस की सुनवाई 11 अगस्त 2025 को करने का आदेश दिया. कानूनी जानकारों का कहना है कि कोर्ट में हर आदेश संवेदनशील होता है और ऐसी गलती गंभीर मानी जाती है.
दरअसल, विदिशा जिले के त्यौंदा थाना इलाके में 5 जुलाई 2024 को एक हत्या का मामला दर्ज हुआ था. आरोप है कि प्रकाश पाल अपनी दुकान पर बैठा था, तभी हल्के आदिवासी और धर्मेंद्र आदिवासी ने डंडे और पत्थरों से हमला कर उसकी हत्या कर दी. पुलिस ने हल्के को 8 जुलाई और धर्मेंद्र को 10 जुलाई को गिरफ्तार किया.
दोनों ने ग्वालियर हाईकोर्ट में जमानत याचिका दायर की. 7 अगस्त 2025 को सुनवाई हुई और 8 अगस्त को सुबह 10:45 बजे आदेश अपलोड हुआ, जिसमें हल्के को जमानत दी गई और धर्मेंद्र की अर्जी खारिज कर दी गई. लेकिन शाम 6:30 बजे नया आदेश जारी हुआ, जिसमें टाइपिंग गलती के कारण आदेश उल्टा होने की बात कही गई. जिसे जमानत नहीं देनी थी, उसे जमानत दे दी गई, और जिसे देनी थी, उसकी याचिका खारिज हो गई.
उधर, आदेश अपलोड होते ही आरोपी के वकील ने जमानत भरवा ली और रिहाई का आदेश जेल तक पहुंच गया. लेकिन हाईकोर्ट की तत्परता से आदेश रद्द कर रिहाई रुक गई. अब 11 अगस्त 2025 को इस मामले में फिर से सुनवाई होगी.
सर्वेश पुरोहित