ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित 3 साल की बच्ची की 'संथारा' संस्कार करवाने के बाद हुई मौत पर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने उसके माता-पिता और सरकार से जवाब मांगा है. इस संबंध में अदालत में एक जनहित याचिका दायर की गई थी.
इंदौर बेंच के जस्टिस विवेक रूसिया और जस्टिस विनोद कुमार द्विवेदी की बेंच ने माता-पिता के अलावा केंद्र सरकार, राज्य सरकार और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है. जनहित याचिका पर अगली सुनवाई 25 अगस्त को होने की संभावना है.
शहर के कार्यकर्ता प्रांशु जैन (23) की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि बच्चों और मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों को संथारा लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि यह उनके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करता है.
दरअसल, 'संथारा' एक प्राचीन जैन प्रथा है जिसमें व्यक्ति स्वेच्छा से भोजन, पानी, दवाइयां और जरूरी वस्तुओं का त्याग करके जीवन समाप्त करने का निर्णय लेता है.
जैन के वकील शुभम शर्मा ने एक न्यूज एजेंसी को बताया कि उनकी याचिका में कहा गया है कि संथारा प्रक्रिया शुरू करने से पहले व्यक्ति की सहमति जरूरी है. वर्तमान मामले में, ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित एक तीन साल की मासूम बच्ची को कथित तौर पर संथारा लेने के लिए मजबूर किया गया, जिसके परिणामस्वरूप उसकी मृत्यु हो गई
वकील ने कहा, "उसकी मृत्यु के बाद, उसके माता-पिता द्वारा किए गए आवेदन के जवाब में गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने एक प्रमाण पत्र जारी किया, जिसमें कहा गया कि वह संथारा लेने वाली दुनिया की सबसे कम उम्र की व्यक्ति थी."
वकील शर्मा ने बताया कि बच्ची की मृत्यु के बारे में जानने के बाद उनके मुवक्किल ने केंद्र और राज्य सरकारों से शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होने पर उन्होंने हाई कोर्ट का रुख किया.
बच्ची के माता-पिता आईटी पेशेवर हैं. मासूम की मृत्यु पर हंगामा मचने के बाद माता-पिता ने दावा किया कि उन्हें एक जैन मुनि से प्रेरणा मिली थी कि उन्होंने इस साल मार्च में अपनी इकलौती बच्ची को संथारा लेने के लिए प्रेरित किया, उस समय जब वह ब्रेन ट्यूमर के कारण बहुत बीमार थी और उसे खाने-पीने में कठिनाई हो रही थी. उन्होंने कहा कि मुनि द्वारा संथारा से जुड़े अनुष्ठान पूरे करने के तुरंत बाद बच्ची की मृत्यु हो गई.
बता दें कि साल 2015 में राजस्थान हाई कोर्ट ने संथारा प्रथा को भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और 309 (आत्महत्या का प्रयास) के तहत दंडनीय अपराध घोषित किया. इसके बाद जैन संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जिसने हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी.
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