मध्य प्रदेश के चार बड़े शहरों में अब 50 या उससे कम बेड वाले अस्पताल आयुष्मान भारत योजना के तहत मरीजों का इलाज नहीं कर पाएंगे. यह आदेश आयुष्मान भारत निरामयम मध्य प्रदेश ने पारित किया है, जो भोपाल, ग्वालियर, इंदौर और जबलपुर में एक अप्रैल से लागू होगा. फिलहाल 31 मार्च तक इन अस्पतालों पर यह आदेश लागू नहीं होगा.
हालांकि, 50 बेड से कम के अस्पताल चलाने वाले डॉक्टरों ने इस आदेश को हास्यास्पद करार दिया है. उनका कहना है कि आदेश के पीछे का उद्देश्य कमजोर गरीब रोगियों के जरिए मेडिकल कॉलेजों को फायदा पहुंचाना है. जबकि उन मरीजों को आयुष्मान भारत योजना के तहत लाभ दिया जाना चाहिए. उन्होंने यहा भी सवाल उठाया कि इस आदेश को सिर्फ चार शहरों में गही क्यों लागू किया जा रहा है.
भोपाल के एक निजी अस्पताल के संचालक ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि जब कोई मरीज किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित होता है, जो सामान्य चिकित्सा श्रेणी के अंतर्गत आती हैं, तो वह सबसे पहले यह उम्मीद करता है कि वह निकटतम अस्पताल में बिस्तरों की संख्या का पता लगाएगा.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन भोपाल के उपाध्यक्ष डॉ. अपूर्व त्रिपाठी का कहना है कि कि बीमारी की पहचान किए बिना किसी परेशानी का इलाज करने का यह एक अनोखा मामला है. उन्होंने माना कि भ्रष्टाचार से निपटने की कोशिशें जारी हैं. लेकिन 50 से ज्यादा बिस्तर वाले अस्पतालों में भ्रष्टाचार नहीं होगा, इसका क्या भरोसा है.
उन्होंने कहा कि एनएबीएच योग्यता के आधार पर मान्यता प्रदान करता है. अगर कोई भ्रष्ट है चाहे वह बड़ा हो या छोटा तो उसकी मान्यता रद्द कर दी जानी चाहिए. लेकिन इस तरह बंटवारा करने के पीछे कोई तर्क नहीं है.
बता दें कि आयुष्मान भारत योजना के तहत मान्यता प्राप्त अस्पतालों को मरीजों का इलाज शुरू करने से पहले आयुष्मान भारत पोर्टल से सूचित करना और अनुमोदन लेना होता है. एक बार आवश्यक अनुमोदन लेने के बाद, रोगी को कोई भुगतान नहीं करना पड़ता है और अस्पताल को सीधे सरकार द्वारा मुआवजा दिया जाता है.
आदेश निकालने वाले आयुष्मान भारत निरामयम मध्यप्रदेश ने अभी तक आदेश को सिर्फ चार शहरों में लागू करने और इसे सिर्फ सामान्य चिकित्सा श्रेणी तक सीमित करने के तर्क पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
हेमेंद्र शर्मा