MP: पचमढ़ी के 132 साल पुराने राजभवन में होगी डेस्टिनेशन कैबिनेट मीटिंग, जानें इस ऐतिहासिक इमारत का इतिहास

आजादी के बाद 1967 तक पचमढ़ी को मध्य प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में उपयोग किया जाता रहा. इस दौरान राजभवन पचमढ़ी राज्यपाल का आधिकारिक निवास था. तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह ने ग्रीष्मकालीन राजधानी को पचमढ़ी से स्थानांतरित करने की प्रथा समाप्त कर दी.

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पचमढ़ी राजभवन का निर्माण वर्ष 1887 में हुआ था. पचमढ़ी राजभवन का निर्माण वर्ष 1887 में हुआ था.

aajtak.in

  • नर्मदापुरम/भोपाल,
  • 02 जून 2025,
  • अपडेटेड 9:27 PM IST

मध्य प्रदेश की मोहन सरकार 3 जून को पचमढ़ी के ऐतिहासिक राजभवन में पहली बार डेस्टिनेशन कैबिनेट आयोजित करने जा रही है. यह बैठक जनजातीय नायक और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राजा भभूत सिंह को समर्पित होगी. इस बैठक के माध्यम से मुख्यमंत्री मोहन यादव पूरे देश को यह संदेश देंगे कि मध्य प्रदेश सरकार विकास की पंक्ति में सबसे अंत में खड़े व्यक्ति के कल्याण के लिए भी संकल्पित है. यह बैठक पचमढ़ी में स्थित राजभवन में होगी, जो कला-संस्कृति की ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक है. इस भवन में कदम रखते ही राजशाही का अनुभव होने लगता है.

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राजभवन का निर्माण 1887 में हुआ था और यह लगभग 132 वर्ष पुरानी इमारत है. यह क्षेत्र प्रारंभ में बैतूल के किसी जागीरदार की संपत्ति था, जिसे बाद में अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन अधिग्रहित कर 'गवर्नमेंट हाउस' बना दिया. ब्रिटिश शासनकाल में पचमढ़ी को ग्रीष्मकालीन राजधानी का दर्जा प्राप्त था और यह भवन महत्वपूर्ण प्रशासनिक गतिविधियों का केंद्र हुआ करता था.

22.84 एकड़ के विशाल भू-भाग में फैला यह राजभवन परिसर अपनी भव्यता और सुनियोजित संरचना के लिए जाना जाता है. उस समय राजभवन के प्रारंभिक निर्माण में 91 हजार 344 रुपये की लागत आई थी. इसमें 1910-1911 में 20 हजार 770 रुपये की लागत से एक भव्य डांस हॉल का निर्माण किया गया, जो तत्कालीन ब्रिटिश अधिकारियों के मनोरंजन और सामाजिक समारोहों का केंद्र था. वर्ष 1912 में 14 हजार 392 रुपये की लागत से काउंसिल चैंबर का निर्माण हुआ, जिसे आज दरबार हॉल के नाम से जाना जाता है.

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इसका उपयोग ब्रिटिश अधिकारियों की महत्वपूर्ण बैठकों और सभाओं के लिए होता था. वर्ष 1933 से 1958 के बीच इस परिसर में समय-समय पर विस्तार, निर्माण, सुधार और मरम्मत कार्य किए गए. इसके अतिरिक्त, परिसर में सचिव निवास (बी बंगला), ए.डी.सी. निवास, कैम्प हॉल, कैम्प हेड क्लर्क क्वार्टर, अस्तबल, पावर हाउस, एलिफेंट हाउस, महावत हाउस, टाइगर हाउस और स्टाफ क्वार्टर भी ब्रिटिश काल में बनाए गए.

यह हैं मुख्य भवन की विशेषताएं
पचमढ़ी राजभवन की मुख्य इमारत यूरोपीय शैली की वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है. इसमें 8 कमरे हैं. कमरा नंबर 1 सतपुड़ा कक्ष कहलाता है, जबकि कमरा नंबर 2 को महादेव का नाम दिया गया है. ये दोनों कमरे राज्यपाल और उनकी पत्नी के लिए आरक्षित हैं. कमरा नंबर 3 से 8 के नाम जटाशंकर, चौरागढ़, पांडव, रजत, राजेंद्रगिरी और वायसन हैं. सभी कमरों की छतें ऊंची हैं और इनमें बड़े-बड़े रोशनदान हैं. दरवाजों और खिड़कियों पर विशेष शैली की पीतल की कुंडियां हैं.

सागौन की लकड़ी से बने खूबसूरत फर्नीचर आकर्षण का केंद्र हैं, जिनमें सोफे, राइटिंग टेबल, कुर्सियां, पलंग, तिपाई टेबल, ड्रेसिंग टेबल और पुराने कालीन शामिल हैं. इनकी कारीगरी और डिज़ाइन आज भी आकर्षक हैं. ड्रेसिंग रूम में बुनाई वाली टेबल और कपड़े रखने की बास्केट यूरोपीय जीवनशैली को दर्शाती हैं. हर कमरे में एक खूबसूरत फायरप्लेस है, जो पचमढ़ी के तत्कालीन ठंडे मौसम का आभास कराता है. कमरों के सामने एक लंबा गलियारा है, जिसकी लकड़ी की छत की डिज़ाइन अत्यंत मनमोहक है. यहां से सुंदर लॉन का दृश्य सुखद अनुभव प्रदान करता है.

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राजभवन के ये हैं अन्य स्थल
कमरा नंबर 3 से सटा डायनिंग हॉल एक विशेष तकनीक और डिज़ाइन से निर्मित डाइनिंग टेबल के लिए प्रसिद्ध है, जिसे आवश्यकतानुसार छोटा या बड़ा किया जा सकता है. इस कक्ष में लकड़ी के पैनल लगे हैं और फर्नीचर अत्यंत सुंदर व नक्काशीदार है. यहां एक फायरप्लेस और भोजन के लिए आमंत्रित करने वाला पीतल का बड़ा घंटा भी मौजूद है. डायनिंग हॉल से सटा लंबा गोल कक्ष, जिसे गोल रूम (नागद्वार) कहा जाता है, अतिथि कक्ष के रूप में उपयोग होता है. इसमें ब्रिटिशकालीन फर्नीचर, वुड पैनल, पंखे, नक्काशीदार फायरप्लेस और पुराने फूलदान देखे जा सकते हैं.

मुख्य भवन के समीप स्थित डांस हॉल की दीवारों और खिड़कियों में मेहराबदार नक्काशी है. ब्रिटिश काल में इसका उपयोग नृत्य, गायन और मनोरंजन के लिए होता था. इसका लकड़ी का फर्श अंदर से खोखला है, जो इसे बाल डांस रूम की विशिष्टता प्रदान करता है. डांस हॉल के पास कांफ्रेंस हॉल, यानी दरबार हॉल, है. इसका उपयोग अंग्रेज अफसर सभाएं आयोजित करने के लिए करते थे. इसमें ब्रिटिशकालीन लंबी राउंड टेबल, कुर्सियां, नक्काशीदार लकड़ी का पार्टिशन, बिलियर्ड टेबल (बिलियर्ड स्टिक, स्कोर बोर्ड, हाथी दांत की छोटी गेंदों और जजिंग सोफे सहित), लकड़ी का पियानो और पियानो बजाने के लिए खूबसूरत कुर्सी आज भी संरक्षित हैं.

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हर चीज है देखने लायक
पचमढ़ी के राजभवन में श्इंद्रधनुषश् डॉरमेट्री भी है, जिसका उपयोग ब्रिटिश काल में सचिव, एडीसी और अन्य स्टाफ के ठहरने के लिए होता था. पहले यह 'बी बंगला' और 'कैम्प हॉल' के रूप में जाना जाता था. इसे वर्तमान में 40 शयनकक्षों वाली डॉरमेट्री में बदल दिया गया है. इसका लोकार्पण तत्कालीन राज्यपाल लालजी टंडन ने 5 फरवरी 2020 को किया था. यह सुविधा पचमढ़ी आने वाले स्कूल, कॉलेज, एनएसएस और एनसीसी के छात्र-छात्राओं के लिए उपलब्ध है.

मुख्य भवन के सामने एक विशाल, गोलाकार राजभवन लॉन है, जो पचमढ़ी के सबसे खूबसूरत लॉनों में से एक माना जाता है. इसके चारों ओर फूलों और आभूषणिक पौधों की बाड़ लगी है और बीच में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए एक चबूतरा बना है. लॉन में बड़े-बड़े क्रिसमस ट्री इसकी शोभा बढ़ाते हैं.

राजभवन से सटा लगभग 10 एकड़ का किचन गार्डन है, जिसमें आम्रपाली, मल्लिका, बॉम्बे ग्रीन, चौसा, दशहरी, रसभंडार, सुंदरजा जैसी आम की विभिन्न किस्मों के 50 वर्ष से भी पुराने पेड़ हैं. यहां 'सेंटरोज' किस्म की लीची भी उगती है, जो अत्यंत रसदार और मीठी होती है और मध्य प्रदेश में केवल पचमढ़ी में ही इसका उत्पादन होता है. इसके अतिरिक्त, नाशपाती, जामुन, बीज रहित जामुन, महुआ, हर्रा, बहेड़ा, आंवला जैसे जंगली पेड़ भी यहां पाए जाते हैं.

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स्वतंत्रता के बाद क्या हुआ
स्वतंत्रता के बाद 1967 तक पचमढ़ी को मध्य प्रदेश की ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में उपयोग किया जाता रहा. इस दौरान राजभवन पचमढ़ी राज्यपाल का आधिकारिक निवास था. तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह ने ग्रीष्मकालीन राजधानी को पचमढ़ी से स्थानांतरित करने की प्रथा समाप्त कर दी.

आज भी राजभवन पचमढ़ी अपनी ऐतिहासिक आभा और प्राकृतिक सौंदर्य को संजोए हुए है. परिसर में विभिन्न प्रजातियों के पक्षी, बड़ी आकार की जंगली गिलहरियां, नेवले और उल्लू आदि पाए जाते हैं, जो इसकी प्राकृतिक समृद्धि को दर्शाते हैं. राजभवन में तीन द्वार हैं, जिनमें मुख्य प्रवेश और निर्गम द्वार पर पुलिस चौकी है, जहां होमगार्ड के जवान 24 घंटे तैनात रहते हैं.

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