भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े काले अध्याय का अंत... 40 साल बाद जलाया गया यूनियन कार्बाइड का 337 टन जहरीला कचरा

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी श्रीनिवास द्विवेदी ने बताया कि 307 टन कचरे को 5 मई को शाम 7:45 बजे से जलाना शुरू किया गया और यह प्रक्रिया 29-30 जून की रात 1 बजे पूरी हुई. यह कचरा अधिकतम 270 किलो प्रति घंटे की दर से जलाया गया. यह प्रक्रिया केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तकनीकी विशेषज्ञों की निगरानी में हुई. 

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40 साल बाद जलाया गया यूनियन कार्बाइड का 337 टन जहरीला कचरा 40 साल बाद जलाया गया यूनियन कार्बाइड का 337 टन जहरीला कचरा

aajtak.in

  • भोपाल,
  • 01 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 8:27 AM IST

मध्य प्रदेश के पीथमपुर कस्बे में स्थित एक डिस्पोजल प्लांट में यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री का पूरा 337 टन कचरा जलाकर राख कर दिया गया है. एक अधिकारी ने सोमवार को यह जानकारी दी. यह प्रक्रिया उस जहरीले कचरे को प्लांट में लाए जाने के छह महीने बाद पूरी हुई है.

1984 की भोपाल गैस त्रासदी से जुड़ा काला अध्याय समाप्त

इससे पहले प्लांट में तीन बार ट्रायल के दौरान 30 टन कचरा जलाया गया था. बाकी बचे 307 टन कचरे को जलाने की प्रक्रिया 5 मई से शुरू होकर 29-30 जून की मध्यरात्रि को पूरी हुई, जिससे 1984 की भोपाल गैस त्रासदी से जुड़ा एक काला अध्याय समाप्त हो गया.

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धार जिले के पीथमपुर औद्योगिक नगर में स्थित संयंत्र में यह प्रक्रिया मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के निर्देशों के तहत की गई. हालांकि शुरुआत में स्थानीय लोगों ने पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव को लेकर इसका विरोध किया था.

2-3 दिसंबर 1984 की वो रात...

बता दें कि 2-3 दिसंबर 1984 की रात को यूनियन कार्बाइड के कीटनाशक कारखाने से बेहद जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) का रिसाव हुआ था, जो विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदियों में से एक थी. इसमें कम से कम 5,479 लोगों की मौत हुई और हजारों लोग विकलांग हो गए थे.

विशेषज्ञों की निगरानी में जलाया गया कचरा

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी श्रीनिवास द्विवेदी ने बताया कि 307 टन कचरे को 5 मई को शाम 7:45 बजे से जलाना शुरू किया गया और यह प्रक्रिया 29-30 जून की रात 1 बजे पूरी हुई. यह कचरा अधिकतम 270 किलो प्रति घंटे की दर से जलाया गया. यह प्रक्रिया केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तकनीकी विशेषज्ञों की निगरानी में हुई. 

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लीक-प्रूफ शेड में रखी गई राख

उन्होंने बताया, 'हमें इस प्रक्रिया के दौरान आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की सेहत पर कोई प्रतिकूल प्रभाव की जानकारी नहीं मिली है.' द्विवेदी के अनुसार, कचरा जलने के बाद जो राख और अन्य अवशेष बचे हैं, उन्हें सुरक्षित रूप से बोरी में पैक कर प्लांट के लीक-प्रूफ शेड में रखा गया है. इन अवशेषों को जमीन में दफनाने के लिए वैज्ञानिक विधि से विशेष लैंडफिल सेल बनाए जा रहे हैं, जो नवंबर तक पूरे होने की उम्मीद है.

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