दिल्ली विस्फोट मामले में जांच के घेरे में आए अल फलाह यूनिवर्सिटी के चेयरमैन जावेद सिद्दीकी के भाई को मध्य प्रदेश पुलिस ने महू में वित्तीय धोखाधड़ी के सिलसिले में हैदराबाद से गिरफ्तार किया है.
एक अधिकारी ने बताया कि 25 साल पहले मध्य प्रदेश के महू में बड़े पैमाने पर वित्तीय धोखाधड़ी करने के आरोपी हमूद अहमद सिद्दीकी को रविवार को हैदराबाद से गिरफ्तार किया गया.
फर्जी बैंक घोटाले का आरोपी
महू एसडीओपी ललित सिंह सिकरवार ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताया, "हमूद अहमद सिद्दीकी पर आरोप है कि उसने साल 2000 में महू में एक फर्जी प्राइवेट बैंक स्थापित किया और सैकड़ों निवासियों को उनकी जमा राशि दोगुनी करने का वादा करके ठगा. घोटाला सामने आते ही हमूद अपने परिवार के साथ महू से फरार हो गया था और अधिकारी दशकों से उसकी तलाश कर रहे थे. उसे रविवार को हैदराबाद से गिरफ्तार किया गया.''
दिल्ली विस्फोट मामले के कारण महू पुलिस ने जब जावेद सिद्दीकी की पृष्ठभूमि की फिर से जांच शुरू की और उनके स्थानीय मूल का पता लगाया, तब हमूद के फरार होने की जानकारी मिली.
सूत्रों के अनुसार, हमूद हैदराबाद में रह रहा था और शेयर ट्रेडिंग का काम करता था, लेकिन वह कम ही लोगों से मिलता-जुलता था. जांचकर्ता अब हमूद के संपर्कों और पिछले कुछ वर्षों की गतिविधियों की जांच कर रहे हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि भूमिगत रहने के दौरान किन लोगों ने उसकी मदद की होगी.
दिल्ली विस्फोट मामले से कनेक्शन
बता दें कि दिल्ली विस्फोट के मुख्य आरोपी डॉ. उमर उन नबी अल फलाह यूनिवर्सिटी के छात्र थे, जिसके चेयरमैन जावेद सिद्दीकी हैं.
दिल्ली पुलिस ने फरीदाबाद आतंकी मॉड्यूल मामले की चल रही जांच और यूनिवर्सिटी के खिलाफ जालसाजी और धोखाधड़ी के दो मामलों के सिलसिले में अल फलाह यूनिवर्सिटी के चेयरमैन को दो समन जारी किए हैं.
जांचकर्ताओं ने पाया कि यूनिवर्सिटी के चेयरमैन का बयान यूनिवर्सिटी के कामकाज और संस्थान से जुड़े व्यक्तियों की गतिविधियों से जुड़ी कई विसंगतियों को स्पष्ट करने के लिए अहम था, जिसके बाद यह समन भेजा गया.
पुलिस सूत्रों ने बताया कि उन्हें समन जारी करना एक व्यापक जांच का हिस्सा है, जो पिछले हफ़्ते लाल किले के पास हुए विस्फोट की चल रही जाँच से मेल खाती है. इस विस्फोट में 13 लोगों की जान चली गई थी और कई अन्य घायल हुए थे.
ऐसा माना जाता है कि विस्फोट से जुड़े कई संदिग्धों का यूनिवर्सिटी से संबंध था, जिसके चलते जांचकर्ताओं को संस्थागत रिकॉर्ड, वित्तीय लेनदेन और प्रशासनिक स्वीकृतियों की जांच करनी पड़ रही है.
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