कहानी - एक कागज़ का फूल
राइटर - जमशेद क़मर सिद्दीक़ी
उस सुबह क्लीनिक पर भीड़ रोज़ से थोड़ी ज़्यादा थी। होली की कई दिन की छुट्टियों के बाद क्लीनिक खुली थी। डॉक्टर साहब के आने में अभी देर थी और उनके अटैंडेंट ने मुझे इंतज़ार करने को कहा। मुझे इंतज़ार करने में परेशानी नहीं होती... मैं जिस पेशे में हूं वहां इंतज़ार करने की ट्रेनिंग दी जाती है... हर दिन, मेरे जैसे हज़ारों लाखों लोग डॉक्टरों की क्लीनिक्स, हॉस्पिटल्स के बाहर इंतज़ार ही तो करते हैं.. मैं एक MR हूं... यानि मेडिकल रिप्रेज़ेंटेटिव... कंपनी की दवाओं को लेकर शहर के अस्पतालों के चक्कर लगाना मेरा काम है। अभी मैं सोच ही रहा था कि अचानक वहां हलचल सी होने लगी। डॉक्टर साहब आ गए थे। मैं भी उठने लगा लेकिन डॉक्टर साहब का अटैंडेंट केशव जिसकी ज़िम्मेदारी थी कि सारे पेशेंट्स को टोकन बाटे, सबकी फाइल डॉक्टर साहब की टेबल पर पहुंचाए, छोटे मोटे और कामों की ज़िम्मेदारी भी केशव की थी। केशव जिससे मेरी पुरानी जान पहचान थी... उसने मुझे इशारे से कहा कि वो मुझे दो तीन पेशेंट्स के बाद अंदर भेज देगा... मैं बैठ गया कि चलिए जान-पहचान का इतना तो फायदा मिला... मैं वहां मरीज़ों-तमीरदारों को देखने लगा... ग़मज़दा चेहरे, थके हुए जिस्म, उनींदी आंखे... अपनी तकलीफ को जिस्म की तहों में छिपाए अपनी बारी का इंतज़ार करते हुए लोग... उफ्फ दुनिया में वाकई कितना गम है ना... मैंने गहरी सांस ली और सोचा बाहर खड़ा हो जाता हूं, मैं उठने ही वाला था कि अचानक... अचानक मेरी नज़र कतार के आखिर में मुंह उस तरफ किये एक लड़की पर पड़ी... और ऐसा लगा जैसे एक पल के लिये ये दुनिया, हवा, शोर... सब सब थम गया था - क्या... ये वही थी... नहीं... ये नहीं हो सकता... ये कैसे हो सकता है? (आगे की कहानी नीचे है लेकिन अगर इसी कहानी को अपने फोन पर जमशेद कमर सिद्दीक़ी से सुनना हो तो नीचे दिये लिंक पर क्लिक करें)
इसी कहानी को जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से SPOTIFY पर सुनने के लिए यहां क्लिक करें
इसी कहानी को जमशेद क़मर सिद्दीक़ी से APPLE PODCASTS पर सुनने के लिए यहां क्लिक करें
(बाकी की कहानी यहां से पढ़ें)
मैंने ग़ौर से देखा... सामने वही चेहरा था। वही यासमीन, जो कभी मेरी ज़िंदगी का अहम हिस्सा थी... मैं हैरान रह गया... अचानक उसने नज़र घुमाई... वो भी चौंक गयी... वाकई ये ज़िंदगी कितनी अजीब होती है... कब कौन कहां टकरा जाए... किसे पता... यही वही यासमीन थी.. जिसकी वजह से मैं पूरी दुनिया के सामने रुसवा हुआ था।
वो घबराकर दूसरी तरफ देखने लगी.... उसके चेहरे पर घबराहट थी, माथे पर पसीने की बूंदे, चेहरे से ज़ाहिर हो रहा था कि वो शर्मिंदा थी। पूरे पांच साल के बाद मैं उस चेहरे को देख रहा था। हालांकि चेहरा बदल गया था, बल्कि वो खुद बदल गई थी और शायद उसके हालात भी। क्योंकि अब उसके कपड़े बहुत औसत थे, हाथों में पुरानी सी चूड़ियां, चेहरा धंस गया था, आंखों के नीचे काले घेरे। ऐसा लग रहा था जैसे वो वक्त की किसी मुश्किल गली से गुज़र रही हो।
मुझे अचानक ख्याल आया कि मेरा इस तरह उसे घूरना, अजीब लग रहा हो.. मैंने नज़र हटा ली लेकिन दिल तेज़ी से धड़क रहा था।
मैं याद करने लगा कि ऐसा ही तो था वो दिन ... जब एक कॉमेडी शो में हमारी मुलाकात हुई थी। वो मेरे दोस्त शिवम की दोस्त थी। सेंस ऑफ ह्यूमर यासमीन का भी बहुत अच्छा था। मुझे याद है जब शिवम ने मुझे यासमीन से मिलवाया था... तो मैंने उसे कहा हैलो... मैं... मैं शिवम का दोस्त हूं...
यासमीन ने एक बार मुझे देखा और शिवम से कहा, ओह अच्छा अच्छा तो ये आपके वही दोस्त हैं जिनके बारे में आप मुझे... कभी नहीं बताते...
हम तीनों ज़ोर से हंसे... वो एक शोख लड़की थी, कूल से कपड़े पहनने वाली, बात-बात पर जोक करने वाली.. वो बहुत क्रिएटिव थी... उसका एक बड़ा अजीब शौक था... वो कागज़ को मोड़ कर तरह तरह के फूल बनाया करती थी। उसके बैग में रंगीन कागज़ होते थे ... जब भी खाली होती या किसी का इंतज़ार करती ... बैग से कागज़ निकालती और कभी नाव... कभी फूल, कभी चिड़िया बनाती... मुझे सब याद था...
अचानक मैं यादों से वापस आया... अरे यासमीन कहां गयी.. अभी तो बेंच पर थी... मैं उठा और उसे देखने के लिए अंदर वाले रूम में गया। वो दिख गयी... शायद मुझसे छुपना चाहती थी। शायद उस शर्मिंदगी की वजह से... जो उसने मेरे साथ किया था, अपने गिल्ट की वजह से।
मैं अब उसे ग़ौर से देख रहा था... पर वो... वो कितना बदल गयी थी। पांच साल में कोई इतना कैसे बदल सकता है। चेहरा बुझा हुआ, बिखरे बाल, घिसे हुए चप्पल, उधड़े हुए पैबंद वाले कपड़े... उसके हालात देखकर अफसोस तो हो रहा था लेकिन.. शायद .. कहीं, मन की बहुत गहराई में, हल्का इत्मिनान भी था। मन का एक हिस्सा उसके हालात पर आंसू बहाने को कह रहा था लेकिन और एक आवाज़ भी थी... “यासमीन, अब तुम्हें पता चला होगा कि तुमने क्या खोया”
मैंने हिम्मत की और उसके पास गया... कैसी हो...
मैने कहा, तो उसने बिना मेरी तरफ देखे.. क्या कह रहे हैं डॉक्टर साहब... तुम्हारा पुराना ज़ख्म कब तक ठीक होगा? हम दोनों हल्का सा मुस्कुराए... वो अब भी मज़ाकिया थी। हमने एक दूसरे को देखा और हमारे चेहरे पर आई मुस्कुराहट धीरे-धीरे संजीदगी में बदल गयी।
कैसे हो – उसने पूछा
मैं ठीक हूं
तुम कैसी हो... अब भी कागज़ के फूल और चिड़िया वगैरह बनाती हो...
वो हल्का मुस्कुराई.. अब वक्त नहीं मिलता... कहते हुए उसने मेरी उंगली में अंगूठी देखी... बोली... कॉनग्रैचुलेशंस... बाई दा वे
मुझे लगा वो तंज़ कर रही है... मैंने भी तंज़ किया... तुम्हारे हंसबैंड कैसे हैं... - उसने गहरी सांस ली... और हाथ में ली हुई रिपोर्ट्स किनारे रखती हुई बोली... आ... ठीक तो नहीं है.... उन्हीं के लिए आई हूं ... रिपोर्ट्स दिखाने...
मैंने पूछा कि क्या हुआ है तो उसने पहले तो उसने टालने की कोशिश की.... लेकिन मैंने ज़िद की तो उसने मेरी तरफ देखा... उसकी आंखों में आंसू थे। लास्ट स्टेज कैंसर.... बीमार हैं, बिस्तर से लगे हैं... बचने के चांस अब ना के बराबर हैं... उसने बताया कि उनके ही इलाज में सारी सेविंग्स... प्रॉपर्टी... और इतना कुछ लग गया... कि अब कुछ बचा नही है... पेरेंट्स ने भी एक हद तक साथ दिया... पर अब... कोई साथ नहीं है... बीमारी में नौकरी भी चली गयी... कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती हूं... बस वैसे ही चल रहा है.... कहते हुए वो भी खांसने लगी... बोली उसकी भी तबियत ठीक नहीं रहती... पर फिलहाल अपनी फिक्र करने का वक्त कहां है....
जब वो ये सब बता रही थी तो मुझे याद आ रही थी वो यासमीन जिसे मैं पांच साल पहले मिला था... वो चुलबुली, बात-बात पर जोक मारने वाली, वो हाई मेंटेनेंस लड़की... जो कपड़ों से लेकर बैग तक सब कुछ ब्रैंडेड इस्तेमाल करती थी। वो जो ज़िंदगी से भरी हुई थी... जो कागज़ से फूल, चिड़िया और नाव बनाते हुए मगन रहती थी... और वो जो चंद और मुलाकातों में मेरी करीब आई और इश्क हो गया। उन दिनों हम जब भी मिलते थे वो मुझे रंगीन कागज़ का बना हुआ एक फूल देती थी... अपने हाथों से बनाया हुआ.... कागज़ का फूल क्यों देती हो मुझे हर बार मैं पूछता तो वो शरारत में कहती... बच्चू ये मेरे प्यार का टोकन है... जब तक मिल रहा है.. समझ लो मैं प्यार करती हूं तुमसे... और मैं हंसते हुए वो कागज़ का फूल जेब में रख लेता।
कुछ महीनों के बाद हमने शादी करने का फैसला किया। दोनों परिवारों की मौजूदगी में एक छोटे से फंक्शन में एक दूसरे को अंगूठी पहनाई थी। साल भर में शादी भी होनी थी.... सब कुछ ठीक था हमारे बीच, कभी कभी की मुलाकातें, मेरी बी फार्मा भी चल रहा था... वो भी एक कॉर्पोरेट में जॉब करने लगी थी.... पर एक रोज़... एक रोज़... अचानक... सब कुछ बदल गया... उसका कॉल आया... मिलने के लिए। मैं पहुंचा तो देखा कि उसके चेहरे पर उदासी थी, मायूस थी, शायद बहुत रो चुकी थी इसलिए आंखे सूजी थी.. मैं घबरा गया.. “क्या हुआ यासमीन सब ठीक तो है?” मैंने पूछा तो उसने कहा, “तुम मेरे लिए एक काम कर सकते हो? मैंने कहा हां हां, रो मत, तुम बताओ मुझे...” उसके बाद जो उसने कहा था वो लफ्ज़ उस दिन से आज तक हर रोज़, हर पल मेरे ज़हन में गूंजते हैं। बोली “तुम इस शादी से इंकार कर सकते हो?”
यही कहा था उसने, और उतनी ही बेबाकी से ये भी बताया था कि वो किसी और को चाहती है, वो कोई उसके ऑफिस में था शायद... मुझसे ज़्यादा पैसे वाला... शायद उसका बॉस... उसने कहा कि वो मुझे महसूस नहीं कर पाती... उसे मेरी कंपनी बोरिंग लगती है... पर वो कह नहीं पाई और प्रेशर में उसने इस शादी के लिए हां कर दी... पर अब वो ना कह रही है.... क्योंकि उसे उसके बॉस के साथ ज़िंदगी बितानी है। उसने कहा... मैं जानती हूं ये बात कड़वी है...लेकिन जितनी जल्दी हम इसे मान लें... उतना अच्छा है.. मैं ज़िंदगीभर किसी तुम्हारे साथ रहते हुए किसी और को याद करके रोना नहीं चाहती...
मैं होश खो बैठा था, चीखा, चिल्लाया, नाराज़ हुआ, रोया भी.. लेकिन फैसला तो हो चुका था। वो जा चुकी थी.... बिना कागज़ का बना कोई फूल दिये....
ख़ैर .... मैंने उसकी बात मान ली... रिश्ते से इंकार कर दिया और अहद किया कि आइंदा यासमीन का चेहरा नहीं देखूंगा। और नहीं देखूंगा भी.... मैंने अलमारी से वो सारे पुराने कागज़ के फूल जो हर मुलाकात में उसने मुझे दिये थे और मैंने संभाल कर रखे थे... सारे जला दिये....मैं अंदर से बिखर गया था। लेकिन वो कहते हैं कि वक्त की अच्छी बात यही है कि अच्छा हो या बुरा... गुज़र जाता है... ये भी गुज़र गया। हालांकि मुझे फिर भी वापस जुड़ने में वक्त लगा। इतने साल तक शादी भी टालता रहा। पर किस्मत का खेल देखिए आज जब श्रुति की पहनाई अंगूठी मेरे उंगलियों में थी, तो यासमीन मेरे सामने बैठी थी.. बिखरी... टूटी... उदास। दुख तो हुआ था मुझे... लेकिन सच कहूं तो... ऐसा लगा जैसे कोई रेस हो रही है जिसमें मैं.... मैं जीत गया। ये एक घटियापन था मेरा... लेकिन मन का कोई क्या करे.. अंग्रेज़ी का एक शब्द है, असल में जर्मन से लिया गया है – शाडनफ्रोएडा ... मन की वो खुशी है जो किसी की ज़िंदगी का दर्द... या उसकी बदकिस्मती देखकर मन होती है.... मुझे भी शाडनफ्रोएडा फीलिंग हो रही थी। मुझे अफसोस था यासमीन को लेकर ... लेकिन मन के भीतर कहीं गहरी तहों में एक खुशी थी ... कि अगर ये कहानी का अंत है... तो अंत में मैं...मैं जीत गया।
यासमीन... तभी क्लीनिक के अटैंडेंट केशव की आवाज़ गूंजी ... यासमीन का नंबर आ गया था। वो हड़बड़ा कर उठी और अंदर जाने लगी। मैंने उसे देखा... तो नोटिस किया कि अब... अब उसकी चाल भी बदल गयी थी... वो थकी थकी सी टूटी हुई चलती थी... वाकई बुरा वक्त इंसान की ज़िंदगी में जब आता है तो उसके रेशे-रेशे में उतर जाता है... ग़म हमें ज़ज़्ब कर लेता है।
वो अंदर चली गयी... मैं अपनी सीट पर बैठ गया। पर आज मुझे इस बात का इत्मिनान था कि बचपन में पढ़ी वो कहावत कि बुरे के साथ बुरा होता है... सच हुई थी। मैं... मैं किसी हीरो की तरह महसूस कर रही था.. जिसके इश्क ने उसे धोखा दिया और वक्त ने उसका बदला ले लिया। वो मेरे साथ होती तो इससे कहीं बेहतर ज़िंदगी जी रही होती। पर अपना अपना नसीब...
थोड़ी देर के बाद वो बाहर निकली तो उसकी आंखो में आंसू थे... शायद मेरी मुलाकात ने उसके पुराने ज़ख्मों को फिर कुरेद दिया था। उसे एहसास हो गया था कि उसके सामने समुंदर पड़ा था पर उसने चुल्लू भर पानी चुना। मैं उससे और बात करना चाहता था लेकिन... तभी केशव ने मुझे इशारा किया... कि अब मेरा नंबर है... डॉक्टर वेट कर रहे हैं। मैंने यासमीन की तरफ इशारा किया कि इंतज़ार करना मैं अभी आता हूं। तो उसने हां में इशारा किया। मैं जल्दी से अंदर गया और बे-मन से डॉक्टर से बात की... थोड़ी देर बाद बाहर आया तो ... तो वो फिर जा चुकी थी।
अरे एक लड़की थी यहा पर... हाथ में एक थैला जैसा था... यहां बैठी थी... मैने वहां बैठे एक शख्स से पूछा तो वो बोली... वो... हां .. चली गयी वो तो...
मैं दांत पीस कर रह गया। यासमीन ने मुझे धोखा दिया एक बार फिर से... वो चली गयी। मैंने गहरी सांस ली। सोचा वो शर्मिंदगी की वजह से चली गयी होगी... आंख से आंख मिला पाए ऐसा काम किया भी कहां था उसने....
ख़ैर .. अब तक क्लीनिक में मरीज़ छट चुके थे... मैं भी घर चलने के लिए उठा। तभी वहां से केशव गुज़रा... वही अटैंडेट... न जाने क्यों मेरे मन में आया कि उससे कुछ पूछता हूं ... वो अक्सर आती है तो उसके बारे में कुछ तो जानता होगा.. अरे केशव भाई, वो जो यहां एक लड़की बैठी थी... वो...
वो मेरे बगल में बैठते हुए बोला... यासमीन....
हां हां... मैंने कहा, वही... वो अक्सर आती है?
बोला, हां, यार आती है... बेचारी परेशान है बहुत... कसम से ज़िंदगी भी ना... कभी कभी कुछ लोगों के साथ बहुत क्रूर हो जाती है है ना... बेचारी... क्यों तुम क्यों पूछ रहे हो...
-नहीं बस ऐसे ही... मैं तो ...
बोला... हां यार... अब ये बीमारी ही है ऐसी है... कहते हैं ना किसी दुश्मन को भी ना हो...
- हां यार केशव... सुना मैंने कि उसके हसबैंड को....
- हसबैंड को.... अचानक केशव चौंका
मैंने कहा हां उसके हसंबैंड को बीमारी है न...
हस्बैंड कहां से आ गया भाई... उसको है... कैंसर... फोर्थ स्टेज ... डॉक्टर साहब का तो इलाज चल रहा है... तीन साल से आ रही है यहां...
मेरे पैरौं के नीचे की ज़मीन ऐसा लगे जैसे कोई दलदल में बदल गयी हो... और मैं... मैं उसमें धंसता जा रहा हूं.... मेरे हाथ कांपने लगे... मैंने पूछा...पर... मुझे तो लगा कि उसके हसेबैंड को...
- नहीं यार... मैं तो रिपोर्ट देखता रहता हूं उसकी... उसी को है... लोग बताते हैं कि इसी चक्कर में बेचारी ने शादी नहीं की... वैसे इसकी इंगेजमेंट हो गयी थी... पर तभी पता चला कि इसके कैंसर है... तो इसने रिश्ता तोड़ दिया... सोचा होगा कि क्यों किसी और की ज़िंदगी बर्बाद करे... ख़ैर... तुम बताओ... काम निपट गया... आज कल कम आ रहे हो...
- हां... मैंने उसकी बात को टाला... वो कुछ देर तक बगल में बैठा... इधर उधर की बातें करता रहा... जो मुझे बिल्कुल सुनाई नहीं दे रही थीं। मैं... मैं... अब समझ पा रहा था कि उसने पांच साल पहले अचानक मुझसे रिश्ता क्यों तोड़ दिया था... वो... वो मेरी ज़िंदगी को तकलीफ से बचाना चाहती थी.... कुछ देर बाद केशव चला गया.... और मैं... मैं वहीं नम आंखे लिये बैठा रहा.... किसी बाज़ी में एक हारे हुए शख्स की तरह... आज कितने करीब बैठी थी वो मेरे... लेकिन फिर भी कितनी दूर.... मैंने उस बेंच वाली जगह को फिर देखा जहां कुछ देर पहले यासमीन बैठी थी... तभी मेरी बेंच पर मुझे कुछ दिखा... मैं फुर्ती से उठा और बेंच के पास गया... तो मैंने देखा... वहां रखा था.... दवा के किसी पुराने पर्चे को मोड़कर बनाया गया.... एक कागज़ का फूल....
(ऐसी ही और कहानियां सुनने के लिए YOUTUBE, SPOTIFY या APPLE PODCAST पर सर्च कीजिए STORYBOX WITH JAMSHED)
जमशेद क़मर सिद्दीक़ी